मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों के चयन को लेकर बीजेपी सावधानी से कदम उठा रही है। इस बार पार्टी 40% से अधिक विधायकों के टिकट काटकर नए चेहरों को मौका देने का मन बना चुकी है।
भाजपा ने टिकट चयन के लिए जो प्रक्रिया तय की है उसमें छवि, जातिगत समीकरण और संगठन के फीडबैक को सबसे अधिक महत्व दिया जा रहा है। सर्वे के आधार पर ऐसे उम्मीदवारों की तलाश की जा रही है जो जीतने की कूबत रखते हैं। जो विधायक किसी भी पहलू पर कमजोर साबित होंगे, उन्हें पार्टी टिकट नहीं देने का मन बना चुकी है। पैनल में जगह भी नहीं मिलेगी। प्रदेश स्तर पर दावेदारों के नाम जुटाए गए हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दो एजेंसियों से सर्वे करवाया है। इसमें एक पैनल में कम से कम तीन और अधिकतम पांच नामों को शमिल किया गया है। सर्वे में एक विधानसभा क्षेत्र में वोटरों की संख्या के आधार पर 2 से 5 हजार लोगों के बीच सर्वे कराया गया है। सर्वे रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली से केंद्रीय नेतृत्व उम्मीदवारों के नाम पर मुहर लगा रहा है।
नए चेहरों और युवा वर्ग को मिलेगा चांस
प्रदेश में भाजपा पिछले 20 में से 18 साल सत्ता में रही है। सरकार के कुछ मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर विरोध है। जिसे दूर करने के लिए मध्य प्रदेश में पार्टी 40% से अधिक विधायकों के टिकट काटने का प्लान बना चुकी है। पार्टी की रणनीति ऐसी सीटों पर नए और युवा चेहरों को टिकट देने की तैयारी में है। जिससे युवा वोटर्स को लुभाया जा सके। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 109 और कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा की सीट बढ़कर 127 पहुंच गई थी।
सर्वे के मुद्दे
- भाजपा विधायक की क्षेत्र में छवि कैसी है। उस पर कोई गंभीर आरोप तो नहीं है। विधायक के संरक्षण में कहीं उसके लोग आम जनता पर मनमानी या दंबगई तो नहीं कर रहे।
- प्रत्याशी चयन में विधानसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरणों को खास महत्व दिया जा रहा है। लोधी समुदाय की अधिकता वाले क्षेत्रों में लोधी उम्मीदवार को तलाशा जा रहा है। इसी तरह ज्यादातर उम्मीदवार ओबीसी वर्ग से होंगे।
- विधायकों समेत सभी दावेदारों को लेकर संगठन से फीडबैक लिया जा रहा है। जिला स्तर परसंगठन के पदाधिकारियों की राय के आधार पर ही किसी नाम पर विचार किया जाएगा।
- मौजूदा विधायक का परफॉर्मेंस एक अहम फेक्टर है। उसने क्षेत्र में किस तरह के विकास कार्य करवाए हैं, इसका लेखा-जोखा मांगा जा रहा है। पार्टी के तय मानकों के आधार पर उन्हें परखा जा रहा है।
- विधायकों की क्षेत्र में सक्रियता कैसी है, यह भी टिकट का निर्णायक पहलू है। जनता की विधायक तक पहुंच और उसकी उपलब्धता का सवाल भी सर्वे में शामिल किया गया था।
सिंधिया समर्थक हो सकते हैं नाराज
पार्टी ने टिकट के लिए जो फैक्टर तय किए गए थे, उन पर खरा उतरना जरूरी है। ऐसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस से आए नेताओं पर भी परखा जा रहा है। ऐसे विधायकों के टिकट कट सकते हैं, जो सिंधिया के साथ भाजपा में आए जरूर, लेकिन खुद को भाजपा के अनुरूप ढल नहीं सके। संगठन से उनका सामंजस्य है या नहीं, इसे भी ध्यान में रखा गया है। सिंधिया के साथ भाजपा में आए कुछ विधायक अभी भी भाजपा के सांचे में रच-बस नहीं पाये हैं। इस आधार पर उनके टिकटों पर तलवार लटक रही है।
जारी दो लिस्ट से कैसे संकेत
भारतीय जनता पार्टी 2018 की गलती नहीं दोहराना चाहती है। चुनाव प्रचार से लेकर प्रत्याशी के चयन में भी अचम्भित कर रही है। पार्टी ने अब तक 79 प्रत्याशियों की सूची जारी की है। तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात सांसद और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को टिकट दिया है। इनमें 76 सीटों पर भाजपा को हार मिली थी। इस वजह से केंद्रीय नेताओं के जरिये न केवल उन सीटों को कांग्रेस से छीनने की तैयारी है बल्कि आसपास के जिलों में भी उनका वर्चस्व हो सकता है।