Name Plate Controversy: उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग (Kanwar Yatra route) पर स्थित भोजनालयों में नाम प्रदर्शित करने के अपने निर्देशों का जवाब आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दाखिल कर दिया है। सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि ये निर्देश भेदभावपूर्ण नहीं हैं। ये निर्देश संविधान के अनुच्छेद 51ए में निहित नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों के अनुरूप हैं। यह निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किए गए थे कि कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे तथा शांति और सौहार्द सुनिश्चित किया जा सके।
‘ये निर्देश भेदभावपूर्ण नहीं हैं’ (Name Plate Controversy)
सरकार ने दाखिल किए जवाब में कहा है कि ये निर्देश भेदभावपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि ये कांवड़ यात्रा मार्ग पर सभी दुकानदारों, होटलों और भोजनालयों पर समान रूप से लागू होते हैं। इसका किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। लाखों-करोड़ों लोग पवित्र जल लेकर नंगे पैर चल रहे हैं, जिसमें उनकी धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखा जाता है, ताकि गलती से भी उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुंचे। ऐसी स्थितियों से जाहिर तौर पर तनाव बढ़ता है।
निर्देशों का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा बनाए रखना
सुप्रीम कोर्ट को दिए जवाब में यूपी सरकार ने कहा है कि निर्देशों का उद्देश्य कांवड़ यात्रा के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा और व्यवस्था को बनाए रखना है। कांवड़ यात्रा के दौरान बड़ी संख्या में प्रतिभागी हिस्सा लेते हैं, जिससे सांप्रदायिक तनाव की संभावना होती है। पिछली घटनाओं से पता चला है कि बेचे जा रहे खाद्य पदार्थों के बारे में गलतफहमी के कारण तनाव और अशांति पैदा हुई है। ये निर्देश ऐसी स्थितियों से बचने के लिए एक सक्रिय उपाय हैं।
ये निर्देश संविधान के अनुच्छेद 51ए के अनुरूप
इसके अलावा, सरकार ने अपने निर्देशों का बचाव करते हुए कहा है कि ये निर्देश संविधान के अनुच्छेद 51ए में निहित नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों के अनुरूप हैं, जिसमें प्रत्येक नागरिक से भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने का आह्वान किया गया है। यह सुनिश्चित करके कि कांवड़ियों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया जाता है, निर्देश सद्भाव को बढ़ावा देते हैं और भाईचारे और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना में योगदान करते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से मांगा था जवाब
हाल ही में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने यूपी सरकार के कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालयों में नाम प्रदर्शित करने के निर्देशों पर रोक लगाते हुए कहा था कि भोजनालयों को “मालिकों के नाम/पहचान प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए।
निर्देशों के विरुद्ध तीन याचिकाएं दायर (Name Plate Controversy)
सरकार के निर्देशों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दायर की गई हैं।
- एनजीओ-एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (एपीसीआर) द्वारा
- टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा
- प्रसिद्ध राजनीतिक टिप्पणीकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षाविद अपूर्वानंद झा और स्तंभकार आकार पटेल द्वारा
याचिकाकर्ताओं ने अन्य बातों के साथ-साथ यह भी तर्क दिया है कि ये निर्देश धार्मिक विभाजन की धमकी देते हैं और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 17 और 19 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। यह भी दावा किया गया है कि ये निर्देश भोजनालयों के मालिकों और कर्मचारियों की निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, उन्हें खतरे में डालते हैं और उन्हें निशाना बनाते हैं।
क्या है पूरा मामला? (Name Plate Controversy)
17 जुलाई, 2024 को मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने एक निर्देश जारी किया, जिसमें कांवड़ मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों को मालिकों के नाम प्रदर्शित करने की आवश्यकता थी। इस निर्देश को 19 जुलाई, 2024 को पूरे राज्य में लागू कर दिया गया। कथित तौर पर, यह निर्देश अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के सभी जिलों में सख्ती से लागू किया जा रहा है।
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