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आज भी महल में घूमती है रानी की आत्मा, कालीन बेचने वालों ने किया था विधवा

स्थानीय निवासी बताते हैं कि राजा वसंतराव और उनके पूर्वज ब्राह्मण थे और बैद्य का कार्य भी करते थे। एक बार की बात है कि बादशाह शाहजहां की गर्भवती बेटी की हालत नाजुक हो गई थी...
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यूपी के बरेली शहर में कुछ दिलचस्प किस्से आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं। बरेली कॉलेज इतिहास विभाग के अध्यक्ष एसके मेहरोत्रा बताते हैं कि आज से लगभग 400 साल पहले चौधरी मोहल्ले की इस जगह पर एक महल हुआ करता था, जिसमें एक विशालकाय फाटक हुआ करता था। उसके अवशेष आज भी यहां मौजूद हैं और इसी की वजह से मोहल्ले को आज भी रानी साहिबा के फाटक के नाम से जाना जाता है। फिलहाल, अब तो केवल फाटक के ही अवशेष रह गये हैं, लेकिन शहर में किस्से आज भी काफ़ी मशहूर हैं। यहां के रहने वाले बाशिंदे इस जगह आज भी रानी साहिबा के होने का अनुभव करते हैं। अक्सर यहां अनजानी आहट रात में लोगों को आज भी चौंका देती है।

इस महल के पीछे की आज भी कई कहानियां प्रचलित हैं। स्थानीय निवासी बताते हैं कि राजा वसंतराव और उनके पूर्वज ब्राह्मण थे और बैद्य का कार्य भी करते थे। एक बार की बात है कि बादशाह शाहजहां की गर्भवती बेटी की हालत नाजुक हो गई थी। उसे ठीक करने के लिए उनके शाही बैद्य नाकाम होने लगे थे। तभी बरेली रियासत से वसंतराव के पिता को बेटी के इलाज के लिए रामपुर बुलाया गया।

उस समय पर्दे का चलन था

उस दौर में पर्दे का चलन बहुत ज्यादा हुआ करता था, इसलिए हाथ में डोर बांधकर नब्ज देखकर दवा देने का प्रचलन था। उनके द्वारा उस समय दी गई दवा से बेटी ठीक हुई तो शाहजहां ने खुश होकर बरेली का अपनी रियासत का यह इलाका उनको इनाम में दे दिया और उन्हें चौधरी के खिताब से भी नवाजा। तब से ही यह महल उनके परिवार के पास था। अब तो केवल महल के अवशेष ही यहां रह गए है। बाकी आज के समय में यह जगह चौधरी मोहल्ला, रानी साहिबा का फाटक और चौधरी तालाब के नाम से प्रसिद्ध है।

हाथी के शौकीन थे राजा

स्थानीय निवासी उर्मिला बताती है कि राजा बसंत राव की रुहेलों से बनती नहीं थी। दोनों तरफ से हमले होते रहते थे। राजा साहब ने अपनी हिफाजत के लिए शाहबाद और लखना से अपने रिश्तेदारों को यहां बुला लिया था। उन्हें महल के आसपास आबाद किया। कुछ लोगों को जोड़कर अपनी फौज भी बना ली थी। मोहल्ले के बुजुर्ग बताते हैं कि महल को सुरक्षित करने के लिए उस वक्त फाटक बनाया जा रहा था। तभी दीवार दिन में बनने के बाद उसी रात में अपने आप गिर जा रही थी। इसके लिए राजा साहब को नरबलि की सलाह दी गई। इसके बाद राजा साहब के द्वारा नरबलि दी गई, तब कहीं जाकर महल के विशालकाय फाटक का निर्माण पूरा हुआ। फाटक काफी बड़ा इसलिए बनाया गया, क्योंकि राजा बसंत राव को हाथी पालने का शौक था और अक्सर वह अपने हाथी से शहर के भ्रमण पर भी निकलते थे।

राजा साहब का कत्ल करने आये थे

इतिहास के पन्ने पलटने पर पता चलता है कि एक बार महल के मुख्य द्वार के पास से दो कालीन बेचने वाले ज़ोर-ज़ोर से ‘कालीन ले लो’ की आवाज़ देते हुए निकल रहे थे। तभी महल के फाटक पर तैनात सैनिकों ने कालीन देखने के लिए उनको बुला लिया, लेकिन उन कालीन बेचने वालों ने कालीन केवल राजा को दिखाने की बात कहीं, जिसके बाद यह बात राजा साहब तक पहुंची और फिर उन्हें महल के अंदर भेजा गया। कालीन बेचने वाले राजा का कत्ल करने के मकसद से आये थे। उन्होंने अंदर राजा साहब को कालीन दिखाने के बहाने अकेला पाकर उनकी हत्या को अंजाम दे दिया। जिस वक्त राजा बसंत राव चौधरी की हत्या हुई, उस समय उनका सबसे वफादार कुत्ता वहां जंजीर से बंदा हुआ था। उसने राजा की हत्या होते देख अपनी जंजीर तोड़ दी। तब तक मौका पाकर कातिल फ़ौरन महल से निकल चुके थे, लेकिन राजा के पालतू कुत्ते ने पीछा नहीं छोड़ा और उस कातिल को काट कर मार डाला। इस घटना ने रानी को गहरा सदमा दिया और रानी राजा की याद में पूरे महल में चहलकदमी करती रहती थी। मानो जैसे राजा वहां मौजूद हो कुछ समय तक उन्होंने महल से ही राज-काज को पर्दे में रहकर संभाला और उसके बाद रहस्यमयी ढंग से रानी की भी मौत हो गई, जिसके बाद से लोग आज भी यहां रानी की चहलकदमी की आहट को महसूस करते हैं।


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