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कावेरी जल विवाद- 26 और 29 सितंबर को बंद का आह्वान


देश के दो राज्यों कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद को लेकर हंगामा मचा हुआ है। विवाद के चलते राज्यों ने दो दिनों 26 और 29 सितंबर को बंद का आह्वान किया है। टैक्सी ड्राइवर्स और होटल मालिकों समेत कई एसोसिएशन्स ने बंद का समर्थन वापस ले लिया है। उसके बावजूद ऐतियातन स्कूल और कॉलेज बंद रखने का फैसला लिया गया। बेंगलुरु के सभी प्राइवेट स्कूलों ने 26 सितम्बर को बंद रहने का फैसला किया है। बेंगलुरु के शहरी डिप्टी कमिश्नर दयानंद केए ने भी बेंगलुरु बंद की आशंका में शहर भर के सभी स्कूलों और कॉलेजों के लिए छुट्टी की घोषणा की।

कर्नाटक जल संरक्षण समिति के अध्यक्ष कुरुबुर शांताकुमार ने कहा कि वे बंद जारी रखेंगे। वहीं कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि हम बंद को कंट्रोल नहीं करेंगे, ये उनका अधिकार है। जबकि उन्होंने बीजेपी और जेडीएस पर राजनीति करने का आरोप लगाया। सिद्धारमैया ने कहा-“हमने विरोध प्रदर्शन का हिस्सा बनने के लिए कई संगठनों को बुलाया है और तैयारी चल रही है। हमने वटल नागराज को भी इन योजनाओं के बारे में सूचित किया था। 25 सितम्बर को एक बैठक भी की पर दोनों दलों में सहमति नहीं बन पाई।

वटल नागराज ने आज 26 सितंबर को होने वाले बंद के समर्थन को वापस ले लिया है। नागराज ने कहा, “29 सितंबर को राष्ट्रीय राजमार्ग बंद रहेंगे और हम हवाईअड्डे को भी बंद करने का प्रयास करेंगे। मैं दोहराता हूं कि यहां मौजूद सभी कन्नड़ समर्थक संगठन मंगलवार को बंद का समर्थन नहीं करेंगे लेकिन 29 सितंबर को राज्यव्यापी बंद होगा।

किसानों और कर्नाटक रक्षा वेदिके ने मंगलवार को कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) द्वारा तमिलनाडु को 5000 क्यूसेक पानी छोड़ने के आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। हालांकि, किसान निकायों द्वारा बुलाए गए बंद को देखते हुए बेंगलुरु महानगर परिवहन निगम (बीएमटीसी) के सभी मार्ग मंगलवार को हमेशा की तरह चालू रहने की संभावना है। नम्मा मेट्रो सेवाओं के हमेशा की तरह चालू रहने की उम्मीद है। आईटी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को घर से काम करने के लिए कहा है ताकि उनकी सुरक्षा और हड़ताल के दौरान संचालन के सुचारू संचालन को सुनिश्चित किया जा सके।

बेंगलुरु में केएसआरटीसी स्टाफ एंड वर्कर्स फेडरेशन और टैक्सी यूनियनों ने अपना समर्थन घोषित किया है। कुछ एयरलाइंस पहले ही यात्रियों के लिए एडवाइजरी जारी कर चुकी हैं। 26 सितंबर को घोषित बैंगलोर बंद के कारण स्थानीय परिवहन सुविधाएं प्रभावित हो सकती हैं।

सिद्धरमैया ने कहा, ‘हमने कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण और विनियमन समिति के आदेशों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। अदालत ने हमारी और तमिलनाडु की दलीलें खारिज कर दीं। सिद्धरमैया ने पहले 24,000 क्यूसेक की मांग की, फिर 7,200 क्यूसेक की, हमने कहा कि 5,000 क्यूसेक भी नहीं दे सकते, क्योंकि पानी नहीं है। शीर्ष अदालत ने इसे स्वीकार नहीं किया और मामला 26 सितंबर को अदालत के सामने आ रहा है। हम अपनी दलीलें और अधिक मजबूती से रखेंगे।’ कावेरी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन और बंद के आह्वान से संबंधित एक सवाल का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि लोकतंत्र में, हम (सरकार) विरोध प्रदर्शनों को नहीं रोकेंगे, लेकिन भाजपा और जद (एस) इस मुद्दे पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं।

उपमुख्यमंत्री डी. के. शिवकुमार ने भी कहा कि लोगों को विरोध करने का अधिकार है लेकिन, हिंसा नहीं होनी चाहिए। अधिकारियों ने कहा कि शहर की पुलिस यह सुनिश्चित करने के लिए सभी पर्याप्त सुरक्षा उपाय कर रही है कि कोई अप्रिय घटना न हो। इस बीच, जनता दल सेक्युलर के प्रमुख देवेगौड़ा ने कावेरी मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि 23 सितंबर को कर्नाटक में कावेरी बेसिन के सभी चार जलाशयों में उपलब्ध संयुक्त भंडारण केवल 51.10 टीएमसी (हजार मिलियन क्यूबिक फुट) है, जबकि फसलों और पेयजल की आवश्यकता 112 टीएमसी है। गौड़ा ने पत्र में लिखा है कि अब तक जारी 40 टीएमसी से कहीं अधिक अतिरिक्त पानी जारी करने के लिए दबाव बनाने को लेकर तमिलनाडु का रवैया न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए समानता व प्राकृतिक न्याय के सभी सिद्धांतों के खिलाफ भी है कि पेयजल उपलब्ध कराना संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है और राष्ट्रीय जल नीति में इसे सर्वोच्च प्राथमिकता मिली है।

जल विवाद का इतिहास

तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच कावेरी जल विवाद लंबे समय से चल रहा है। साल 1892 और 1924 में मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर साम्राज्य के बीच हुए दो समझौतों के तहत दोनों राज्यों में कावेरी नदी के पानी के बंटवारे पर सहमति बनी थी। पानी के बंटवारे पर असहमति को दूर करने के लिए साल 1990 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण की भी स्थापना की गई। पहले भी दोनों राज्यों के बीच पानी को लेकर विवाद हो चुका है। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कर्नाटक को जून और मई के बीच तमिलनाडु के लिए 177 टीएमसी पानी छोड़ने का आदेश दिया था। लेकिन इस बार तमिलनाडु ने कर्नाटक से 15 हजार क्यूसेक और पानी छोड़ने की मांग की। कर्नाटक के विरोध के बाद कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने 10 हजार क्यूसेक पानी छोड़ने की मांग की लेकिन तमिलनाडु का आरोप है कि कर्नाटक ने 10 हजार क्यूसेक पानी भी नहीं छोड़ा है। वहीं कर्नाटक का कहना है कि इस बार दक्षिण पश्चिम मानसून के नाकाम रहने के कारण कावेरी नदी क्षेत्र के जलाशयों में अपर्याप्त जल भंडार है। ऐसे में कर्नाटक ने पानी छोड़ने से इनकार कर दिया।


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