करवा चौथ हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भारत के अधिक्तर राज्यों में मनाया जाने वाला पर्व है। यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। करवा चौथ का पर्व सुहागिन स्त्रियाँ मनाती हैं। यह व्रत सवेरे सूर्योदय से पहले लगभग 4 बजे से आरंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। सभी सुहागिन स्त्रियाँ करवाचौथ का व्रत बडी़ श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। शास्त्रों के अनुसार पति की दीर्घायु एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन भालचन्द्र गणेश जी की अर्चना की जाती है। करवाचौथ के उपवास में चन्द्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही जल ग्रहण करने के बाद भोजन करने का विधान है। वर्तमान समय में करवाचौथ व्रतोत्सव अधिकतर महिलाएं अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार ही मनाती हैं लेकिन अधिकतर स्त्रियां निराहार रहकर चन्द्रोदय की प्रतीक्षा करती हैं।
करवा चौथ व्रत विधि
करवा चौथ के दिन स्नान आदि के बाद करवा चौथ व्रत और चौथ माता की पूजा का संकल्प लेते हैं। फिर अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है। पूजा के लिए 16 श्रृंगार करते हैं। फिर पूजा के मुहूर्त में चौथ माता या मां गौरी और गणेश जी की विधि विधान से पूजा करते हैं। पूजा के समय उनको गंगाजल, नैवेद्य, धूप-दीप, अक्षत्, रोली, फूल, पंचामृत आदि अर्पित करते हैं। दोनों को श्रद्धापूर्वक फल और हलवा-पूरी का भोग लगाते हैं। इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर अर्घ्य देते हैं और उसके बाद पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं।
सरगी
सरगी के जरिए सास अपनी बहू को सुहाग का आशीर्वाद देती है। सरगी की थाल में 16 श्रृंगार की सभी समाग्री, मेवा, फल, मिष्ठान आदि होते हैं। सरगी में रखे गए व्यंजनों को ग्रहण करके ही इस व्रत का आरंभ किया जाता है। सास न हो तो जेठानी या बहन के जरिए भी ये रस्म निभा सकती हैं। करवा चौथ व्रत वाले दिन सरगी सूर्योदय से पूर्व 4-5 बजे के करीब कर लेना चाहिए। सरगी में भूलकर भी तेल मसाले वाली चीजों को ग्रहण न करें। इससे व्रत का फल नहीं मिलता है। ब्रह्म मुहूर्त में सरगी का सेवन अच्छा माना जाता है।
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