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अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर SC सुनाएगा फैसला


सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज अपना फैसला सुनाएगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ फैसला सुनाएगी।

शीर्ष अदालत ने 16 दिनों तक दलीलें सुनने के बाद 5 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को निरस्त करने में कोई “संवैधानिक धोखाधड़ी” नहीं हुई थी। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए।

केंद्र ने पीठ को बताया था कि जम्मू और कश्मीर एकमात्र राज्य नहीं था जिसका भारत में विलय दस्तावेजों के माध्यम से हुआ था, बल्कि कई अन्य रियासतें भी 1947 में आजादी के बाद शर्तों के साथ और विलय के बाद अपनी संप्रभुता के साथ भारत में शामिल हुई थीं।

केंद्र सरकार ने पीठ को बताया कि 1947 में आजादी के समय 565 रियासतों में से अधिकांश गुजरात में थीं और कई में कर, भूमि अधिग्रहण और अन्य मुद्दों से संबंधित शर्तें थीं। केंद्र ने यह भी प्रस्तुत किया था कि केंद्र शासित प्रदेश के रूप में जम्मू और कश्मीर की स्थिति केवल अस्थायी है और इसे राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। हालाँकि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें शुरू करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 अब “अस्थायी प्रावधान” नहीं है और जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के विघटन के बाद इसे स्थायित्व मिल गया है। उन्होंने तर्क दिया था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सुविधा के लिए संसद खुद को जम्मू-कश्मीर की विधायिका घोषित नहीं कर सकती थी क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 354 शक्ति के ऐसे प्रयोग को अधिकृत नहीं करता है।

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि अनुच्छेद 370 के खंड 3 की स्पष्ट शर्तें दर्शाती हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए संविधान सभा की सिफारिश आवश्यक थी। सिब्बल ने तर्क दिया था कि संविधान सभा के विघटन के मद्देनजर, जिसकी सिफारिश अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के लिए आवश्यक थी प्रावधान को रद्द नहीं किया जा सका।

जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भारत में विलय करते समय जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने राज्य के क्षेत्र पर अपनी संप्रभुता को स्वीकार किया था। लेकिन राज्य पर शासन करने की अपनी संप्रभु शक्ति को नहीं। जेके हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ वकील जेडए जफर ने कहा जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय क्षेत्रीय था और रक्षा, विदेश मामले और संचार को छोड़कर, कानून बनाने और शासन करने की सभी शक्तियां राज्य के पास बरकरार रखी गईं।

केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि बदलावों के बाद सड़क पर हिंसा जो आतंकवादियों और अलगाववादी नेटवर्क द्वारा रचित और संचालित की गई थी अब अतीत की बात बन गई है। केंद्र ने कहा कि 2019 के बाद से जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था, पूरे क्षेत्र ने “शांति, प्रगति और समृद्धि का अभूतपूर्व युग” देखा है। केंद्र ने अपने हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद तीन दशकों की उथल-पुथल के बाद वहां जीवन सामान्य हो गया है।

संविधान पीठ संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत में कई याचिकाएँ दायर की गईं जिनमें निजी व्यक्तियों, वकीलों, कार्यकर्ताओं, राजनेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को चुनौती दी गई। जो जम्मू और कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करता है।

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द करने की घोषणा की और क्षेत्र को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। 


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