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इंड़िया गठबधंन में दरार, क्या अकेली पड़ जाएगी कांग्रेस

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वो कहावत तो सुनी होगी आपने एकता में बल होता है,,, लेकिन बीजेपी को हराने के लिए बना इंडिया गठबंधन अब थकता और बिखरता दिखाई दे रहा है, क्योकि अब ना उसमें कोई बल रह गया है और ना ही कोई ऐसी बात जिससे वो बीजेपी को हरा पाए। लेकिन सवाल ये कि आखिर इंडिया गठबंधन बिखरा क्यों आखिर क्यों उसमें दरार आई। जिसकी बड़ी वजह आज हम आपको बताने जा रहे हैं। पिछले साल 23 जून को बिहार के पटना में जब विपक्षी दलों ने बीजेपी को हराने के लिए एकजुट लड़ने का संदेश दिया तो देश की राजनीति में हलचल देखने को मिली। लेकिन कुछ महीनों में ही इस गठबंधन में दरार पड़ने लगी। जिस नीतीश कुमार ने विपक्षी दलों को एकजुट करने की सबसे पहले शुरुआत की, वह खुद अब एनडीए का हिस्सा हैं। इंडिया गठबंधन की तमाम गतिविधियां इस वक्त लगभग ठप सी हो गई हैं। लोकसभा चुनाव बेहद नजदीक है लेकिन अब तक किसी राज्य में सीट शेयरिंग को लेकर कोई बात नहीं हुई है, जिससे समझा जा सकता है कि इस वक्त इंडिया गठबंधन किस हालात में है। लेकिन इंडिया गठबंधन के इस हालात की कई वजहें हैं।

दरअसल इंडिया गठबंधन में दो दर्जन से ज्यादा दलों को जोड़ने के लिए सबसे बड़ी बाधा बनी कोऑर्डिनेशन की कमी,  क्योकि गठबंधन के तुरंत बाद कुछ नेताओं का यह प्रस्ताव आया कि एक संयोजक की नियुक्ति हो जो सभी दलों को एक सिरे में जोड़कर बात को आगे रखे। लेकिन संयोजक की नियुक्ति नहीं हो पाई। कहा गया कि नीतीश कुमार इस पद के लिए इच्छुक थे लेकिन ममता बनर्जी के विरोध और कांग्रेस की सुस्ती के कारण उन्हें यह पद नहीं दिया गया। फिर वह बाद में एनडीए में शामिल हो गए। कोऑर्डिनेशन की कमी का आलम यह रहा कि I.N.D.I.A. गठबंधन ने अलग-अलग कमिटियां बनाई लेकिन कभी उसकी एक मीटिंग तक नहीं हुई। इसी कारण गठबंधन कभी कोई साझा कार्यक्रम तक नहीं कर सका, इससे धीरे-धीरे गठबंधन के दलों के बीच असंतोष बढ़ता रहा और इस प्रक्रिया से वो खुद को दूर करते रहे।

इंडिया गठबंधन में दो दर्जन से ज्यादा राजनीतिक दल बीजेपी को हराने के लिए एक मंच पर तो आ गए लेकिन कभी वो आपस में विश्वास नहीं बना सके। गठबंधन होने के बाद भी इसमें सभी राजनीतिक दल एक दूसरे के खिलाफ बयान देते रहे। सीट शेयरिंग का मसला हो या कुछ और, कई बार इन दलों के नेता आपस में ही भिड़ते रहे, इसका नकारात्मक संदेश जाता रहा और इन घटनाओं ने I.N.D.I.A. गठबंधन को कभी स्थिर नहीं होने दिया। साथ ही गठबंधन में कोई राजनीतिक दल अपने सियासी स्पेस से समझौता करने के मूड में नहीं दिखा। यही कारण है कि कई कोशिशों के बावजदू वो कभी एक साझा रैली तक नहीं कर सके, कभी पटना, भोपाल तो कभी शिमला में रैली करने की तैयारी हुई लेकिन आपसी विश्वास की कमी के कारण ऐसा नहीं हो सका।

कहा गया कि गठबंधन ने सभी से बातचीत को कायम नहीं रखा, इसके लिए ज्यादातर क्षेत्रीय दल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। अगस्त में मुंबई में गठबंधन की मीटिंग होने के बाद कांग्रेस ने लगातार बैठक की डेट टाल दी कि उनके नेता पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में व्यस्त हैं।  तब गठबंधन के ज्यादातर नेताओं ने दबी जुबां मे आरोप लगाया कि कांग्रेस विधानसभा चुनाव में बेहतर परिणाम मिलने के बाद क्षेत्रीय दलों पर सीटों की अधिक हिस्सेदारी के लिए दबाव बनाना चाहती है। लेकिन हुआ ठीक उलट कांग्रेस के लिए परिणाम बहुत खराब रहे, इसके बाद क्षेत्रीय दल कांग्रेस पर दबाव बनाने लगे। कांग्रेस अपनी पूरी ताकत और ऊर्जा न्याय यात्रा में लगाती रही। इस तरह सभी से बातचीत ना होने की वजह से गठबंधन बेपटरी होता गया।

जब से विपक्षी दलों का इंडिया गठबंधन सामने आया तब से इसमें शामिल राजनीतिक दलों की गिनती और अंकगणित तक ही बात सीमित रही,,

गठबंधन काम कैसे करेगा, उसका रोड मैप क्या होगा ? विजन क्या होगा? जनता के बीच वे किस मुद्दे तक जाएंगे, इस बारे में सहमति तो दूर एक छोटी पहल तक नहीं हुई, रोड मैप तो दूर मीटिंग के बाद मीडिया से बात कौन करेगा और उन्हें क्या कहेंगे इसे तय करने में भी माथापच्ची होती रही

इस तरह बिना रोडमैप के यह गठबंधन कभी आगे बढ़ता दिखा ही नहीं, हालांकि कुछ दलों ने शुरू से इस बात के लिए दबाव जरूर बनाया था। कि सीट शेयरिंग और मुद्दों के रोडमैप पर सबसे पहले स्पष्टता हो जाए जिससे जमीन पर इसे समय रहते अमल किया जा सके, लेकिन पिछले साल अगस्त की मीटिंग के बाद जो गठबंधन भटका, उसके बाद रोडमैप तय करना तो दूर इन्हें आपस में एकजुट रखना ही सबसे बड़ी चुनौती बन गई थी।

बीजेपी के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने के नाम पर तमाम विपक्षी दल एकमंच पर आ तो गए लेकिन वो अपने आपस में कलह को कभी हटा नहीं सके। मसलन पश्चिम बंगाल में टीएमसी और लेफ्ट ने साफ संदेश दिया कि उनके बीच किसी तरह का समझौता मुमकिन नहीं है, जबकि दोनों गठबंधन का हिस्सा थे। उसी तरह पंजाब में कांग्रेस-आम आदमी पार्टी और केरल में कांग्रेस-लेफ्ट के बीच ऐसा ही कलह सामने आया। इसी गठबंधन के बीच जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से कुछ सीटें मांगीं तो कांग्रेस ने इसे सीधे खारिज कर दिया। वहीं मुद्दों पर भी कलह सामने आता रहा जाति जनगणना के नाम पर ममता बनर्जी कभी सहमत नहीं रहीं तो सनातन का मुद्दा उठाकर डीएमके ने बाकी दलों को असहज किया। कई मौकों पर ऐसा लगा कि एक मंच पर आने से गठबंधन को फायदे से ज्यादा नुकसान ही हुआ।

तो इंडिया गठबंधन सत्तारूढ़ BJP को आंखें दिखा रहा था कि लोकसभा चुनाव में वो बीजेपी को पस्त कर देगा। हालांकि ये फ्रेम अब दरक रहा है और इसी के साथ इंडिया गठबंधन के खड़े हो पाने की संभावनाएं भी सुस्त होती नजर आ रही हैं।


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