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पिता की पार्टी को संभाला, फिर बनी पीएम; ऐसे हुई हसीना की राजनीति में एंट्री

Story of Sheikh Hasina: बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने हिंसा के बीच अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। शेख हसीना देश छोड़कर भारत आ चुकी हैं। उधर, प्रदर्शनकारियों ने पीएम आवास को घेर लिया है।
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Story of Sheikh Hasina: बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने हिंसा के बीच अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। शेख हसीना देश छोड़कर भारत आ चुकी हैं। उधर, प्रदर्शनकारियों ने पीएम आवास को घेर लिया है। दरअसल, बांग्लादेश में पिछले दो महीने से लगातार हिंसक प्रदर्शन और झड़पे हो रही थीं। जब पीएम शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाया तो मामला और बिगड़ गया। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों ने शेख हसीना के इस्तीफे की मांग के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया था।

कौन हैं शेख हसीना?

शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को हुआ था। शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की सबसे बड़ी बेटी हैं। शेख हसीना की पूर्वी बंगाल के तुंगीपाड़ा में स्कूली पढ़ाई-लिखाई हुई। कुछ समय तक सेगुनबागीचा में भी रहीं। फिर उनका पूरा परिवार बांग्लादेश की राजधानी ढाका में रहने लगा।

ऐसे हुई राजनीति में शेख हसीना की एंट्री

शेख हसीना की शुरुआत में राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी। साल 1966 में जब वह ईडन महिला कॉलेज में पढ़ रही थीं, तब उनकी राजनीति में दिलचस्पी जगी। स्टूडेंट यूनियन का चुनाव लड़कर वाइस प्रेसिडेंट बनीं। इसके बाद उन्होंने अपने पिता मुजीबुर रहमान की पार्टी आवामी लीग के स्टूडेंट विंग का काम संभालने का फैसला किया।

मां-बाप और दो भाइयों की हत्या

शेख हसीना की जिंदगी में साल 1975 एक बड़े संकट की तरह आया। बांग्लादेश की सेना ने बगावत कर शेख हसीना के परिवार वालों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया। हथियारबंद लड़ाकों ने शेख हसीना की मां, उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान और तीन भाइयों हत्या कर दी। मां-बाप और तीन भाइयों की हत्या के बाद शेख हसीना कुछ समय तक जर्मनी में रहीं। इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें भारत में शरण दी।

वर्ष 1986 में शेख हसीना ने पहली बार लड़ा था आम चुनाव

शेख हसीना साल 1981 में बांग्लादेश लौटीं। जब वह एयरपोर्ट पहुंचीं तो उन्हें रिसीव करने के लिए लाखों लोग आए। बांग्लादेश लौटने के बाद शेख हसीना ने अपने पिता की पार्टी को आगे बढ़ाने का फैसला लिया और साल 1986 में पहली बार आम चुनाव में उतरीं। हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन विपक्ष की नेता चुन ली गईं। वर्ष 1991 में एक तरीके से पहली बार बांग्लादेश में स्वतंत्र तौर पर चुनाव हुए। इस चुनाव में शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को बहुमत नहीं मिला। उनकी विपक्षी खालिदा जिया की पार्टी सत्ता में आ गई।

साल 2004 में शेख हसीना के ऊपर ग्रेनेड से हुआ था अटैक

शेख हसीना दो बार मौत को मात दे चुकी हैं। पहली बार साल 1975 में और दूसरी बार 2004 में। साल 1975 में जब उनके परिवार की हत्या हुई तो देश से बाहर होने की वजह से बच गईं। फिर साल 2004 में उनके ऊपर ग्रेनेड से अटैक हुआ, जिसमें वह बहुत बुरी तरह घायल हो गई थीं। इस हमले में 24 लोग मारे गए थे।


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