Lok Sabha Election 2024 Result: 10 मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही अगले दिन ये विस्फोटक बयान दिया था, जिसके बाद पूरे देश में सियासी हलचल तेज़ हो गई थी। वो इसलिए कि बीजेपी में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ टॉप 10 लीडर्स में आते हैं। ऐसे में उनके बारे में इस तरह की भविष्यवाणी करना किसी के गले से नीचे नहीं उतर रहा था। उस वक्त केजरीवाल के इस बयान को लोगों ने हंसी में टाल दिया था, लेकिन आज उस बयान के मायने समझ आ रहे हैं।
दरअसल खबर ही कुछ ऐसी है, मंगलवाल को सामने आए लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सबको हैरान कर दिया है और सत्ताधारी बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा है, जिसकी आंच अब राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर आती नजर आ रही है। माना ये जा रहा था कि यूपी में बीजेपी 80 में से कम से कम 70 सीटें लकर आएगी, लेकिन आई सिर्फ 33 सीटें। यहां तक की समाजवादी पार्टी भी इस बार यूपी में बीजेपी से आगे निकल गई। इन सब बातों को देखते हुए सुगबुगाहट है कि यूपी में बीजेपी योगी फैक्टर की उपयोगिता पर विचार करने की तैयारी में है। इसी वजह से यूपी की सियासत में अरविंद केजरीवाल के उस बयान की गूंज फिर से सुनाई दे रही है, जो केजरीवाल ने जेल से बाहर आते ही कहा था कि चुनाव होते ही बीजेपी सबसे पहले योगी आदित्यनाथ की सियासत खत्म करेगी।
पिछले चुनावों से मुकाबला करें तो 10 साल में यूपी में इस बार बीजेपी का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। न सिर्फ सीटों में गिरावट आई है, बल्कि बीजेपी का वोट शेयर भी काफी कम हुआ है। कई बड़े-बड़े केंद्रीय मंत्री तक चुनाव हार गए हैं। मोदी फैक्टर के अलावा लोकसभा चुनाव में, खासतौर पर यूपी में, योगी फैक्टर, कानून व्यवस्था, विकास और हिंदुत्व को बीजेपी ने अपना एजेंडा बनाया था। बीजेपी की पूरी कैंपेनिंग में इन सब की गूंज सुनाई देती रही थी, लेकिन अब लगता है कि यूपी में बीजेपी के लिए उपयोगी साबित नहीं हो पाए हैं योगी।
खास बात ये रही कि इस चुनाव में यूपी की जनता ने योगी से ज्यादा यूपी के दो लड़कों में विश्वास दिखाया है। बीजेपी का डबल इंजन का नारा साफ तौर पर फेल होता नज़र आया है या फिर आप कह सकते हैं जनता ये सब सुन-सुन कर बोर हो चुकी थी। वहीं, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने अपने नारे PDA से पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को टारगेट करने में सफलता हासिल की। योगी ने राज्य में लगातार पांच चुनावों में बीजेपी की जीत का नेतृत्व किया है इसलिए अब राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि जब उन चुनावों में जीत का श्रेय योगी आदित्यनाथ को दिया गया था तो फिर अब उन्हे हार की जिम्मेदारी भी लेनी होगी। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि योगी बाबा को बलि का बकरा भी नहीं बनाया जा सकता।
राजनीतिक विशलेषकों का मानना है कि बीजेपी के उम्मीदवारों का चयन ऐंटी-इन्कम्बेंसी को नजरअंदाज करते हुए किया गया था और यही यूपी में पार्टी की हार की सबसे बड़ी वजह बनी है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का दावा है कि योगी इस मामले में साफ बचे हुए हैं क्योंकि उम्मीदवारों के चयन की जिम्मेदारी केंद्रीय नेतृत्व के पास थी। उम्मीदवारों के चयन में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। इसके अलावा यूपी में कुछ नेता ऐसे भी थे जो अपने खिलाफ बढ़ते आक्रोश के बावजूद जीते हैं। इसके लिए मोदी फैक्टर के साथ-साथ योगी आदित्यनाथ को भी श्रेय दिया जाना चाहिए।
वो योगी ही थे जो पार्टी में मोदी के बाद सबसे ज्यादा मांग किए जाने वाले स्टार प्रचारकों में से एक थे। योगी ने इस चुनावी समर में करीब 170 रैलियों को संबोधित किया। इसमें यूपी ही नहीं बल्कि बाहर के राज्यों की भी रैलियां शामिल हैं। इससे पहले योगी यूपी के सभी 75 जिलों का दौरा कर चुके थे। चुनाव में पार्टी को बड़ी जीत दिलाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने हर वो संभव प्रयास किए जो उन्हे करने चाहिए थे। फिर भी यूपी में बीजेपी को झटका लगना काफी हैरान करने वाला है। हालांकि अब यूपी की सियासत में इसका क्या असर देखने को मिलेगा।
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