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साल में सिर्फ एक बार खिलता है ब्रह्म कमल, जानें इस फूल की खासियत

भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में और उत्तराखंड में यह गंगोत्री घाटी के उच्च हिमालय...
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Brahma Kamal: देवभूमि उत्तराखंण्ड में कई रहस्य छिपे हुए हैं, उन्हीं में से एक है ब्रह्म कमल… आज हम आपको रुबरु कराते हैं एक ऐसे अदभुत, आलौकिक, भव्य और दिव्य पुष्प से जिसे स्वयं देवों के देव ब्रह्मा जी ने उत्पन्न किया था। इसीलिए इसका नाम है “ब्रह्मकमल”। इस फूल को ब्रह्मा जी ने इसलिए उत्पन्न किया, क्योंकि जब भगवान शिव ने गणेश जी के सिर को धड़ से अलग कर दिया था।

तब पुनः भगवान शिव जी को गणेश जी के धड़ पर हाथी का मुख लगाना था, इसके लिए अमृत की आवश्यकता थी। इसी समय ब्रह्मा जी ने ब्रह्मकमल को उत्पन्न किया और इस ब्रह्मकमल फूल से अमृत उत्पन्न हुआ था। इसी अमृत से श्री गणेश को पुनः जीवित किया गया था, इसी कारण इसे ब्रह्मकमल भी कहा जाता है।

दर्शन मात्र से सभी कष्टों से मिलती है मुक्ति (Brahma Kamal)

ब्रह्म कमल को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव ने ब्रह्म कमल से जल छिड़ककर भगवान गणेश को पुनर्जीवित किया था। इसलिए इस पुष्प को जीवनदायी माना जाता है। इस ब्रह्मकमल के दर्शन मात्र से सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल कश्मीर में पाया जाता है।

भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। हिमाचल में कुल्लू के कुछ इलाकों में और उत्तराखंड में यह गंगोत्री घाटी के उच्च हिमालय क्षेत्र खासकर बुग्यालों, पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी केदारनाथ आदि दुर्गम स्थानों पर बहुतायत में मिलता है।

रात में खिलता है ये पुष्प (Brahma Kamal)

ब्रह्म कमल का वैज्ञानिक नाम सौसुरिया ओबवल्लाटा है। यह सूरजमुखी परिवार (एस्टेरेसी) की एक प्रजाति है और इसे आमतौर पर हिमालय का विशालकाय या हिमालय का राजा कहा जाता है। ब्रह्म कमल का पौधा आमतौर पर मानसून के मौसम में खिलता है, जो कि जुलाई और सितंबर के बीच होता है। फूल के खिलने का समय स्थान और ऊंचाई पर निर्भर करता है। यह एक अतिदुर्लभ दिव्य आलौकिक और पवित्र फूल माना जाता है। यह वर्ष में केवल एक बार खिलता है, यह रात में खिलता है और केवल एक रात तक रहता है।

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14 सालों में एक बार खिलता है ब्रह्मकमल

इस फूल को लेकर एक मान्यता ये भी है कि हिमालय की वादियों में 14 सालों में ब्रह्मकमल एक बार खिलता है। यह फूल तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर सिर्फ रात में खिलता है। सुबह होते ही इसका फूल बंद हो जाता है। इस ब्रह्मकमल को जो जब चाहे तोड़ कर ले, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं, जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितंबर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।

उत्तराखंड का राज्यपुष्प है ब्रह्मकमल

हिमालय में इस दुर्लभ फूल के दीदार करने के लिए दुनियाभर से लोग हिमालय के इन उच्च क्षेत्रों में पहुंच रहे हैं। आपको बताते चलें कि “ब्रह्मकमल” का फूल उत्तराखंड का “राज्य पुष्प” भी हैं। ब्रह्मकमल को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस।

आइए कुछ और भी जानते हैं इस खास फूल के बारे में…

ब्रह्मकमल उच्च हिमालय के बेहद ठंडे इलाकों में खासकर बुग्यालों में (जहां ट्री लाइन खत्म हो जाती है) मिलता है। ब्रह्मकमल हिमालय के उत्तरी और दक्षिण-पश्चिम चीन में भी पाया जाता है। यह ब्रह्मकमल हिमालय के गंगोत्री घाटी में स्थित बहुतायत बुग्याल क्षेत्रों में बदरीनाथ, केदारनाथ के साथ ही फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, वासुकीताल, वेदनी बुग्याल, मद्महेश्वर, रूप कुंड, तुंगनाथ में मिलता है।

साल में सिर्फ एक बार खिलता है ब्रह्म कमल, जानें इस फूल की खासियतकई दोष हो जाते हैं दूर

ब्रह्मकमल अति सुंदर, सुगंधित और दिव्य फूल कहा जाता है। वनस्पति शास्त्र में ब्रह्म कमल की 31 प्रजातियां बताई गई हैं। इसकी दिव्यता और सुंदरता और औषधीय गुणों के कारण ही इसे संरक्षित प्रजाति में रखा गया है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज में ब्रह्मकमल को काफी मुफीद माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि घर में भी ब्रह्मकमल रखने से कई दोष दूर होते हैं।

अगस्त के महीने में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के उच्च हिमालय क्षेत्रों में स्थित गांवों में बड़े स्तर पर धार्मिक मेलों का आयोजन होता है। इन्हीं धार्मिक मेलों में स्थानीय ग्रामीण, युवा लोग उच्च हिमालय में स्थित बुग्यालों में जाकर इन ब्रह्मकमल को बड़ी मात्रा में एकत्रित कर लाते हैं और अपने-अपने आराध्य देवों को अर्पित करते हैं। धार्मिक मेलों में शामिल होने वाले लोगों को भगवान के प्रसाद के रूप में इस ब्रह्मकमल को वितरित किया जाता है।


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