Sri Krishna Janmabhoomi and Shahi Eidgah Dispute: मथुरा की श्री कृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आएगा। दोपहर 2 बजे तक फैसला आने की उम्मीद है। जस्टिस मयंक कुमार जैन की सिंगल बेंच फैसला सुनाएगी। हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल की गई 18 में से 15 याचिकाओं की पोषणीयता पर इलाहाबाद हाईकोर्ट फैसला सुनाएगा। इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने 31 मई को अपना जजमेंट रिजर्व कर लिया था। अयोध्या विवाद की तर्ज पर इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई सीधे तौर पर कर रहा है।
हिंदू पक्ष की तरफ से दाखिल की गई 18 याचिकाओं में मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को श्री कृष्ण जन्म स्थान बताकर उसे हिंदुओं को सौंपे जाने की मांग की गई है। हिंदू पक्ष की ओर से विवादित परिसर का अयोध्या के राम मंदिर और वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर सर्वेक्षण कराए जाने की मांग की गई है। वहीं, शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने हिंदू पक्ष की याचिकाओं पर ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत आपत्ति दाखिल की थी। मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष की याचिकाओं को खारिज किए जाने की मांग की है।
आज तय होगा हिंदू पक्ष की याचिकाएं सुनवाई के लायक हैं या नहीं
आज का दिन हिंदू पक्ष के लिए बेहद अहम है, क्योंकि हाईकोर्ट से आज आने वाले फैसले से ही यह तय होगा कि मथुरा के मंदिर मस्जिद विवाद में हिंदू पक्ष की याचिकाएं सुनवाई के लायक हैं या नहीं। अगर हाईकोर्ट से मुस्लिम पक्ष की आपत्ति खारिज हो जाती है तो ही हिंदू पक्ष की याचिकाओं पर आगे सुनवाई हो सकेगी।
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हिंदू पक्षकारों की दलील (Sri Krishna Janmabhoomi and Shahi Eidgah Dispute)
- ईदगाह का पूरा ढाई एकड़ एरिया श्रीकृष्ण विराजमान का गर्भगृह है।
- शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी के पास भूमि का कोई ऐसा रिकॉर्ड नहीं है।
- श्रीकृष्ण मंदिर तोड़कर शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया है।
- बिना स्वामित्व अधिकार के वक्फ बोर्ड ने बिना किसी वैध प्रक्रिया के इस भूमि को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया है।
मुस्लिम पक्षकारों की दलील (Sri Krishna Janmabhoomi and Shahi Eidgah Dispute)
- मुस्लिम पक्षकारों की दलील है कि इस जमीन पर दोनों पक्षों के बीच 1968 में समझौता हुआ है। 60 साल बाद समझौते को गलत बताना ठीक नहीं है। लिहाजा मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
- उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत भी मुकदमा सुनवाई योग्य नहीं है।
- 15 अगस्त, 1947 के दिन जिस धार्मिक स्थल की पहचान और प्रकृति जैसी है वैसी ही बनी रहेगी। यानी उसकी प्रकृति नहीं बदली जा सकती है।