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भाजपा की रणनीति बिहार में लोकसभा में कितनी कारगर साबित होगी


लोकसभा चुनाव की रणनीति मानो भाजपा ने 2023 में ही तय कर ली थी। इसीलिए अयोध्या में राम मंदिर के शुभारंभ के साथ केंद्र की सरकार भाजपा ने बिहार पर निशाना साधा और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा करके एक तीर से दो निशाने साध लिए। यह अवार्ड क्या अनाउंस हुआ सियासी गलियारे में हलचल मच गई। हलचल ऐसी मची कि चुनावी सियासत का जोड़ तोड़ शुरु हो गया। जोड़ तोड़ ऐसा बना कि बिहार का राजनीतिक समीकरण ही बदल गया। ऐसा बदला कि पुराने दोस्त और पुराने दुश्मन एक बार फिर गले मिल गए और 9 वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले लिए। राजनैतिक जानकारों की मानें तो नीतीश कुमार के एनडीए के साथ आने से बिहार की 50 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी वाली सियासी समीकरणों पर दावेदारी मजबूत हुई है। नीतीश कुमार सरकार की कैबिनेट में विस्तार के साथ सोशल इंजीनियरिंग का पूरा समीकरण साधा जाना तय माना जा रहा है, जिससे भाजपा आने वाले 2024 के चुनाव में खुद को स्थापित कर सके और साथ ही 2025 पर भी निशाना साध लिया गया।

भाजपा ने भले ही नीतीश कुमार के साथ गठबंधन कर बिहार की सत्ता में वापसी की हो, लेकिन उनकी निगाह 2024 के लोकसभा चुनाव में व्यक्तिगत पार्टी के तौर पर मजबूत वापसी की है। जानकार मानते हैं कि भाजपा ने जातिगत समीकरणों के लिहाज से नीतीश कैबिनेट में बड़ा दांव खेला है। भाजपा ने सम्राट चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाकर न सिर्फ मजबूत चेहरे को सामने किया है। बल्कि ओबीसी में कोइरी समुदाय से सीधे तौर पर कनेक्ट किया है। इसी तरह भाजपा ने विजय कुमार सिन्हा को उपमुख्यमंत्री बनाकर अगड़ों में मजबूत दावेदारी पेश कर दी है।

भाजपा ने तकरीबन 4 फीसदी आबादी वाले कोइरी समुदाय के सम्राट चौधरी, तीन फीसदी आबादी वाले भूमिहार समुदाय के विजय कुमार सिन्हा और अति पिछड़ा वर्ग के कहार समुदाय से आने वाले प्रेम कुमार को भी कैबिनेट में जगह दी है। मंत्रिमंडल में भाजपा ने भूमिहार, कोइरी और कहार समुदाय का समीकरण साधा गया है। अब जैसे ही कुछ दिनों में मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, उसमें पूरा सोशल इंजीनियरिंग का ताना-बाना बुना जाना माना जा रहा है। अब तक भाजपा ने बिहार में अपने बलबूते पूर्ण बहुमत की सरकार अभी तक नहीं बनाई है। भाजपा के रणनीतिकार भी मानते हैं कि भले ही बिहार में सरकार का कार्यकाल डेढ़ साल से काम का हो, लेकिन उनके लिए यह एक बड़ा मौका है। जातिगत समीकरणों के लिहाज से पिछड़ों अति पिछड़ों और सवर्णों के साथ दलितों का वोट बैंक अपने पक्ष में लाने की पूरी तैयारी है।

भाजपा बिहार में सियासी समीकरणों के उलझन में इस तरह फंसी कि अब तक वहां पर पूर्ण रूप से कभी सरकार नहीं बना सकी। लेकिन अब भाजपा में जातिगत समीकरणों को साधने की पूरी बिसात बिछाई है। बिहार में अति पिछड़ा वर्ग की आबादी 36 फ़ीसदी से ज्यादा है। बृजेश कहते हैं कि इस वोट बैंक पर नीतीश कुमार का मजबूत दावा रहा है। लेकिन जिस तरह से केंद्र सरकार की योजनाओं में इस वर्ग को तरजीह दी गई है, उससे भाजपा भी इस पर मजबूत दावेदारी कर रही है।

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के साथ भाजपा ने पिछड़ों और अतिपिछड़ों को अपने पाले में करने की सियासत भी बढ़ा दी है। क्योंकि अब नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ गए हैं, इसलिए आने वाले लोकसभा चुनावो में 40 सीटों की दावेदारी भी भाजपा के नेता कर रहे हैं। बिहार में नई जाति जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक अनुसूचित जाति की आबादी तकरीबन 20 फ़ीसदी है। 6 फ़ीसदी के करीब पासवान और साढ़े पांच फीसदी के करीब रविदास की आबादी है। 3 फ़ीसदी के लगभग मुसहर बिहार के सियासत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भाजपा ने नीतीश को अपने खेमे में लाकर 2024 को मजबूती तो प्रदान कर दी है। तो वहीं राजद प्रमुख के घर ईडी की गिरफ्तारी का कहर बरप गया है। वहीं मीसा भारती ने इस रेड को 2024 के चुनाव से इसे जोड़कर देखा है। अब इतना तो तय लग रहा है कि भाजपा ने राजद को 2024 के कांटे के रुप में साफ कर दिया है।


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