भारत के ओडिशा राज्य के प्रसिद्ध रेत-कलाकार सुदर्शन पटनायक ने ओडिशा के प्रमुख फसल उत्सव ’’ नुआखाई जुहार’’ की रेत से बनी लुभावनी रचनाएँ अपने सोशल मीडिया पर साझा कीं । ओडिशा के कृषि त्योहार नुआखाई का जश्न मनाते हुए, सुदर्शन पटनायक ने लुभावनी रंगीन रेत कला मुर्तियां बनाई । नुआखाई त्योहार चावल के नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। यह गणेश चतुर्थी के अगले दिन मनाया जाता है।
नुआखाई पर्व का महत्व
नुआखाई ओडिशा का प्रमुख त्यौहार है। नुआखाई भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। ‘नुआखाई’ का अर्थ है ‘नया खाना’ (नुआ = नया, खाई = खाना)। खेतों में खड़ी नई फसल के स्वागत में यह मुख्य रूप से ओड़िशा के किसानों और खेतिहर श्रमिकों द्वारा मनाया जाने वाला पारम्परिक त्यौहार है, लेकिन समाज के सभी वर्ग इसे उत्साह के साथ मनाते हैं। लोग ‘नुआखाई जुहार’ और ‘भेंटघाट’ के लिए एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं। इस दिन फसलों की देवी अन्नपूर्णा सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है। सम्बलपुर में समलेश्वरी देवी, बलांगीर-पाटनागढ़ अंचल में पाटेश्वरी देवी, सुवर्णपुर (सोनपुर) में देवी सुरेश्वरी और कालाहांडी में देवी मानिकेश्वरी की विशेष पूजा की जाती है।
नुआईखाई का इतिहास
ओड़िशा में नुआखाई का इतिहास बहुत ही प्राचीन और वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। बारहवीं शताब्दी में हुए चौहान वंश के प्रथम राजा रमईदेव को इस परंपरा का जनक माना जाता है । रमईदेव ने लोगों के जीवन में स्थायित्व लाने के लिए उन्हें स्थायी खेती के लिए प्रोत्साहित करने की सोची और इसके लिए धार्मिक विधि-विधान के साथ नुआखाई पर्व मनाने की शुरुआत की। नये धान के चावल को पकाकर तरह-तरह के पारम्परिक व्यंजनों के साथ घरों में और सामूहिक रूप से भी “नवान्हभोज” यानी नये अन्न का भोज बड़े चाव से किया जाता है। सबसे पहले आराध्य देवी-देवताओं को भोग लगाया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद ‘नुआखाई ‘ का सह-भोज होता है। इस पर्व के लिए लोग नये वस्त्रों में सज-धजकर एक-दूसरे को नुआखाई जुहार करने आते-जाते हैं। गाँवों से लेकर शहरों तक खूब चहल-पहल और खूब रौनक रहती है। सार्वजनिक आयोजनों में पश्चिम ओड़िशा की लोक संस्कृति पर आधारित पारम्परिक लोक नृत्यों की धूम रहती है।