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मैं ‘अयोध्या’ प्रभु श्रीराम का एक अनन्य भक्त


मैं ‘अयोध्या’ प्रभु श्रीराम का एक अनन्य भक्त बोल रहा हूं। आज मैं बहुत प्रसन्न हूं। प्रसन्नता का कारण बहुत जायज़ है। 500 सालों के बाद आज मेरे प्रभु श्रीराम एक लम्बे अरसे के उपरांत अपने नए भवन में पूर्णतया विराजित हुए हैं। त्रेता युग में प्रभु श्रीराम एकबार मेरा त्याग कर अपने पिता के वचन का पालन करने के लिए वनवास चले गए थे। मैं तब भी उनके वियोग में रोया था पर एक आस थी कि 14 वर्षों के बाद वो जरुर आयेंगे। पर 14 वर्षों का वनवास में एक एक पल मेरे लिए कितना भारी था यह सिर्प मैं ही समझ सकता हूं क्योंकि जिसके मस्तक पर प्रभु श्रीराम का वरदहस्त ना हो।

कैसा महसूस होता है ये सिर्फ मै और भरत जी ही समझ सकते हैं. पहले तो मैं बहुत भाऊक हो जाता था.. पर धीरे धीरे भरत जी की आत्मीयता और प्रभु राम के चरणों में उनकी प्रीति और समर्पण देखकर मेरे मन में संतोष हुआ कि मेरे अलावा पूरी अयोध्या प्रभु श्रीराम को अपनी स्मृति में बसाए हुए हैं। अयोध्या उनके बिना सूनी सी हो गई थी।


फिर धीरे धीरे दिन बीतने लगे और एक दिन सूचना आई कि प्रभु श्रीराम अयोध्या वापस आ रहे हैं। एकबार तो मैं यकीन ही नहीं कर पा रहा था. पर पता चला कि श्री हनुमान जी वेश बदलकर भरत जी के पास आए और यह सूचना उन्हें दी हैं। तब कलेजे को ठंडक मिली और एक नई उत्कठा हुई ओर एक ऐसी बेचैनी कि कब मैं अपने प्रभु श्रीराम को देख पाउँगा।

वो कुछ काल का इंतज़ार कई दशकों से भी बड़े अंतरल समान प्रतीत हो रहा था। उसके बाद हिन्दुओं का राज और अस्तित्व खत्म सा होने लगा और मुस्लिम साम्राज्य अपना पैर पसारने लगा। हिंदुत्व और हिन्दू धर्म के साथ अन्याय और अत्याचार बढ़ने लगा। उसके बाद अंग्रेजो का शासनकाल आया और भारत में मंदिरों कि अवस्था बद से बदतर होने लगी। मुस्लिम शासनकाल में ही मंदिरों मठों की हालत मिट्टी सामान हो चुकी थी। धार्मिक ग्रंथों को जलाना उनका अपमान करना आम बात हो गई थी। बाबर से लेकर औरंगजेब तक का शासनकाल हिन्दुओं पर कुठाराघात पर कुठाराघात चल रहा था।


कलयुग में मेरे प्रभु श्रीराम 1526 का साल जहां से राम जन्म भूमि की कहानी आरंभ होती है। इस समय मुगल शासक बाबर भारत आये। दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई। यह मस्जिद उसी जगह बनी जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। बाबर के सम्मान में मीर बाकी ने इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद दिया। यह वो काल था जब मुस्लिम साम्राज्य अपना पैर भारत में पसार रहा था। मुगलों और नवाबों के शासन के दौरान 1528 से 1853 तक इस मामले में हिंदू बहुत खुलकर सामने नहीं आ पा रहे थे। पर अब मुस्लिम शासक भी कमजोर पड़ रहे थे और अंग्रेजी हुकूमत प्रभावी हो रही थी।इस काल में ही अयोध्या के राम जन्मस्थान मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई। जिसके बाद हिन्दुओं का व्यथित दिल कराहने लगा।
 
1858 में हुई घटना के 27 साल बाद 1885 में राम जन्मभूमि के लिए लड़ाई अदालत पहुंची। जब, निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने फैजाबाद के न्यायालय में स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दायर किया। दास ने बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की। जज ने फैसला सुनाया कि वहां हिंदुओं को पूजा-अर्चना का अधिकार है, लेकिन वे जिलाधिकारी के फैसले के खिलाफ मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की अनुमति नहीं दे सकते थे।
 
एक तरफ जहां देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाकर आजादी लेने की मुहिम चल रही थी। वहीं उसके इतर राम जन्मभूमि की जंग भी जारी थी पर जोरों पर लोगों को कानोंमें सुनाई नहीं दे रहा था। देश के आजाद होने के दो साल बाद 22 दिसंबर 1949 को ढांचे के भीतर गुंबद के नीचे मूर्तियों का प्रकटीकरण हुआ। 


1947 के बाद आजादी के बाद पहला मुकदमा हिंदू महासभा के सदस्य गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 को सिविल जज, फैजाबाद की अदालत में दायर किया। विशारद ने ढांचे के मुख्य गुंबद के नीचे स्थित भगवान की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना की मांग की। करीब 11 महीने बाद 5 दिसंबर 1950 को ऐसी ही मांग करते हुए महंत रामचंद्र परमहंस ने सिविल जज के यहां मुकदमा दाखिल किया। मुकदमे में दूसरे पक्ष को संबंधित स्थल पर पूजा-अर्चना में बाधा डालने से रोकने की मांग रखी गई। 

3 मार्च 1951 को गोपाल सिंह विशारद मामले में न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष को पूजा-अर्चना में बाधा न डालने की हिदायत दी। ऐसा ही आदेश परमहंस की तरफ से दायर मुकदमे में भी दिया गया।


17 दिसंबर 1959 को रामानंद संप्रदाय की तरफ से निर्मोही अखाड़े के 6 व्यक्तियों ने मुकदमा दायर कर इस स्थान पर अपना दावा पेश किया। जिसमें मांग रखी गई कि रिसीवर प्रियदत्त राम को हटाकर उन्हें पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए। यह उनका अधिकार है। मुकदमों की कड़ी में एक और मुकदमा 18 दिसंबर 1961 को दर्ज किया गया। यह मुकदमा उत्तर प्रदेश के केंद्रीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दायर किया। कहा गया कि यह जगह मुसलमानों की है। ढांचे को हिंदुओं से लेकर मुसलमानों को दे दिया जाए। ढांचे के अंदर से मूर्तियां हटा दी जाएं। मामला न्यायालय में चलता रहा और आंदोलन भी।
 
1982 का वह साल जब विश्व हिंदू परिषद ने राम, कृष्ण और शिव के स्थलों पर मस्जिदों के निर्माण को साजिश करार दिया और इनकी मुक्ति के लिए अभियान चलाने का एलान किया। दो साल बाद 8 अप्रैल 1984 को दिल्ली में संत-महात्माओं, हिंदू नेताओं ने अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि स्थल की मुक्ति और ताला खुलवाने को आंदोलन का फैसला किया। 

इसके बाद एक फैसला 1 फरवरी 1986 को आया जब फैजाबाद के जिला न्यायाधीश केएम पाण्डेय ने स्थानीय अधिवक्ता उमेश पाण्डेय की अर्जी पर इस स्थल का ताला खोलने का आदेश दे दिया। फैसले के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दायर अपील खारिज हो गई। राजीव गांधी के कार्यकाल में गर्भ गृह का ताला खोल दिया गया। उसके बाद पूरे देश में हाहाकार सा मच गया।


साल 1989 इस समय देश के प्रधानमंत्री वी. पी. सिंह थे। जो मंडल आयोग के कारण चर्चा में थे। पूरे देश में आए दिन लोगों के जलने की खबरें आम हो गईं थीं। इसी बीच 1989 में प्रयाग में कुंभ मेले के दौरान मंदिर निर्माण के लिए गांव-गांव शिला पूजन कराने का फैसला हुआ। इसके साथ ही 9 नवंबर 1989 को श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर के शिलान्यास की घोषणा की गई। काफी विवाद और खींचतान के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास की इजाजत दे दी। बिहार निवासी कामेश्वर चौपाल से शिलान्यास कराया गया।


1990 के दशक में आंदोलन तेज हो रहा था। सभी संत महात्मा अपने अपने तरीके से राम आंदोलन को चेतना प्रदान कर रहे थे। दो पीठों के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद जी महाराज साल 1990 में अपना कारवां लेकर अयोध्या की ओर रवाना हुए पर बीच में ही उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उन्हें एक स्थान पर नजरबंद करवा लिया। जिससे राम मंदिर कारवां ठप पड़ जाय और मुस्लिम वोट बैंक उन्हें आसानी से मिल जाये। इसके बाद उन्हें मुस्लिम पक्ष का पक्षधर भी माना जाने लगा और उनका वोट बैंक भी बना। इसी समय भाजपा के मुख्य कर्ता-धर्ता सितंबर 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी रथ यात्रा लेकर निकले। इस यात्रा ने राम जन्मभूमि आंदोलन को और तीव्र बना दिया। पूरे दगेश में एक भावना उमड़ पड़ी। हिन्दू राम भक्ति के जोश में डूबने लगे। पर एकबार फिर से वही हुआ आडवाणी जी के साथ जो शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद जी के साथ हुआ था…अर्थात् लाल कृष्ण आडवाणी जी भी गिरफ्तार हो गए। गिरफ्तारी के साथ केंद्र में सत्ता परिवर्तन भी हुआ। भाजपा के समर्थन से बनी जनता दल की सरकार गिर गई। कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। ये सरकार भी ज्यादा नहीं चली। नए सिरे से चुनाव हुए और एक बार फिर केंद्र में कांग्रेस सत्ता में आई और पी वी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने।

जनमानस में राम भक्ति की आंधी लहू की तरह बह रही थी। कारवां टूटते बनते एक दिन आया जब राम भक्त जावालामुखी बनकर भबक गए। तारीख थी 6 दिसंबर 1992। इस दिन अयोध्या पहुंचे हजारों कारसेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया। हजारों की तादात में संत समुदाय अयोध्इया अलग अलग जत्था में पहुंचे थे। जिससे पुलिस को शक ना हो और उन्हें कोई ना रोके। देश के हर राज्य से अमूमन राम भक्त अपने सिर पर कफन बांधकर निकले। इसी दिन बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया गया। इसी जगह उसी दिन शाम को अस्थायी मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई। केंद्र की तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार ने राज्य की कल्याण सिंह सरकार सहित अन्य राज्यों की भाजपा सरकारों को भी बर्खास्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सहित देश में कई जगह सांप्रदायिक हिंसा हुई। जिसमें अनेक लोगों की मौत हो गई। अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि थाना में ढांचा ध्वंस मामले में भाजपा के कई नेताओं समेत हजारों लोगों पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया। इसके साथ ही राम जी की लड़ाई अपने भक्तों के माध्यम से तेज हो गई।


बाबरी गिराने के दो दिन बाद 8 दिसंबर 1992 को अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया गया था। वकील हरिशंकर जैन ने उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में गुहार लगाई कि भगवान भूखे हैं। राम भोग की अनुमति दी जाए। करीब 25 दिन बाद 1 जनवरी 1993 को न्यायाधीश हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी। 7 जनवरी 1993 को केंद्र सरकार ने ढांचे वाले स्थान और कल्याण सिंह सरकार द्वारा न्यास को दी गई भूमि सहित यहां पर कुल 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया। 


अप्रैल 2002 में उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने विवादित स्थल का मालिकाना हक तय करने के लिए सुनवाई शुरू हुई। उच्च न्यायालय ने 5 मार्च 2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को संबंधित स्थल पर खुदाई का निर्देश दिया। 22 अगस्त  2003 को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने न्यायालय को रिपोर्ट सौंपी। इसमें संबंधित स्थल पर जमीन के नीचे एक विशाल हिंदू धार्मिक ढांचा (मंदिर) होने  की बात कही गई।


30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस स्थल को तीनों पक्षों श्रीराम लला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया। न्यायाधीशों ने बीच वाले गुंबद के नीचे जहां मूर्तियां थीं, उसे जन्मस्थान माना। इसके बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा।

2014 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ले चुके थे। भाजपा ने हमेशा अपने ऐजेंडे में राम मंदिर की बात कही। इसकी अनेकों बार विपक्षी दलों द्वारा आलोचना भी हुई पर भाजपा अपने हर चुनावी मेनेफेस्टो में राम मंदिर रहता ही था। 21 मार्च 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की। यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है। अयोध्या में राम जन्मभूमि की लड़ाई अब देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच चुकी थी। 21 मार्च 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यस्थता से मामले सुलझाने की पेशकश की। यह भी कहा कि दोनों पक्ष राजी हों तो वह भी इसके लिए तैयार है। 


6 अगस्त 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिदिन सुनवाई शुरू की। 16 अक्तूबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई पूरी हुआ और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले 40 दिन तक लगातार सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।

9 नवंबर 2019 को 134 साल से चली आ रही लड़ाई में अब वक्त था अंतिम फैसले का। 9 नवंबर 2019 को सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित स्थल को श्रीराम जन्मभूमि माना और 2.77 एकड़ भूमि रामलला के स्वामित्व की मानी। वहीं, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावों को खारिज कर दिया गया। इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार तीन महीने में ट्रस्ट बनाए और ट्रस्ट निर्मोही अखाड़े के एक प्रतिनिधि को शामिल करे। इसके अलावा यह भी आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश की सरकार मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक रूप से मस्जिद बनाने के लिए 5 एकड़ भूमि किसी उपयुक्त स्थान पर उपलब्ध कराए।


कानूनी लड़ाई में भाजपा और राम भक्तों की जीत हो चुकी थी। अब बारी थी निर्माण की 5 फरवरी 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की घोषणा की। ठीक छह महीने बाद 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी गई, जिसमें पीएम मोदी शामिल हुए।


134 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद अब अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। राम जन्मभूमि पर मंदिर के पहले चरण का काम पूरा हो गया है। 22 जनवरी 2024 की वह ऐतिहासिक तारीख है जब मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी। 23 जनवरी से मंदिर आम लोगों के लिए खुल जाएगा।

21 वीं सदी में अब साल 2024 संवत 2080 में कलयुग के प्रथम चरण में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में मेरे प्रभु श्रीराम अपने नये भवन में आज विराजमान हो गए हैं। आज वैसी ही संतुष्टि का अनुभव हो रहा है जैसा त्रेता युग में प्रभु श्रीराम के आगमन पर हुआ था। कहते हैं ना अंत भला तो सब भला। बस इसी तरह मेरे प्रभु श्रीराम का वरदहस्त सिर्फ मुझपर ही नहीं बल्कि पूरे देश और विश्व पर यूंहीं बना रहे। अयोध्या में लगात है राम राज्य आ गया है। विश्व भर के लोगों को यहां देखकर ऐसा लग रहा है – जैसे वसुधैव कुटुम्बकम।।


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