2014 का साल जब गुजरात में हैट्रिक मार चुके नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो देश का माहौल एकदम बदल चुका था। भाजपा की लहर पूरे देश में आंधी तूफान की तरह चल रही थी। भाजपा ने अपनी मजबूत रणनीति के तहत पूरे उत्तर भारत में अपना वर्चस्व बना लिया था। अमित शाह भाजपा के अध्यक्ष थे। उनकी नजर बंगाल पर पड़ी और उसे भाजपा का बना लेने की चाहत पैदा हो गई। साल 2014 से अमित शाह ने बंगाल में धुआंधार रैलियां कर अपनी रणनीतियां चालें सब चल लीं। लेकिन, ममता बनर्जी का गढ़ उनके हाथ नहीं आ पाया।
कहते हैं सब्र का फल मीठा होता है। अमित शाह ने सोचा पहली तरकीब काम नहीं आई पर एक दिन बंगाल पर भाजपा का झंड़ा लहराएगा। इसी विश्वास और उत्साह से अमित शाह फिर बंगाल को अपना बनाने में लग गए। ऐसा देखा भी गया था कि पहले ममता और मोदी के संबंध अच्छे थे पर अमित शाह की चाहत ने ममता और शाह को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया, जिसके बाद ये जंग मोदी-शाह बनाम ममता हो गई।
ममता अपने तेवर में आ गईं और केंद्र के हर फैसले पर आपत्ति और विरोध जताने लगीं। 2016 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त हिंसा के बीच 211 सीटें टीएमसी ने जीती थी। इस चुनाव के बाद फिर शाह जी का सपना एकबार टूट गया और ममत बनर्जी विजयी घोषित हुईं। ममता की शाख बंगाल में और मजबूत हो गई तो शाह की लड़ाई और टफ होती जा रही थी। फिर आया 2019 का लोकसभा चुनाव, जिसमें भाजपा ने अपना पूरा दमखम लगाया। मोदी और शाह की धुआंधार रैलियां हुईं पर ममता का किला ढह न सका। उधर मोदी और शाह के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अब इस जंग के मैदान में कूद पड़े। लेकिन, बंगाल की सीमा इतनी चाक चौबंद ममता दीदी ने कर दी कि योगी अपना हैलीकाप्टर भी न उतारा सके। फलस्वरुप उन्हें फोन से बालुरघाट की रेली को संबोधित करना पड़ा था।
एक बात जरुर है कि भाजपा अपने प्रयास में सफलता जरूर हासिल कर रही थी। जनता के दिल में कहीं न कहीं भाजपा अपनी जगह बनाने में कामयाब हो रही थी। ममता बनर्जी जमीन से जुड़ी हुई नेता हैं पर शाह के लगातार आक्रमणों से परेशान होने के कारण अपनी जमीन मजबूत करने के लिए बंगाल के विकास में और तेजी से जुट गईं। ममता बनर्जी ने बंगाल मीन्स बिजनेस के तहत फंडिंग के लिए रेड कार्पेट बिछा दिए। नए बंगाल को विदेशों के तर्ज पर सजाने लगी। पर अमित शाह अपनी नई-नई शतरंज की चाल चल रहे थे। नामी गिरामी लोगों को स्टार प्रचारकों को पदों की लुभावनी फहरिस्त परोस रहे थे पर बंगाल की जनता कमल का पत्ता साबित हुई।
तृणमूल को 22 सीटें मिली जबकि भाजपा को 18 सीटें। इस बढ़त से बंगाल की जनता से ज्यादा भाजपा में उत्साह छा गया कि अगले विधानसभा चुनावों मे तो भाजपा की जीत तय। अमित शाह का सपना साकार होने का समय आ गया। बंगाल में भाजपा की लहर दूसरे राज्यों की तरह आ ही गई। अबकी बार बंगाल में भाजपा की सरकार बनेगी, ऐसा राज्य के बाहर रहने वालों लोगों के मन में घर करने लग गया। मीडिया माहौल बनाने लग गई। चारों ओर धूल धुंआ की तरह भाजपा की लहर आकाश में छाने लगी। विधानसभा के चुनाव फिर बंगाल में आ गए।
साल 2021 में आई कोरोना की लहर अभी खत्म नहीं भी हुई। हिंसा, आरोप प्रत्यारोप, अमित शाह और बाकी नेताओं का स्टार प्रचारकों मिथुन चक्रवर्ती जैसे नेता भी भाजपा का गुणगान करने लग गए। अमित शाह गरीब और पिछड़े स्थानीय कलाकारों और नेताओं के घर भोजन करने लगे। हर कोई भाजपा में शामिल होने लगा। बंगाल के मन की थाह कोई लगा नहीं सका। टीएमसी जैसे खाली होने लगी। हर नेता भाजपा का दामन थामने लगा। ऐसा लगा जैसे ममता अकेले हो गईं और और बंगाल उनके हाथ से निकल ही गया मानो….पर ममता बनर्जी की रणनीति अमित शाह पर भारी पड़ गई।
जी हां ममता परिणाम आने के पहले अकेले और बेसहारा सी दिख रही थीं। लेकिन, परिणाम आने के बाद ममता के पास वापसी करने वाले नेताओं की कतार लग गई। फिर से दीदी का गुणगान करने लगे। 294 में से 215 सीटों पर अकेले जीत हासिल कर ली और 77 सीटें भाजपा के खाते में। इसके साथ ही बंगाल एकबार फिर से अमित शाह के हाथ से बंगाल छिन गया। एक बात खास रही कि ममता बनर्जी खुद अपनी सीट नहीं बचा पाई थीं। जीतने के बाद अपनी पुरानी सीट से प्रियंका टिबरेवाल जो, पेशे से वकील हैं उन्हें हराकर अपनी जीत दर्ज करवानी पड़ी।
भाजपा में मायूसियत का आलम ऐसा कि गले की हड्डी उगली जाय न निगली जाए। इस बार फिर 2024 का लोकसभा चुनाव हो रहा है, जिसमें माना जा रहा है कि ममता की शाख खत्म होती जा रही है। उनका राजनीतिक जीवन अब ढलान पर आ गया है। पर क्या सचमुच दीदी ने अपनी जमीन खो दी है। क्या बंगाल में उनका वर्चस्व खत्म होने वाला है। क्या बंगाल आने वाले चुनावों में हिंसा नहीं देखेगा….? क्या बंगाल की जनता सचमुच दीदी से छुटकारा पाना चाहती है…।