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धुआंधार रैलियों के बाद भी किसकी बात कितनी दूर

Lok Sabha Election 6th Phase

वन नेशन वन इलेक्शन, वन नेशन वन लीडर प्रधानमंत्री मोदी विश्व के समक्ष एक नया भारत एक उन्नत भारत प्रस्तुत करना चाहते हैं। मोदी ने 18वीं लोकसभा चुनाव के दौरान पूरे देश में तकरीबन 206 इवेंट्स, 145 पब्लिक इंवेंट्स, 96 कैंपेन्स मोदी जी ने 76 दिनों में समेट कर जनता के दिलों को जीत पाएं या नहीं। इसका फैसला तो 4 जून को होगा। साथ ही 80 इंटरव्यू मोदी जी ने देकर जनता के करीब पहुंचने का काफी प्रयास भी किया है। मोदी 2014 के बाद से ही धीरे-धीरे अपने आपको एक ब्रैंड बनाने में लग गए और 2019 के चुनाव में हम सबने देखा कि किस तरह पूरे देश में मोदी के नाम पर वोट पड़े। मोदी ने वन नेशन वन लीडर की स्ट्रैटेजी के तहत चुनाव चाहे विधानसभा के हों या लोकसभा के, मोदी और उनकी टीम पूरे जोर शोर से प्रचार प्रसार में लग जाती थी।

महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव हो या मध्यप्रदेश का उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री से लेकर जो भी स्टार प्रचारक होते हैं वो मोदी जी के आगे या पीछे जोर शोर से प्रचार प्रसार में जुट जाते हैं। प्रचार के पीछे की राजनीति यह है कि जो जनता को अपने लोकलुभावन भाषण के मोह पाश में बांध ले मोदी जी उसे अपने स्टार प्रचारक के तौर पर चुन लेते हैं। वहीं कांग्रेस ने 55 दिन 108 जनसभाएं 100 से अधिक मीडिया बाइट्स, 5 प्रिंट इंटरव्यू और 1 टीवी इंटरव्यू- ऐसा रहा कांग्रेस की महासचिव एवं स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी का मैराथन चुनाव अभियान। प्रियंका गांधी ने 16 राज्यों और 1 केंद्र शासित राज्यों का दौरा कर चुकी हैं। प्रियंका गांधी एक दिन में औसतन 8-10 सभाएं कीं हैं।

इसी तरह सभी पार्टियों ने अपने अपने हैसियत और दम के हिसाब से रैलियां, इंटरव्यू और जनसभाएं की है। बात यह है कि क्या ये रैलियां वोटों में तब्दील होंगी या नहीं। इतना बड़ा काफिला, भीड़ में आने वाली जनता, अनगिनत कारें पर क्या भौकाल मचा देने वाली व्यवस्था जनता के काम आती है। जनता इससे मोहित हो जाती है। यह बात तोचुनाव नतीजों के दिन ही आंकी जा सकती है। उससे पहले जनता के मन को पहचानना बहुत मुश्किल है।

बात जहन में यह भी उठती है कि आखिर सोशल मीडिया का सहारा लेने के बावजूद क्यों पार्टियां इतनी रैलियां करती हैं। जाहिर सी बात है नेता को पार्टी को हर एक व्यक्ति तक पहुंचना होता है जिसके लिए सोशल मीडिया के अलावा जमीन पर भी इन नेताओं के उतरना पड़ता है। जमीन पर नहीं उतरने से जनता के दिल तक पहुंचना आज भी मुश्किल है। इसलिए हर संभव प्रयास और हर सुलभ साधन का प्रयोग आज का नेता करता है जिससे कोई कसर छूट न जाए। अप्रैल 2024 तक दुनिया भर में 5.44 बिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता थे, जो वैश्विक आबादी का 67.1 प्रतिशत था। इस कुल में से, 5.07 बिलियन, या दुनिया की 62.6 प्रतिशत आबादी, सोशल मीडिया उपयोगकर्ता थे। दुनिया भर में 5.07 बिलीयन लोग अब सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं।

इस तरह देखा जाय तो करीब 50 करोड़ भारतीय सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं। इसके बावजूद नेताओं को सोशल मीडिया पर एक बड़ा बजट खर्च करने के बाद भी रैलियों का दौर, जनसभाओं का सैलाब से इलेक्ट्रानिक मीडिया के अलावा सोशल मीडिया पर भी यह सैलाब लाइभ दिखता है तो जनता का उत्साह शायद कुछ बढ़ जाता है। भले यह जनसभाओं वाली जनता कुछ समझे या नहीं इससे नेताओं को मतलब नहीं होता। उन्हें मतलब होता है भीड़ से जो ना कांग्रेस की होती है ना ही भाजपा की और ना ही सपा, बसपा या आप की।

ये पैसा लेकर भीड़ बढ़ाने वाली जनता है जो नाश्ता खाना उड़ाने के लिए आती है। शायद यही इनका बिजनेस है। नेता जनसभाओं में उमड़ी भाड़े की भीड़ से उस जनता तक पहुंचना चाहते हैं जो कभी भी भीड़ का हिस्सा नहीं होती जो एयर कंडिशनर कमरों में अपना काम करती है। उसके पास भीड़ में जाने की फुरसत नहीं होती और टीवी हो या सोशल मीडिया के जरिए नेता की बात उनतक पहुंच ही जाती है।


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