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कौन थीं राजकुमारी कौल जिनसे जुड़ा था अटल बिहारी का नाम?

Atal Bihari Vajpayee | bjp | pm narendra modi | shreshth bharat

कभी संसद में गरजे, कभी विपक्ष पर बरसे, कभी पाकिस्तान को लगाई फटकार, तो कभी देश के दुश्मनों को दी ललकार, जिनका कोई सानी नहीं, जिनके आगे नतमस्तक थे विपक्ष के सभी नेता काल के कपाल पर लिखते थे, मिटते थे। चलते फिरते गीत नया गाते थे। ऐसे थे देश के दसवें प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी।

 कविता – अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा

दशकों पहले देश में कमल खिलाने का जो सपना अटल बिहारी वायपेयी ने देखा था, वो अब साकार हो चुका है। आज देश के ज्यादातर राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। वही भारतीय जनता पार्टी जिसे अटल और आडवाणी ने अपने खून से सींचा था। कभी दो-चार लोगों को साथ लेकर चलने वाली पार्टी आज देश ही नहीं पूरी दुनिया में सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का दर्जा हासिल कर चुकी है। जहां इसके पीछे देश के मौजूदा प्रधानमंत्री की मेहनत और काबिलियत है तो वहीं इसकी नींव को मज़बूत करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का दृढ़ संकल्प भी है। अटल जी और मोदी का रिश्ता कितना गहरा था उसे समझने के लिए आपको वीडियो दिखाते हैं। देखिए कैसे सैकड़ों कार्यकर्ताओं की भीड़ में अटल जी मोदी को अपने पास बुलाते हैं और उन्हे दुलारते हैं। उस वक्त मोदी संगठन के महज़ एक कार्यकर्ता थे, लेकिन उनकी मेहनत और संगठन के प्रति सच्ची निष्ठा ने उन्हें अटल के करीब ला दिया था। आगे चलकर इसी का फल उन्हें मिला वो पहले सीएम औऱ फिर पीएम बने।

आपको एक किस्सा सुनाते हैं। ये बात 1 अक्टूबर 2001 की है। प्रधानमंत्री कार्यालय से नरेंद्र मोदी को फोन करके अटल जी का संदेश पहुंचाया गया। फोन पर कहा गया कि प्रधानमंत्री जी आपसे मिलना चाहते हैं। उस वक्त मोदी दिल्ली में बीजेपी के पुराने ऑफिस के पीछे बने एक छोटे से कमरे में रहते थे। पीएम ने बुलाया था तो मोदी भागे दौड़े पहुंचे। मोदी को देखते ही अटल जी ने कहा – आपको सीएम बनाकर गुजरात भेज रहे हैं। अगले साल होने वाले चुनाव की तैयारी कीजिए। ये सुन कर मोदी हैरान हो गए। उन्होने कहा मैं कैसे मैं गुजरात की राजनीति से 3 साल से दूर हूं। अब मैं दिल्ली में रहता हूं तो फिर मैं कैसे ये ज़िम्मेदारी निभा पाउंगा। अटल जी ने उन्हें काफी देर समझाया तब कहीं जाकर मोदी तैयार हो गए। वाजपेयी जी ने काफी सोच समझकर ये फैसला लिया था जिसके नतीजे बहुत दूरगामी होने वाले थे। जिसे देखने के लिए आज अटल जी तो हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके दूरगामी दृष्टिकोण की बदौलत ही आज देश को नरेंद्र मोदी जैसा सफल प्रधानमंत्री मिल पाया है। जो एक नहीं, दो नहीं बल्कि तीसरी बार सरकार बना सकता है। वरना एक वक्त ऐसा भी होता था जब तीन महीने में सरकारें गिर जाती थीं।

तो दोस्तों ये तो बात हुई मोदी की अब आपको बताते हैं। मोदी को बनाने वाले अटल जी कैसे खुद का नाम पीएम उम्मीदवार के लिए तय किए जाने पर चौंक गए थे। ये घटना 12 नवंबर 1995 की है। जब मुंबई में बीजेपी का महा अधिवेशन चल रहा था। उस वक्त के बीजेपी के महासचिव गोविंदाचार्य ने पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी से कहा – आपने ये क्या किया? आडवाणी जी पहले तो कुछ देर चुप रहे। फिर भारी मन से जवाब दिया कि ऐसा ही करना होगा। दरअसल, ये दोनों नेता 1996 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को बीजेपी की तरफ से पीएम कैंडिडेट बनाने की बात कर रहे थे। आडवाणी के फैसले से गोविंदाचार्य इसलिए हैरान थे क्योंकि उस वक्त राम मंदिर आंदोलन चलाने वाले लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा था। उस दौर में कयास लगाए जा रहे थे कि अगला चुनाव आडवाणी के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा। ऐसे में वाजपेयी जी का नाम आगे आना किसी को भी चौंका सकता था, लेकिन आडवाणी ने ये सब काफी सोच समझ कर किया था, क्योंकि आडवाणी का नाम उस वक्त हुए हवाला कांड में काफी उछाला जा रहा था। इससे पार्टी को नुकसान हो सकता था या फिर जनता का समर्थन जुटाना मुश्किल हो सकता था।

इसके बाद जो हुआ वो भी हैरान करने वाला था। आडवाणी जी ने 12 नवंबर 1995 को बीजेपी के अधिवेशन में ये ऐलान कर दिया कि अगले साल होने वाले आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। उनकी बात सुनते ही पहले तो ऑडिटोरियम में सन्नाटा छा गया। अटल जी को भी झटका लगा। उन्होने आडवाणी से पूछा ये क्या घोषणा कर दी आपने। एक बार मुझसे तो बात कर लेते। इस पर आडवाणी जी बोले अगर आपसे पूछा होता तो क्या आप मानते। इसी चर्चा के बीच थोड़ी देर में वहां मौजूद सभी नेता और कार्यकर्ताओं ने उनके फैसले का स्वागत किया और अगली बार अटल बिहारी सरकार के नारे लगाए।

चलिए अब चुनावी साल भी आ गया। लोकसभा चुनाव को लेकर चुनाव प्रचार शुरू हुआ। नौवें प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार घोटालों के आरोप में घिरी तो बीजेपी ने परिवर्तन का नारा दिया जो काम कर गया। देशभर में अटल जी की डिमांड थी। वो लखनऊ सीट से चुनाव लड़ रहे थे, लेकिन पूरे देश में प्रचार करने की वजह से वो लखनऊ नहीं जा पा रहे थे। ऐसे में बीजेपी के दिग्गजों ने उनकी एक प्रतिमा बनवाई और उसी प्रतिमा को पूरे लखनऊ में घुमाया। साथ ही बीजेपी के पीएम कैंडिडेट अटल बिहारी को जिताने की ज़ोर शोर से अपील की गई। उनके सामने चुनावी मैदान में कांग्रेस नेता और अपने समय के दिग्गज अभिनेता राज बब्बर थे, लेकिन लहर तो अटल जी की चल रही थी और देखिए बिना अपने क्षेत्र में गए। बिना खुद प्रचार किए अटल जी ने तब राज बब्बर को हराते हुए करीब सवा लाख वोटों से जीत दर्ज की थी। उस चुनाव में बीजेपी को कुल 161 सीटें मिली थीं जो कि बहुमत के आंकड़े से काफी कम थीं. इसके बावजूद अटल जी ने गठबंधन सरकार बनाई, लेकिन वो 13 दिन बाद ही गिर गई। उस वक्त वाजपेयी जी ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया था।

पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है, तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना नहीं पसंद करूंगा।

अटल जी की सरकार गिरी तो जनता दल के HD देवगौड़ा और IK गुजराल की सरकारें बनीं, लेकिन आपसी कलह के चलते ये दोनों सरकारें भी गिर गईं। जिसके बाद मार्च 1998 में फिर चुनाव हुए। इस बार बीजेपी ने कुछ बढ़त हासिल की और 182 सीटें जीतीं, लेकिन बहुमत नहीं मिला। लिहाज़ा अटल जी को फिर गठबंधन की सरकार बनानी पड़ी। अब गठबंधन की सरकारें कैसी चलती हैं। ये हम अपनी पिछली तमाम सीरीज़ में आपको बताते ही रहे हैं। लगभग वही हाल अटल जी की दूसरी पारी में आई सरकार का हुआ। पहले दिन से संघर्ष कर रही ये सरकार 13 महीने बाद फिर गिर गई। 17 अप्रैल 1999 को संसद में अटल सरकार का विश्वास मत जांचा गया। उनके समर्थन में 269 वोट पड़े और खिलाफ 270 वोट सिर्फ एक वोट की कमी और AIADMK की अध्यक्ष जयललिता की जिद के चलते सरकार गिर गई, लेकिन वो जितने दिन भी प्रधानमंत्री रहे विपक्षी दलों को सभ्यता का पाठ पढ़ाते रहे।

वो अपने काम और देश के लिए इतने संकल्पबद्ध थे कि जो भी काम हाथ में लेते थे। उसे पूरा करने के बाद ही चैन से बैठते थे। दरअसल, 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले देश के नौंवे पीएम पीवी नरसिम्हा राव को ये एहसास हो गया था। घोटालों में नाम आने की वजह से उनकी सरकार जा सकती है। वो देश को परमाणु शक्ति बनाना चाहते थे। इसीलिए उन्होने साइंटिस्ट एपीजे अब्दुल कलाम से मिल कर उन्हें ये समझाया कि हम जिस परमाणु प्रोग्राम पर काम कर रहे हैं। इसके बारे में विपक्ष के नेता अटल जी से जाकर बात करिए। ताकि अगर नरसिम्हा सरकार गिर भी जाती है तो परमाणु परीक्षण पर चल रहा काम नहीं रुकना चाहिए। राव साहब को जिसका डर था वही हुआ। लोकसभा चुनाव हुए और कांग्रेस हार गई, लेकिन जाते-जाते नरसिम्हा राव ने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा – सामग्री तैयार है आप आगे बढ़िए फिर जैसे ही 16 मई को पहली बार अटल जी ने पीएम पद की शपथ ली उन्होने कलाम के नाम बुलावा भेजा। कलाम साहब आए और अटल जी से मिले। अटल ने कलाम से परमाणु परीक्षण पर आगे बढ़ने की बात कही थी। मगर कुछ ही दिन में उनकी सरकार गिर गई। अगर वो कुछ दिन और रुक जाते को अपने पहले ही कार्यकाल में परमाणु टेस्ट कर लेते।

खैर दो साल बाद फिर सत्ता हाथ आई तो अटल जी को राव साहब को किया अपना वादा पूरा करने का मौका मिल गया। उन्होने फिर अब्दुल कलाम और Department of Atomic Energy के चीफ राजागोपाल चिदंबरम को बुलाया और कहा आपको अपना अधूरा काम पूरा करना है। बताया जाता है कि वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण की बात सिर्फ अपने चार बड़े मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, यशवंत सिन्हा और जसवंत सिंह को ही बताई थी। जब टेस्ट हुआ तब भी ये चारों ही एक रूम में बैठे थे और आखिरकार 11 मई के दिन 3.45 मिनट पर भारत ने सफल परमाणु परीक्षण किए और खुद को परमाणु संपन्न देशों की गिनती में ले जाकर खड़ा कर दिया। इसका पूरा श्रेय अटल जी को ही जाता है क्योंकि इतने कम समय में ऐसा साहसिक फैसला लेने की हिम्मत इससे पहले किसी नेता में नहीं हुई थी।

अब बात उनके तीसरे कार्यकाल की है। साल 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और इस बार अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया, लेकिन उनका ये कार्यकाल भी काफी उतार चढ़ाव भरा रहा। दरअसल, बढ़ती उम्र के साथ-साथ वाजपेयी जी कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। तीसरी बार सरकार बनने के अगले साल उन्होंने अपने घुटने का ऑपरेशन करवाया तो मीडिया में उसकी खूब चर्चा हुई। ऐसे में उनकी खराब सेहत को लेकर एक बार टाइम मैगजीन ने जून 2002 में बेहद आपत्तिजनक लेख लिखा था। अटल बिहारी वाजपेयी ने युवावस्था में जमकर शराब पी है। वे अब 74 साल की उम्र में भी रात में एक या दो पैग का आनंद लेते हैं। भारत के प्रधानमंत्री अपने घुटनों के लिए दर्द के लिए दवाएं लेते हैं। उन्हे कई तरह की समस्याएं हैं। वे डॉक्टर के आदेश पर हर रोज़ दिन में 3 घंटे की नींद लेते हैं। कई बार वह बैठकों में झपकी लेते हैं। क्या ऐसे व्यक्ति के हाथ में परमाणु हथियारों का कंट्रोल होना सही है? ये लेख पढ़कर वाजपेयी को बेहद दुख हुआ। दावा किया जाता है कि ये सारी खबरें टाइम मैगजीन के संवाददाता को बीजेपी के ही किसी वरिष्ठ नेता ने दी थी।

इसी तरह एक किस्सा ऐसा भी है जो ताउम्र उनके साथ जुड़ा रहा और उनके मरने के बाद भी सुर्खियों में बना रहा। वो किस्सा है अटल जी और राजकुमारी कौल से जुड़ा। जैसा कि हम सब जानते हैं कि वाजपेयी जी ने कभी शादी नहीं की, लेकिन फिर भी उनका नाम राजकुमारी कौल नाम की एक महिला से लगातार जुड़ता रहा। ये कहानी 1940 में शुरू हुई थी जब अटल ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ते थे। उस दौरान उनकी मुलाकात राजकुमारी हक्सर नाम की एक लड़की से हुई। दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे, लेकिन राजकुमारी के पिता ने उनकी शादी दिल्ली के एक युवा लेक्चरर बृजमोहन कौल से कर दी। लव स्टोरी टूटी तो अटल जी ने अपना पूरा फोकस राजनीति पर किया। आगे चलकर सांसद बने तो दिल्ली में बड़ा बंगला मिला और दिल्ली में रहने लगे। राजकुमारी के पति तब DU में philosophy पढ़ाते थे। वहीं एक बार अटल और राजकुमारी की फिर से मुलाकात हुई। राजकुमारी कौल के पति बृजमोहन खुले विचारों के व्यक्ति थे। उन्होंने कभी अटल और राजकुमारी की दोस्ती का बुरा नहीं माना। वाजपेयी ने पूरी जिंदगी शादी नहीं की लेकिन मिसेज कौल उनकी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बनकर रहीं। 2014 में जब राजकुमारी कौल का निधन हुआ तो प्रेस रिलीज में कहा गया कि मिसेज कौल पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी की परिवारिक सदस्य थीं। इसके बाद उनके अंतिम संस्कार में पक्ष और विपक्ष के कई बड़े नेता शामिल हुए थे।

अटल जी के बारे में एक किस्सा लिखते हुए सीनियर जर्नलिस्ट पूर्णिमा त्रिपाठी लिखती हैं। अटल बिहारी लखनऊ में एक बड़ी बैठक को संबोधित करने वाले थे। होस्ट ने मंच से उनकी भूमिका में कहा – भाइयों और बहनों अब आपके सामने आ रहे हैं कवि, वक्ता, सबके प्रिय नेता, चिर ब्रह्मचारी अटल बिहारी वाजपेयी जी ये बात सुन अटल जी स्टेज पर आए और मंद-मंद मुस्कुराए वो बोले – देवियों और सज्जनो मैं आपको बता दूं कि मैं कुंवारा जरूर हूं, पर ब्रह्मचारी नहीं। पहले तो वहां मौजूद दर्शकों को कुछ समझ नहीं आया और जब समझ में आया तो पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा।

अब आपको मोदी और अटल जी से जुड़ा एक और किस्सा बताते हैं जब उन्होने गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी से कहा था कि राजधर्म का पालन करो। ये बात गुजरात में हुए गोधरा कांड से जुड़ी है जब वहां दंगे भड़क उठे थे। पूरी दुनिया का फोकस उस वक्त गुजरात पर ही था। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे और हर मोर्चे पर उनकी आलोचना हो रही थी। ऐसे में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अहमदाबाद दौरे पर गए और प्रेस के सामने उन्होने मोदी से राजधर्म निभाने के लिए कहा है। इसका मतलब ये था कि वो अपने पद से इस्तीफा दे दें। ये बात सुन कर चारों तरफ से लोग उठ खड़े हुए और कहा कि मोदी को ऐसा करने की जरूरत नहीं है हालांकि वाजपेयी मोदी को हटाने का मन बना चुके थे लेकिन युवा सीएम को सभी का समर्थन मिलता देख वो चुप हो गए। वक्त आगे बढ़ता रहा वाजपेयी जी की काफी उम्र हो चली थी तो उन्होने राजनीति से संन्यास का ऐलान कर दिया। उनके इस ऐलान के बाद लाल कृष्ण आडवाणी का कद भी घटने लगा और नरेंद्र मोदी का कद तेज़ी से बढ़ता चला गए और आज बीजेपी का दूसरा नाम मोदी है।


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