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Sarabjit Singh के हत्यारे की हत्या, जानिए आज क्यों है इतनी चर्चा

Sarabjit Singh

पाकिस्तान जेल में बंद Sarabjit Singh की हत्या के बाद एक बार फिर सरबजीत का नाम सुर्खियों में है। इस बार Sarabjit Singh का नाम सुर्खियों में आने की वजह उसका हत्यारा अमीर सरफराज है। सरबजीत के हत्यारे और हाफिज सईद के करीबी अमीर सरफराज की पाकिस्तान में सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई। दो मोटरसाईकिल सवार लोगों ने लाहौर के पास इस घटना को अंजाम दिया। बता दें कि अमीर सरफराज ने करीब दस साल पहले सरबजीत की पाकिस्तान (Pakistan) की जेल में हत्या कर गई दी थी।

Sarabjit Singh: सरबजीत- एक ऐसा नाम,
जिसके लिए बंद हो गई थी न्याय देने वाली सारी अदालतें,
जिसके लिए मर गए थे सारे मानवाधिकार वाले लोग,
जिसके लिए खत्म हो गए थे दुनिया के सारे शांति कार्यकर्ता।।
वो तड़पता रहा,
वो रोता रहा।
दर्द सहता रहा।
दर्द इतना की उसकी आंखों के आंसू भी सुख गए थे।
और फिर एक दिन उसे मार दिया गया। उसकी हत्या कर दी गई। उजड़ गया पत्नी का सुहाग
रोता रहा उसका परिवार, बिलखती रही उसकी बड़ी बहन। बेबस रहा उसका गांव।

भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह पर पाकिस्तान में 1990 लाहौर में हुए धमाके का आरोपा था। इस धमाके में 14 लोगों की जान लेने का इल्जाम Sarabjit Singh पर लगाया गया था। पकड़े जाने के करीब एक साल बाद सरबजीत को अदालत ने फांसी की सजा सुनाई, लेकिन जिस तरह से पहली एफआईआर में सरबजीत का नाम ही नहीं था। जांच एजेंसियों ने जिस तरह से उसे मंजीत बनाया और अदालत में फर्जी सबूत पेश किए, वो पाकिस्तान (Pakistan) में जांच एजेंसियों के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

सरबजीत (Sarabjit Singh) ने अपनी मौत से पहले अपने वकील को एक मार्मिक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में जो बातें लिखी गई उसको पढ़कर किसी की भी आंखों में आंसू आ जाएं।

अपने खत्त में सरबजीत सिंह (Sarabjit Singh) ने लिखा, पाकिस्तान (Pakistan) में सभी उसे मंजीत सिंह बनाने पर तुले हुए थे, चाहे वो पुलिस हो या फिर कोर्ट। जबकि वह खुद मंजीत सिंह के बारे में नहीं जानता था और उसने पाकिस्तान (Pakistan) में क्या किया था, इसके बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है। जेल में हर कोई उसे धमाके करने वाला मानते थे।”

सरबजीत सिंह (Sarabjit Singh) आगे लिखता है, पाकिस्तान (Pakistan) में गलती से दाखिल हो गया था। लेकिन मुझे लगता था कि मैं जल्द ही छूट जाऊंगा। मैंने कोई जुर्म नहीं किया था, सिर्फ बॉर्डर ही तो पार किया था। पाकिस्तान (Pakistan) के कानून बनाने वालों ने मुझे मंजीत सिंह बना कर पेश किया।” सरबजीत ने अपनी चिट्ठी में पाकिस्तानी न्यायिक प्रणाली पर आरोप लगाए हैं। उसने लिखा कि अदालत ने उसकी बात पर जरा भी गौर नहीं किया और न ही सफाई देने का मौका दिया।

Sarabjit Singh की चिट्ठी

शाम का वक्त था। सरबजीत सिंह (Sarabjit Singh) शराब के नशे में Pakistan चला गया था। नशे में सरबजीत ने कंटीले तारों को पार किया। यहीं से उसकी जिंदगी लहुलूहान हो गई। एक बार भारत की सीमा से पाकिस्तान गया तो फिर कभी लौट ही नहीं पाया। उसे यकीन ही नहीं था कि सरहद पार करने की इतनी बड़ी सजा उसे मिलेगी। अपनी चिट्ठी में वो बताता है, जिस दिन मुझे पकड़ा गया, उसी दिन मुझे एफआईयू के हवाले कर दिया गया। पूरा रात सेल में रखा गया। लोगों ने मारना शुरू किया। पता नहीं चल रहा था कि किस तरफ से मारा जा रहा है। शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। बेहोश गया था। जब होश आया तो मेरी आंखों पर पट्ठी थी और हाथों में हथकड़ियां।

सरबजीत (Sarabjit Singh) ने आगे लिखा, ‘सेल नंबर 13 में बंद कर दिया गया। फिर पिटाई हुई। मेरे सामने सिविल ड्रेस में एक शख्स बैठा था। काफी वक्त बाद पता चला उसका नाम मेजर गुलाम अब्बास था उसने मुझसे कहा- तुम मंजीत सिंह हो। मैंने कहा- नहीं। मैंने बस इतना ही कहा था कि मेरी पिटाई फिर शुरू हो गई। अब मुझे भी शक होने लगा कि या तो पाकिस्तान के अधिकारियों को कोई गलतफहमी है या कोई और चक्कर है। सजा होने के 19 साल बाद पता चला कि क्या चक्कर था।

पहली बार सरबजीत (Sarabjit Singh) को 1 जुलाई 1991 को अदालत में पेश किया गया था। सबूत और दलीलों मामला सरबजीत के पक्ष में जाता दिखने लगा। लेकिन एक शख्स की वजह से ये मामला पलट गया। सरबजीत ने अपनी चिट्ठी में लिखा, जब सफाई का वक्त आया, उस दिन 12 अगस्त 1991 की तारीख थी। मैंने जज से अपनी सफाई के लिए मेजर गुलाम अब्बास को बुलाने के लिए कहा। उसकी मुख्य वजह थी उसने अपने पहले बयान में मेरी गिरफ्तारी की सही तारीख बताई थी। लेकिन बाद में मेजर गुलाम अब्बास ने कहा कि मैंने इसे 30 अगस्त 1990 को गिरफ्तार किया था। लेकिन रजिस्टर में मेरी गिरफ्तारी 31 अगस्त 1990 थी। अब मेजर गुलाम अब्बास को बयान बदलना पड़ा कि इसे 30 अगस्त को पकड़ा गया और मेरे पास 31 अगस्त को लाया गया।

इसी मामले में दूसरा बयान था। सरबजीत (Sarabjit Singh) ने चिट्ठी में लिखा, ‘गिरफ्तारी के वक्त मेजर से हुलिए के बारे में पूछा। उसने जवाब दिया कि यही हुलिया था। उस वक्त मेरी दाढ़ी और बाल बढ़े हुए थे-लिहाजा सरकारी वकील ने मजिस्ट्रेट को टोका कि नहीं गिरफ्तारी के वक्त उसने शेव किया हुआ था। इसी बात पर जज भड़क गया। मजिस्ट्रेट को जमकर झाड़ लगा दी। ये सारी गवाहिंया सरबजीत के हक में गई। 13 अगस्त 1991 को इस केस में फिर से पेशी हुई। क्योंकि जज ने साफ कह दिया था कि अब इस केस में बहस नहीं होगी। उस दिन मेजर गुलाम अब्बास जब अदालत में आया तो सरकारी वकील ने उसे कह दिया कि ये केस से बरी हो जाएगा। बस इतना ही सुनना था कि मेजर अब्बास जज के कमरे में गया। उससे जाने क्या कहा कि जज ने 15 अगस्त की अगली तारीख दे दी। 15 अगस्त 1991 को मुझे मौत की सजा सुना दी गई। मैं बहुत हंसा कि मेरे देशवासी जिस दिन आजादी का जश्न मना रहे थे, उस दिन मैं सजा-ए-मौत सुन रहा था।”

अपने केस के बारे में सरबजीत सिंह(Sarabjit Singh) ने इसी चिट्ठी में आगे लिखा, हाईकोर्ट में मुकदमा पहुंचा तो फाइल से बहस से जुड़ी जानकारियां गायब थीं। ये बहस के वो हिस्से थे, जो उसे रिहा करवा सकते थे, साबित कर सकते थे कि वो मंजीत नहीं था।”मंजीत वो था जिसका चेहरा बहुत बाद में सामने आया।

सरबजीत (Sarabjit Singh) ने अपनी चिट्ठी में पाकिस्तानी वकील अवैस शेख का धन्यवाद दिया। उन्होंने लिखा कि उन्होंने असली मंजीत सिंह को ढूंढ निकाला था। जब सरबजीत को पकड़कर मंजीत सिंह बनाया तो उस वक्त असली मंजीत सिंह इंग्लैंड और कनाडा की सैर कर रहा था। लेकिन बाद में वह पकड़ा गया।

पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में बंद सरबजीत सिंह ने अपनी रिहाई के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, UPA अध्यक्ष सोनिया गांधी और BJP को साल 2013 में पत्र लिखा था। हिंदी में लिखे इन पत्रों में सरबजीत ने भारत सरकार द्वारा अपनी रिहाई का मामला संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) को सौंपने की मांग की थी।

पीएम ने नाम सरबजीत सिंह का खत

सेवा में

श्रीमान प्रधानमंत्री

डॉ.मनमोहन सिंह जी

‘मैं सरबजीत सिंह, भारतीय कैदी पाकिस्तान की जेल में रिहाई के लिए बाट जोह रहा हूं। जब सारी दुनिया के सामने यह साफ हो गया है कि मैं निर्दोष हूं, उसके बाद भी मुझे पाकिस्तानी हुकूमत रिहा क्यों नहीं कर रही है। कृपा करके आप पाकिस्तान की हुकूमत के साथ-साथ विश्व स्तर पर मेरा मामला उठाएं। यह मामला यूएनओ को दें ताकि मेरी रिहाई जल्द हो सके। मैं आपका और हर देशवासी का कर्जदार हूं, जिन्होंने अब तक मेरी इतनी मदद की है। आपकी बड़ी कृपा होगी।’

भारत का सेवक और पाक में गुलाम, सरबजीत सिंह।

इसके अलावा सरबजीत ने एक ओर चिट्ठी लिखी थी जिसमें उसने लिखा था कि उसे धीमा जहर दिया जा रहा है,’जब भी मेरा दर्द बर्दाश्त से बाहर होता है, मैं जेल अधिकारियों से दर्द की दवा मांगता हूं। मेरा मजाक उड़ाया जाता है, मुझे पागल ठहराने की पूरी कोशिश की जाती है।’


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