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कुवैत अग्निकांड ने खोली पोल, भारतीयों की जिंदगी नर्क जैसी!

कुवैत की एक इमारत में भीषण आग में 50 से ज्यादा लोगों के मरने की खबर हैं। इनमें 40 से ज्यादा भारत के लोग हैं, जो नाइट शिफ्ट के बाद लौटकर सो रहे थे। आग की वजह से ज्यादातर को संभलने तक का मौका नहीं मिला, न ही तंग जगह के चलते भाग सके। कुवैती सरकार का कहना है कि ज्यादातर मौतें दम घुटने की वजह से हुईं। अब इस मामले में तेजी से कार्रवाई तो हो रही है लेकिन.
kuwait Fire | Shreshth Bharat |

क्या आपने कभी नरक की जिंगदी देखी है… शायद नहीं देखी होगी बस इसके बारे में सुना होगा, लेकिन आज हम आपको उस नरक के बारे में बताएंगे, जो कुवैत में है। क्योकि कुवैत की एक इमारत में भीषण आग में 50 से ज्यादा लोगों के मरने की खबर हैं। इनमें 40 से ज्यादा भारत के लोग हैं, जो नाइट शिफ्ट के बाद लौटकर सो रहे थे। आग की वजह से ज्यादातर को संभलने तक का मौका नहीं मिला, न ही तंग जगह के चलते भाग सके। कुवैती सरकार का कहना है कि ज्यादातर मौतें दम घुटने की वजह से हुईं। अब इस मामले में तेजी से कार्रवाई तो हो रही है लेकिन, कुवैत समेत किसी भी खाड़ी मुल्क की तस्वीर पाक-साफ नहीं। अक्सर इनपर आरोप लगता रहा है कि यहां प्रवासी मजदूर खराब हालातों में रहते हैं यानी नरक जैसी जिंदगी जीते हैं।

जिन भी देशों के बॉर्डर फारस की खाड़ी से मिलते हैं, वो खाड़ी या गल्फ देश कहलाते हैं। इनमें बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात- ये 6 देश शामिल हैं। वैसे तो ईरान और इराक भी फारस की खाड़ी से कनेक्टेड हैं, भारत से काफी सारे लोग काम के लिए गल्फ जाते हैं। इनमें ज्यादातर इमारत बनाने वाले या इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करने वाले मजदूर हैं। मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स ने एक आरटीआई के जवाब में बताया था कि लगभग 10.34 मिलियन एनआरआई 2 सौ से ज्यादा देशों में रह रहे हैं। इनमें यूएई में लगभग साढ़े 3 मिलियन, सऊदी अरब में 2.59 मिलियन, कुवैत में 1.02, कतर में 74 लाख, ओमान में 7 लाख जबकि बहरैन में सवा 3 लाख भारतीय हैं। गल्फ के अलावा सबसे ज्यादा लोग अमेरिका में लगभग 1.28 मिलियन हैं।

अब बात करते हैं कुवैत की क्योंकि अग्निकांड वाले इस देश में कुछ समय पहले सार्वजनिक नागरिक सूचना प्राधिकरण ने एक डेटा जारी किया था। इसकी मानें तो दिसंबर 2023 तक कुवैत की आबादी लगभग 49 लाख थी, जिसमें 15 लाख से ज्यादा स्थानीय लोग, जबकि 39 फीसदी लोग प्रवासी हैं। इसमें भी इंडियन वर्कर सबसे ज्यादा हैं।

कुवैत में कितना मिलता है वेतन ?

हमारे देश का गल्फ के साथ करार है कि वो मजदूरों को न्यूनतम रेफरल वेतन MRW दे। इसलिए कुवैत जाने वाले भारतीय मजदूरों के लिए 2016 में भारत सरकार ने काम की 64 श्रेणियों के लिए मजदूरी सीमा 300-1,050 डॉलर की सीमा तय की थी यानी एशियाई देशों की तुलना में कुवैत ज्यादा वेतन देता है। इसके लिए कामगारों को खुद को फॉरेन मिनिस्ट्री के ई-माइग्रेट पोर्टल पर रजिस्टर करना होता है। काम के मुताबिक वेतन तय होता है, जैसे राजमिस्त्री, ड्राइवर और कारपेंटर के काम पर हर महीने न्यूनतम 300 डॉलर मिलेंगे, जबकि डोमेस्टिक वर्कर इससे ज्यादा कमाई करते हैं। वहीं पेशेवरों, जैसे नर्स, इंजीनियरों की कमाई काफी ज्यादा है। कामगार आमतौर पर गल्फ जाकर पैसे बचाते और अपने घर भेजते हैं। इससे कम समय में भारतीय करेंसी के हिसाब से काफी सेविंग हो जाती है। यही कारण है कि वहां ज्यादा से ज्यादा लोग जा रहे हैं।

तनख्वाह भले ही कुवैत में ज्यादा हो, लेकिन वहां भारतीय कामगार अक्सर अमानवीय हालातों में रहते हैं। यहां तक कि उनके काम के घंटे भी तय नहीं होते। उन्हें स्थानीय लोगों से खराब ट्रीटमेंट मिलता है। कई रिपोर्ट्स इसकी पुष्टि कर चुकीं हैं। साल 2019 से जून 2023 तक बहरैन, ओमान, कुवैत, यूएई, कतर और सऊदी अरब के भारतीय दूतावासों में 48 हजार से ज्यादा शिकायतें आईं। ये सारी शिकायतें फोर्स्ड लेबर से जुड़ी हुई थीं।

असल में खाड़ी देशों में एक सिस्टम है- कफाला। ये एम्प्लॉयर को अपने कर्मचारी पर बहुत ज्यादा अधिकार दे देता है। आसान तरीके से कहें तो कामगार अपने मालिक का गुलाम हो जाता है। उसके काम के घंटे बहुत ज्यादा होते हैं और पगार तय नहीं होती। कई एम्प्लॉयर अपने मजूदरों के पासपोर्ट तक अपने पास रख लेते हैं ताकि वो कहीं भाग न सकें। यहां तक कि उन्हें फोन रखने या वर्क एरिया से बाहर निकलने की भी इजाजत नहीं होती। हफ्ते के किसी भी दिन उन्हें छुट्टी नहीं मिलती। पासपोर्ट जब्त हो चुकने की वजह से वो अपने देश भी नहीं लौट सकते।

यूनाइटेड नेशन्स में बात उठने पर कुवैत के अलावा सऊदी और कतर ने भी कफाला को खत्म करने की बात की, लेकिन ये पूरी तरह बंद नहीं हो सका। अमेरिकी थिंक टैंक- काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस ने भी कफाला सिस्टम पर बड़ी रिपोर्ट की थी। इसमें एम्प्लॉयर को कफील कहा जाता है, जिसे कुवैत या बाकी गल्फ देशों की सरकार स्पॉन्सरशिप परमिट का हक देती है। कफील अक्सर कोई फैक्ट्री मालिक होता है। परमिट के जरिए ये विदेशी मजदूरों को अपने यहां बुला सकता है। बदले में वो मजदूर के आने-जाने, रहने और खाने का खर्च देते हैं। इसमें होता ये है कि मालिक फैक्ट्री के अंदर ही मजदूरों को ठूंस देते हैं ताकि जब चाहे काम करवाया जा सके। रहने-खाने की स्थिति सबसे बदतर है। वहां मुख्य रिहायशी इलाकों से दूर इमारतें बनाई जाती हैं, जहां प्रवासी मजदूरों को रखा जाता है। ये तंग दरवाजे-खिड़कियों वाले छोटे-छोटे कमरे होते हैं, जहां कई लोगों को साथ रहने के लिए कहा जाता है। किराया दिए बगैर रहने के नाम पर मजदूर इसपर राजी भी हो जाते हैं और नरक जैसी जिंदगी जीते हैं।

साल 2022 में एक्सपैट इनसाइडर की रिपोर्ट जारी हुई। इसमें विदेशों में रहते लोगों ने कुवैत को 52 देशों में सबसे नीचे रखा था। साथ ही सुरक्षा और खुशी के मानकों में भी ये सबसे नीचे था। उनकी शिकायत थी कि खाड़ी देशों के स्थानीय लोग बाहरी लोगों से बेहद खराब व्यवहार करते हैं। उनसे मेल-जोल रखना तो दूर, उनसे बेअदबी करते हैं। लंबे समय से कुवैत में विदेशी मजदूरों के शोषण की खबरें आती रही हैं। इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, यहां विदेशी मजदूरों की अचानक मौत भी होती रहीं हैं क्योकि वो बंदे कमरों में जानवरों की तरह रखे जाते हैं। उनके खाने-पीने और बीमारी में मेडिकल ट्रीटमेंट का भी कोई पुख्ता इंतजाम नहीं होता और जिंदगी नरक जैसी हो जाती है। भारत से हर साल बड़ी संख्या में लोग विदेश का रुख करते हैं। पैसा कमाने और लाइफ को बेहतर बनाने की चाहत में लोग विदेशों में नौकरी करने तो जाते हैं, लेकिन अपनी जिंदगी को नरक बना लेते हैं और कुवैत वही नरक है जहां लोग अपनी जिंदगी को नरक बना रहे हैं।

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