भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि उत्पादन में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार कृषि ने 50% से अधिक भारतीय कार्यबल को रोजगार दिया और देश की जीडीपी में 20.2% का योगदान दिया। हमारे देश की अर्थव्यवस्था में किसानों का भी अहम योगदान है। भारत में किसान को अन्नदाता और धरती पुत्र कहा जाता है। मौसम की परवाह किए बिना तपती धूप, बारिश और कड़कड़ाती ठंड में भी दिन-रात खेतों में काम करते हैं इसलिए किसानों को सम्मान देने के लिए भारत में प्रत्येक वर्ष 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाया जाता है।
राष्ट्रीय किसान दिवस का इतिहास
भारत में हर साल 23 दिसंबर को देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है। चौधरी चरण सिंह साल 1979 से 1980 तक देश के प्रधानमंत्री रहे थे। वह एक किसान नेता थे और उन्होंने भारत में किसानों के जीवन में सुधार सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न नीतियां पेश कीं थीं। उन्होंने साहूकारों से किसानों को राहत देने के लिये ऋण मोचन विधेयक 1939 को बनाने में अहम रोल अदा किया। चौधरी चरण सिंह ने 1949 विधानसभा में कृषि उत्पादन बाजार विधेयक पेश किया। वह 1952 में कृषि मंत्री बने। 1953 में जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया।उन्होंने भूमि जोत अधिनियम, 1960 को लाने में अहम भूमिका निभाई जिसका मकसद पूरे राज्य में भूमि जोत की सीमा को कम करना था ताकि इसे एक समान बनाया जा सके। चौधरी चरण सिंह ने 23 दिसंबर 1978 को किसान ट्रस्ट की स्थापना की। साल 2001 में भारत सरकार ने पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के सम्मान में 23 दिसंबर को राष्ट्रीय किसान दिवस घोषित किया था।
राष्ट्रीय किसान दिवस का महत्व
किसान दिवस विशेष रूप से भारत के कृषि प्रधान राज्यों उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश में मनाया जाता है। इस दिन को किसान दिवस के तौर पर मनाने का मकसद किसानों के उत्थान, आर्थिक विकास में उनके अहम योगदान, उनकी समस्याओं जैसे मुद्दों पर सबका ध्यान खींचना है। यह दिन लोगों को किसानों से जुड़े विभिन्न मुद्दों के बारे में शिक्षित करने का काम करता है। इस दिन कृषि क्षेत्र व किसानों के विकास जैसे विषयों पर विभिन्न कार्यक्रमों व सेमिनार का आयोजन होता है। इस दिन देश भर के किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है।
थीम: भविष्य की खेती, कृषि में नवाचार और स्थिरता
इस वर्ष की थीम कृषि के निरंतर विकसित हो रहे परिदृश्य से मेल खाती है। यह भावी पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में नवाचार और टिकाऊ प्रथाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को पहचानने का आह्वान करता है। जल-बचत तकनीकों को अपनाने से लेकर पर्यावरण-अनुकूल उर्वरकों को अपनाने तक, किसान हमारी भूमि के प्रबंधक हैं, और उनकी पसंद न केवल उनकी आजीविका बल्कि हमारे ग्रह के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डालती है।