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ट्रंप सरकार का बड़ा फैसला, अमेरिका से अवैध अप्रवासियों भेजा गया भारत

US Deportation: अमेरिका में ट्रंप सरकार ने अवैध अप्रवासियों को डिपोर्ट करने का प्रोसेस तेज कर दिया है। इस प्रोसेस की आंच भारत तक भी पहुंच चुकी है। क्योंकि 5 फरवरी बुधवार के दिन दोपहर के करीब 2 बजे अमृतसर एयरपोर्ट पर काफी गहमागमी देखने को मिली।
US Deportation

US Deportation: अमेरिका में ट्रंप सरकार ने अवैध अप्रवासियों को डिपोर्ट करने का प्रोसेस तेज कर दिया है। इस प्रोसेस की आंच भारत तक भी पहुंच चुकी है। क्योंकि 5 फरवरी बुधवार के दिन दोपहर के करीब 2 बजे अमृतसर एयरपोर्ट पर काफी गहमागमी देखने को मिली। क्योंकि अमेरिकी सेना का विमान 104 अवैध भारतीय अप्रवासी को लेकर पहुंचा था और ये सिर्फ इतना भर ही नहीं है, जो लोग इस विमान में से उतरे उनके पैरों में जंजीर, हाथों में हथकड़ी थी। ये लोग झुकी हुई निगाहों के साथ भारी जिल्लत का बोझ भी ढो रही थे।

अमेरिकी एयर फोर्स के विमान में सिर झुकाए बेड़ियां पहने भारतीयों को अपने देश में वापसी करते देखकर किस भारतीय का मन नहीं दुखी हुआ होगा। इन लोगों को अमेरिका चाहता तो नॉर्मल पैसेंजर विमान से भी भेज सकता था, लेकिन ट्रंप सरकार ने वापसी को जो तरीका अख्तियार किया। उसके बाद ट्रंप सरकार की भारत को लेकर की गई सख्ती पर भारत सरकार कठघरे में है।

भारतीयों को इस कदर लोहे की जंजीरों में जकड़कर भारत भेजने को लेकर भारत की विदेश नीति पर सवाल उठ रहे हैं। भेड़- बकरियों की तरह अमेरिकी विमान से भारत भेजे गए अवैध भारतीयों की वापसी को भारत का बड़ा डिप्लोमेटिक फेल्योर कहा जा रहा है, क्योंकि भारत की मौजूदा बीजेपी सरकार कई बार दावा कर चुकी है कि उसकी सरकार में देश का विश्वभर में सम्मान बढ़ा है और भारत विश्व में सुपर पावर बनने की दिशा में है, लेकिन अमेरिका जैसा सलूक भारतीयों के साथ किया उससे तो तो मैसेज कुछ और ही मिल रहा है। इतना  ही नहीं एक तरफ अमेरिका अवैध अप्रवासियों को वापस भेज रहा है। तो वहीं दूसरी ओर नागरिकता नियमों को भी सख्त कर रहा है, लेकिन भारत सरकार ना जाने क्यों चुप्पी साधे हुए है। भारत के मामलों में खुद को एक्टिव दिखाने वाले और बात-बात पर फीडबैक देने वाले भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर मुंह छुपा रहे हैं। प्रधानमंत्री और उनकी सरकार इस गंभीर मुद्दे को लेकर बात करने को तैयार नहीं दिखती, लेकिन अमेरिका ने जो अपमान भारतीयों का किया है उसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। ट्रंप की इस हरकत से भारत की साख को जो बट्टा लगा है। उस पर मौन धारण नहीं किया जा सकता। वो भी तब जब भारत सरकार पहले से जानती थी कि अमेरिका में रह रहे अवैध भारतीयों के साथ ये नौबत कभी भी आ सकती है। अभी पिछले महीने यानि दिसंबर 2024 में भारत सरकार ने कहा था कि अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे भारतीय नागरिकों को वापस लेने के मामले में भारत हमेशा तैयार रहा है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था कि भारत ये जांच कर रहा है कि अमेरिका में कितने भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं और इन्हें वापस भेजा जा सकता है या नहीं। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच करीब 27 जनवरी को फोन पर बातचीत हुई थी, जिसमें ट्रंप ने कहा था कि भारत अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अवैध अप्रवासी भारतीयों को वापस बुलाने के लिए सही कदम उठाएगा, लेकिन हुआ कुछ नहीं और नौबत ये हुई कि अमेरिका ने हाथ पैर बांधकर उसके देश में अवैध रूप से रह रहे भारत के युवाओं को वापस भेज दिया और भारतीय सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही।

भारत लौटे अवैध प्रवासी भारतीय युवा

अमेरिका ने जो हरकत भारतीयों के साथ की है। वो नहीं होनी चाहिए थी। किसी भी सूरत में ये नहीं होना चाहिए था। क्योंकि भारत की सरकार साल 2014 के बाद से अमेरिका के साथ बहुत ही मधुर संबंध होने का दावा करती रही है। अक्सर भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन और मौजूद राष्ट्रपति ट्रंप के साथ गले मिलते हुए तस्वीर भी पोस्ट करते दिखे थे। इतना ही नहीं भारत ने इसे पहले की सरकार में जब ट्रंप राष्ट्रपति चुने गए थे तो उन्हें भारत के दौरे पर बुलाया था और वे भारत के न्योते पर पत्नी समेत भारत आए भी थे। फिर भी 5 फरवरी को जो तस्वीर अमृतसर एयरपोर्ट पर देखने को मिली। वो मन को खिन्न और दिमाग को परेशान करने वाली थी।

ये भी पढ़ें- क्या है डंकी रूट? जिससे हर कदम पर रहता है जान का खतरा

दरअसल, डोनल्ड ट्रंप ने अपने चुनावी कैंपेन के दौरान अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा डिपोर्टेशन करने का वादा किया था। इसके ठीक बाद अमेरिका के इमिग्रेशन एंड कस्टम्स इन्फोर्समेंट ने 15 लाख अवैध अप्रवासियों की लिस्ट तैयार की, जिसमें करीब 18 हजार भारतीय भी शामिल हैं। वहीं ट्रंप के सत्ता संभलाने से शुरुआती 11 दिनों के भीतर अमेरिकी इमिग्रेशन एंड कस्टम्स इन्फोर्समेंट ने 12 राज्यों में छापे मारकर 25 हजार से ज्यादा अवैध अप्रवासियों को हिरासत में लिया। इसमें करीब 17 सौ लोग अप्रवासी भारतीय के नाम भी थे।

वहीं, प्यू रिसर्च सेंटर के साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका में अवैध अप्रवासियों की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा है, जिसमें सबसे ज्यादा मैक्सिको के 41 लाख एल साल्वाडोर के करीब 8 लाख और लगभग 7.25 लाख अवैध भारतीय अप्रवासी रहते हैं। ये आंकड़ा अवैध प्रवासियों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है।

कहा जा रहा है कि ये लोग डंकी रूट के जरिए अमेरिका में घुसे थे। इसी बीच आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर डंकी रूट होता क्या है अगर आपने बॉलिवुड की फिल्म डंकी देखी है, तो आप समझ जाएंगे कि डंकी रूट क्या है और इस रास्ते दूसरे देशों तक पहुंचने वाले लोग किस तरह अपनी जान जोखिम में डालते हैं, दरअसल डंकी रूट यानी गैरकानूनी तरीके से विदेश जाने का रास्ता इसमें लोग कई देशों से होते हुए गैरकानूनी रूप से अमेरिका, कनाडा या यूरोप में घुसने की कोशिश करते हैं। ये लोग टूरिस्ट वीजा या एजेंट्स की मदद से लैटिन अमेरिका के किसी देश जैसे ब्राजील, इक्वाडोर, पनामा, या मैक्सिको तक पहुंचते हैं। वहां से जंगलों, नदियों और रेगिस्तानों के रास्ते पैदल चलकर अमेरिका-मेक्सिको बॉर्डर तक पहुंचते हैं। इस दौरान उन्हें खराब मौसम भूख, बीमारी और कभी-कभी मौत का भी सामना करना पड़ता है। इस सफर के दौरान लोगों को छुपकर रहना पड़ता है। क्योंकि अगर किसी की नजरों में आए तो पकड़े जाने का खतरा रहता है। इसके बाद दलालों की मदद से अमेरिका में अवैध रूप से घुसते हैं।

वैसे तो कानूनी और नैतिक रूप से दरअसल चोरी छिपे किसी भी देश में घुसने वाले लोगों के साथ ऐसा ही होना चाहिए। मतलब उनकी पहचान करके उनके वतन वापस भेज देना चाहिए। पर क्या भारत अगर ऐसी ही हरकत बांग्लादेशियों या रोहिंग्या घुसपैठियों के साथ करे तो दुनिया किस तरह रिएक्ट करेगी। भारत अगर इस तरह अपने देश से घुसपैठियों को बाहर करता है तो पूरी दुनिया में मानवाधिकारों का मुद्दा उठने लगेगा। लेकिन इस बात को अगर दूसरे नजरिये से देखा जाए तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप जो कर रहे हैं उसे मौका समझ कर भुना लेना चाहिए। मौका ये है कि लगे हाथ भारत को भी बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं से छुटकारा पाने के बारे में सोचना चाहिए। भारत के पास मौका है कि पूरे देश में आइडेंटिफिकेशन ड्राइव चलाकर इनकी पहचान की जाए। दिल्ली -मुंबई जैसे शहरों और बॉर्डर से सटे राज्यों में विशेष तौर पर अभियान चलाकर इनकी पहचान की जाए। उन्हे वापस भेजा जाए।

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