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प्रयागराज महाकुम्भ 2025  के महानायक बनकर उभरे सीएम योगी आदित्यनाथ

Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुम्भ 2025 का समापन हो गया है। इस लेख को लिखते समय बेहद भावुक हूं। ये केवल हमारा-आपका नहीं बल्कि ये पीढ़ियों का महाकुम्भ है, ये सनातन का महाकुम्भ है। हमारा जन्म उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में हुआ, सबको मालूम है 12 साल में प्रयागराज में कुम्भ लगता है।

Mahakumbh 2025: प्रयागराज महाकुम्भ 2025 का समापन हो गया है। इस लेख को लिखते समय बेहद भावुक हूं। ये केवल हमारा-आपका नहीं बल्कि ये पीढ़ियों का महाकुम्भ है, ये सनातन का महाकुम्भ है। हमारा जन्म उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में हुआ, सबको मालूम है 12 साल में प्रयागराज में कुम्भ लगता है। 1974 में जन्म हुआ तो 1977 के कुम्भ में 3 वर्ष के थे, 1977 का कुम्भ नहीं देखा, लेकिन 1989 के कुम्भ में गांव से बस के जरिए प्रयागराज कुम्भ आए थे, 1989 के कुम्भ की धुंधली स्मृतियां दिलोदिमाग में हैं, लेकिन उसके बाद के हर कुम्भ, हर महाकुम्भ अच्छी तरह से याद हैं। प्रयागराज में शिक्षा-दीक्षा होने के चलते यहां लगने वाला माघ मेला और कुम्भ में हम छात्रों के लिए संगम तट महीने भर के लिए लगभग स्थाई निवास बन जाता था। कहने का तात्पर्य ये है कि प्रयागराज के सभी अर्धकुम्भ, कुम्भ, महाकुम्भ और देश के चारों स्थानों हरिद्वार, उज्जैन, नासिक-त्र्यंबकेश्वर में लगने वाले कुम्भ देखे हैं, कभी पत्रकार के तौर पर तो कभी श्रद्धालु के तौर पर इनका हिस्सा बने हैं, लेकिन प्रयागराज महाकुम्भ 2025 जैसा आयोजन जीवन में कभी नहीं देखा है। ये सिर्फ हमारी नहीं बल्कि उन करोड़ों लोगों की भावनाएं हैं। प्रयागराज में महाकुम्भ के काम से दो महीने से ज्यादा रहने के दौरान ये उद्गार श्रद्धालुओं के अलावा प्रयागराज के तमाम स्थानीय निवासियों, गंगा तट पर तख्त लगाने वाले बूढ़े बुजुर्ग प्रयागवालों से लेकर प्रशासन के तमाम पुराने लोगों के भी हैं।

प्रयागराज महाकुम्भ 2025 में पूरे विश्व ने सनातन का ऐसा वैभव पहली बार देखा है, इसके तमाम कारण हो सकते हैं प्रचार-प्रसार से लेकर व्यवस्थाओं तक, लेकिन दुनिया भर के सनातनियों में अपनी पहचान, अपनी गर्वोक्ति का भाव। गर्व से हिंदू होने और कहने का जो भाव पिछले 10-15 साल में पैदा हुआ है, उसके लिए निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की बहुत बड़ी भूमिका है। माननीय मुख्यमंत्री संवैधानिक और राजनीतिक दायित्व के साथ एक बहुत बड़ा दायित्व ये भी निभा रहे हैं कि वे एक योगी हैं। संत ह्रदय शासक, जो देश के किसी भी राजनेता से उन्हें बिल्कुल विशिष्ट बनाता है। 

प्रयागराज में संगम और मां गैया का पुण्य प्रताप सदियों से है, लेकिन महाकुम्भ की ऐसी तैयारियां पूरे विश्व ने पहली बार देखीं। वरना क्या कारणा था कि सनातनी आस्था के इस ज्वार ने महाकुम्भ 2025 में अभी तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। तीर्थराज प्रयाग में 13 जनवरी 2025 से लेकर 26 फरवरी 2025 तक 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने पावन स्नान किया। प्रयागराज महाकुम्भ में आस्था का ऐसा जनसागर उमड़ा जिसका सियासत से लेकर सरकार तक ने अनुमान नहीं लगाया था। महाकुम्भ में 40 से 45 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का अनुमान था लेकिन प्रयागराज महाकुम्भ में देश-दुनिया के 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। 

दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक समागम यूं ही सफल नहीं हो जाता, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में स्वयं और अपनी सरकार की संपूर्ण ताकत झोंक दी। मुख्यमंत्री महाकुम्भ के प्रारंभ से लेकर समापन तक स्वयं हर तैयारी पर नजर रखे रहे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 6 अक्टूबर 2024 से लेकर 26 फरवरी 2025 तक 25 बार महाकुम्भ के लिए प्रयागराज का दौरा किया। 27 फरवरी को प्रयागराज पहुंचकर महाकुम्भ के काम में लगे स्वच्छता कर्मियों, स्वास्थ्यकर्मियों और नाविकों का सम्मान किया।

प्रयागराज में महाकुंभ सनातनी आस्था का ऐसा केंद्र बना जहां 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु जीवन जीने का अमृत लेकर गए। महाकुम्भ को लेकर खूब सारी भ्रामक खबरें भी फैलाई गईं, लेकिन यूपी के माननीय मुख्यमंत्री उससे विचलित नहीं हुए। सनातनी आस्था उनके साथ थी, वो अडिग है, उसे कौन धूमिल कर सकता है। एक 60-70 लाख की जनसंख्या वाले छोटे से शहर प्रयागराज में उमड़ा जनसागर सनातनी आस्था के अविरल प्रवाह का गवाह बना। जिस पर किए गए भ्रामक कुठाराघात भी इस प्रवाह की दिशा बदलने में नाकामयाब रहे और इस तरह दिव्य-भव्य महाकुंभ का आयोजन सफल ही नहीं सफलतम कहा जा सकता है। 

प्रयागराज तक पहुंचने के लिए लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। पैदल चलना पड़ा, लेकिन आपको क्या पूरे महाकुंभ के दौरान कोई ऐसा शख्स दिखा जिसके चेहरे पर संगम या गंगाजी में डुबकी लगाने के बाद संतुष्टि और परमानंद का भाव न दिखा हो। महाकुंभ में क्या आम, क्या खास, क्या गरीब, क्या अमीर, क्या नेता, क्या अभिनेता, हर वर्ग के लोग आस्था की डुबकी लगाने के लिए पहुंचे और करीब-करीब देश की आधी आबादी ने तो महाकुंभ में स्नान कर ही लिया। 45 दिन तक चले सनातन के सबसे बड़े उत्साह पर्व में करोड़ों लोगों ने पवित्र संगम में डुबकी लगाई। इतने बड़े आयोजन में कई रिकॉर्ड स्थापित हुए तो चुनौतियां भी आईं। कभी भगदड़ में हुई श्रद्धालुओं की मौत के आंकड़ों पर सवाल हुआ तो कभी गंगाजी और संगम के पानी पर सियासत हुई। पर इसके बावजूद करोड़ों लोग लेशमात्र भी विचलित नहीं हुए। 

अब जरा व्यवस्थाओं को भी देख लीजिए। प्रयागराज में पहली बार महाकुंभ क्षेत्र 4 हजार हेक्टेयर में था। ये दुनिया के सबसे बड़े स्टेडियम का 160 गुना बड़ा था। महाकुंभ मेला क्षेत्र में रिकॉर्ड 25 सेक्टर बनाए गए थे। 13 किलोमीटर के दायरे में 42 घाट बनाए गए। 42 घाटों में दस पक्के घाट भी थे, गंगा-यमुना को पार करने के लिए 30 पांटून पुल भी तैयार किए गए और मेले क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए 56 थाने और 144 चौकियां बनाई गईं। 2 साइबर थाने अलग से बनाए गए और मेला क्षेत्र में 50 हजार सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था। महाकुंभ में पहुंचे करोड़ों लोगों को देखकर दुनिया भर के मैनेजमेंट गुरु, बड़े बड़े विशेषज्ञ हैरान हैं कि कैसे एक नदी तट पर, त्रिवेणी संगम पर एक विशाल शहर बस गया और कैसे इनके बिजली, पानी, रहने की सुविधा, चिकित्सा सुविधा सभी सरकार ने मुहैया कराई। महाकुम्भ के श्रद्धालुओं की कुल संख्या अमेरिका की आबादी से दोगुनी है।

महाकुम्भ में मौनी अमावस्या पर अनहोनी हो गई। इसका असर पूरे क्षेत्र में दिख रहा था, संत समाज पर भी दिख रहा था, स्वयं मुख्यमंत्री जी के चेहरे पर भी साफ दिख रहा था। 29 जनवरी की शाम जब मुख्यमंत्री जी मीडिया से मुखातिब हुए तब काफी भावुक नजर आए। राजनीति की अपनी मजबूरियां हो सकती हैं, लेकिन देखिए यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक संत हैं, एक योगी हैं, उन्होंने उस गोरक्षपीठ मठ में दीक्षा ली है जिसका सनातन संस्कृति में गौरवपूर्ण इतिहास रहा है। मौनी अमावस्या की घटना के बाद मुख्यमंत्री बहुत व्यथित थे, उन्होंने जिन अफसरों, जिन सलाहकारों पर भरोसा किया था, शायद उन्होंने या तो सच्ची तस्वीर मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचाई या फिर जिन कंधों पर महाकुम्भ प्रशासन संभालने की जिम्मेदारी थी, वो अपने दायित्व को पूरा करने में असफल रहे। 

महाकुम्भ के आयोजन से लेकर उसके हर कार्यक्रम तक जिस तरह मुख्यमंत्री जी ने लखनऊ-प्रयागराज एक कर दिया, जिस तरह एक मुख्यमंत्री अपने बिजी शेड्यूल, बीच में आए दिल्ली विधानसभा चुनाव के बावजूद भी महाकुम्भ से लगातार जुड़े रहे और हर पल की जानकारी स्वयं लेते रहे वो किसी भी मुख्यमंत्री के लिए आसान काम नहीं होता।

मुख्यमंत्री ने मौनी अमावस्या की घटना पर तुरंत संज्ञान लेते हुए न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया और फिर पूरी व्यवस्था की समीक्षा की। दो और वरिष्ठ अधिकारियों को महाकुम्भ भेजा गया, जहां गौर करने वाली बात ये है कि जब 8-9 फरवरी को प्रयागराज और आसपास के जिलों में हाइवे पर भीषण जाम की स्थित पैदा हो गई तो मुख्यमंत्री जी ने समीक्षा बैठक में इन सभी अधिकारियों की भी क्लास ली, ये भी मीडिया में सुर्खियां बना। विशेष काम के लिए विशेष दायित्व निर्वहन की जरूरत होती है। ये माननीय मुख्यमंत्री की कार्यशैली को देखकर साफ देखा और समझा जा रहा था लेकिन शायद कुछ अधिकारी विशेष काम को नियमित ड्यूटी मानते रहे.. जिससे मौनी अमावस्या जैसा हादसा हुआ। मौनी अमावस्या के बाद बदले गए सुरक्षा प्रबंधों से साफ समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री के लिए किसी पसंद-नापंसद के अधिकारी से ज्यादा जरूरी महाकुम्भ का सफल आयोजन और श्रद्धालुओं की सुविधा प्राथमिकता में थी।

मौनी अमावस्या पर हुए हादसे के बाद 3 फरवरी वसंत पंचमी अमृत स्नान से पहले मुख्यमंत्री ने यातायात व्यवस्था और महाकुम्भ के प्रबंधों की समीक्षा कर उसे पुन:दुरुस्त किया और 3 फरवरी को लखनऊ में वरिष्ठ अधिकारियों के साथ स्वयं लखनऊ स्थित कंट्रोल रूम में बैठकर निगरानी करते रहे। वैसे तो हर अमृत स्नान और पर्व स्नान पर माननीय मुख्यमंत्री लगातार निगरानी कर रहे थे.. लेकिन वसंत पंचमी, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर उन्होंने स्वयं कंट्रोल रूम संभाला। 

29 जनवरी के बाद संगम नोज और गंगाजी के सभी घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था और बढ़ाई गई थी, संगम नोज पर Rapid Action Force और CRPF की बड़ी तादाद में तैनाती की गई थी। जो बेहद जिम्मेदारी के साथ भीड़ को नियंत्रित कर रहे थे और श्रद्धालुओं की हर सुविधा के साथ सुगमता से संगम स्नान का मार्ग प्रशस्त कर रहे थे। वसंत पंचमी अमृत स्नान पर प्रयागराज में 12 जिलों के डीएम, 15 IAS और 85 PCS अफसरों की ड्यूटी लगाई गई थी। 

वसंत पंचमी अमृत स्नान के लिए संगम नोज पर आने और जाने वाले रास्ते अलग-अलग थे और इनका कड़ाई से पालन भी कराया जा रहा था। अमृत स्नान के लिए आने वाले अखाड़ों के रास्ते में दोबारा बैरिकेडिंग लगाई गई जो इतनी मजबूत थी कि कोई भी आम श्रद्धालु इस रास्ते पर नहीं घुस सकता था। 

3 फरवरी को वसंत पंचमी अमृत स्नान पर 2.5 करोड़ लोगों ने अमृत स्नान किया। मौनी अमावस्या की दुखद परछाई से महाकुम्भ निकल चुका था, वसंत पंचमी पर अखाड़ों और महामंडलेश्वरों ने अपने सभी विधिविधान पूरे किए।

सुबह 5 बजे से वसंत पंचमी का अमृत स्नान प्रारंभ हुआ, सबसे पहले महानिर्वाणी और अटल अखाड़े से जुड़े साधु-संत संगम नोज पर पहुंचे और मां गंगा की गोद में कूदकर उनसे लिपट गए। मां गंगा और इन दिव्य संत महंतों का प्रेम किसी मां-बेटे का मिलन होता है। सभी ने अपने पहले अपने इष्टदेव और धर्मध्वजा को पावन स्नान कराया, अपने अस्त्र-शस्त्रों को स्नान किया.. और फिर जीकर संगम जल में अठखेलियां कीं। दुनिया भर की मीडिया के लिए ये तस्वीरें अविस्मरणीय होती हैं। दिन भर बारी-बारी से अखाड़ों के अमृत स्नान का ये क्रम चलता रहा और संगम नोज समेत गंगाजी के सभी 30 घाटों पर श्रद्धालु भी पावन स्नान करते रहे। वसंत पंचमी पर व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि कहीं से किसी को कोई परेशानी नहीं हुई। 

अखाड़े जब अमृत स्नान के लिए संगम नोज जा रहे थे और वापस लौट रहे थे तब बैरिकेड्स के दोनों तरफ बड़ी तादाद में श्रद्धालु दिव्य संतों के दर्शन कर रहे थे, उनसे आशीर्वाद ले रहे थे। स्नान के लिए जा रहे संत-महंत और महामंडलेश्वर अपने रथों से श्रद्धालुओं पर पुष्पमालाओं के गुच्छे बरसा रहे थे। आशीर्वाद का ये सिलसिला पूरे दिन चलता रहा।

महाकुम्भ जीवन में कुछ उतारने, यहां से अमृत रूपी ज्ञान ले जाने का संकल्प पर्व है। महाकुम्भ का सच्चा अर्थ यही है कि आप इस अद्भुत समय का कैसे सदुपयोग करते हैं, गंगा स्नान और संगम स्नान तो महाकुम्भ का अनिवार्य विधान है ही, लेकिन इसके अलावा आप यहां से क्या हासिल करते हैं, सत्संग, समाज, सेवाभाव से क्या सीखते हैं, ये इसका बड़ा उद्देश्य होता है। 

महाकुम्भ 2025 में प्रयागराज ने बहुत कुछ देखा है। 66 करोड़ श्रद्धालु देखे तो हिमालय से लेकर गिरि-पर्वतों, जंगलों, समंदर में साधना करने वाले दिव्य साधु-संत देखे, अखाड़ों का अद्भुत श्रंगार देखा, शोभायात्राएं देखीं, पीपा पुल से गुजरते रथ, नाचते-गाते और युद्ध कला का प्रदर्शन करते साधु-संत देखे, 10 लाख से ज्यादा कल्पवासी देखे, सैकड़ों देशी-विदेशी सेलिब्रिटी देखे, AI तकनीक से सुसज्जित डिजिटल खोया-पाया केंद्र देखे, आधुनिक तकनीक से युक्त सुरक्षा व्यवस्था देखी तो करोड़ों वो आस्थावान श्रद्धालु भी देखे जो बिना किसी शिकवा-शिकायत कर पावन स्नान कर अपने घरों को लौट गए और मोक्ष के भागी बने लेकिन इससे बढ़कर महाकुम्भ 2025 ने एक मुख्यमंत्री का वो अंतर्मन देखा, वो शुद्ध ह्रदय देखा .. जो दुनिया भर के सनातनियों के लिए धड़कता है। प्रयागराज और महाकुम्भ के बारे में रामचरित मानस की कुछ चौपाइयां बार-बार याद की जाती हैं।

माघ मकरगति जब रवि होई।

तीरथपतिहिं आव सब कोई।।

देव दनुज किन्नर नर श्रेणी।

सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी।।

महाकुम्भ 2025 ने ये पंक्तियां साकार होते देखीं और इन पंक्तियों को साकार करवाने के लिए महाकुम्भ का महानायक धरती पर भेजा, जिसे वर्तमान ही नहीं भविष्य में पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा।


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