SP MP Afzal Ansari: माफिया मुख्तार अंसारी के भाई और उत्तर प्रदेश की गाजीपुर लोकसभा सीट से सांसद अफजाल अंसारी को कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अफजाल अंसारी की अपील स्वीकार कर ली है। कृष्णानंद हत्याकांड मामले में गैंगस्टर केस में मिली सजा को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजीपुर की ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया है। अब सजा रद्द होने से अफजाल अंसारी की संसद की सदस्यता बरकरार रहेगी। इस मामले में जस्टिस संजय कुमार सिंह की सिंगल बेंच ने फैसला सुनाया।
दरअसल, बीते वर्ष 29 अप्रैल 2023 को सपा सांसद अफजाल अंसारी को भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़े गैंगस्टर एक्ट में ट्रायल कोर्ट द्वारा चार साल की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद अफजाल अंसारी को जेल जाना पड़ा था और उनकी संसद सदस्यता निरस्त हो गई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने सजा पर रोक लगा दी थी और अफजाल की सदस्यता बहाल कर दी थी। वहीं, लोकसभा चुनाव 2024 में अफजाल अंसारी ने गाजीपुर से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी।
23 साल पुराने केस में नेता मेधा पाटकर को मिली जमानत, जानें मामला
गौरतलब है 2005 में एक क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने के बाद, विधायक कृष्णानंद राय के काफिले पर उस समय हमला किया गया, जब वे घर लौट रहे थे। कृष्णानंद राय और उनके छह सहयोगियों की एके-47 की गोलियों से हत्या कर दी गई थी। नवंबर 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के सिलसिले में अफजाल अंसारी पर गैंगस्टर एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सपा सांसद अफजाल अंसारी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से की थी। उन्होंने 1985 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव लड़ा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अभय नारायण राय को 3,064 मतों के अंतर से हराया। 1985 से 2002 तक, अंसारी मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र से विधान सभा के सदस्य के रूप में पांच बार सेवा दे चुके हैं।
राजनीतिक मतभेदों के कारण छोड़ दिया था सपा का दामन (SP MP Afzal Ansari)
अफ़ज़ाल अंसारी ने 2004 का लोकसभा आम चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर लड़ा और भारतीय जनता पार्टी के मनोज सिन्हा को 226,777 मतों के अंतर से हराया। उन्होंने 2009 का आम चुनाव समाजवादी पार्टी (सपा) के टिकट पर गाजीपुर से लड़ा, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के राधे मोहन सिंह से हार गए। कुछ राजनीतिक मतभेदों के बाद, अंसारी ने समाजवादी पार्टी छोड़ दी और कौमी एकता दल नामक एक नई राजनीतिक पार्टी की स्थापना की और समाजवादी पार्टी में विलय करने से पहले इसके महासचिव के रूप में कार्य किया।