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सेम सेक्स मैरिज-शादी को ना अधिकारों को हां !


समलैंगिक विवाह (सेम सेक्स मैरिज) को कानूनी दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आज को अपना फैसला सुना दिया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को कोई भी कानूनी मान्यता नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को दिशा निर्देश दिए हैं कि वह इस मामले में एक कमेटी का गठन करे और उसके आधार पर आगे के फैसले निर्धारित किए जाएंगे।

सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वासन दिया था कि समलैंगिक शादियों को मान्यता दिए बगैर ऐसे कपल की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के मकसद से कुछ अधिकार देने पर सरकार विचार करेगी। इसके लिए कैबिनेट सेक्रेट्री की अध्यक्षता में कमिटी का गठन होगा। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल जहां इस बात के पक्षधर थे कि समलैंगिक कपल एक सिविल यूनियन में रह सकते हैं और सरकार की ज़िम्मेदारी बनती है कि वो हेट्रोसेक्सुअल की तर्ज पर उन्हें क़ानून सम्मत अधिकार उपलब्ध कराए। वहीं जस्टिस रविंद्र भट्ट, जस्टिस पी एस नरसिम्हा,जस्टिस हिमा कोहली की राय अलग थी। इन तीन जजों का मानना था कि चूंकि शादी को  संविधान में मूल अधिकार का दर्जा नहीं दिया गया है। लिहाजा समलैंगिक कपल को सिविल यूनियन में रहने का अधिकार कोर्ट नहीं दे सकता है। कनाडा के जैसे कई देशो में सिविल यूनियन को मान्यता है, जहां समलैंगिक कपल को शादी को क़ानूनी मान्यता दिए बगैर ऐसे कपल को शादीशुदा हेट्रोसेक्सुअल के समान  ही अधिकार हासिल है।

सेम सेक्स मैरिज़ पर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने एक मत से कहा कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता नहीं दे सकते हैं। साथ ही यह भी बताया कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत उसमें कोई छेड़ छाड़ नहीं की जाएगी। सरकार एक कमिटी बनाए और जांच करें कि जो लोग सेम सेक्स मैरिज में रहना चाहते हैं उन्हें बैंक अकाउंट खोलने में दिक्कत आ रही है या बैंक से लोन लेने में दिक्कत आ रही है या इसके अलावा भी कोई लीगल राइ्ट्स की समस्याओं से यदि  जूझ रहे हैं अथवा नहीं। साथ ही पांच जजों की बेंच ने शादी करने के लिए कानूनी मंजूरी नहीं दी है।

बच्चा गोद ले सकते हैं ?

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील अश्विनी उपाध्याय ने बताया कि सेम सेक्स मैरिज में रहने वाले लोगों के लिए कि क्या वो बच्चा गोद ले सकते हैं या नहीं। इस मुद्दे पर उन्होंने बताया कि पांच जजों की बेंच के मत में विभाजन हो गया। तीन जजों ने कहा कि बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं मिलेगा जबकि 2 जजों ने इसके विपरीत अपना मत प्रकट किया कि बच्चा गोद लेने का अधिकार मिलेगा।  समलैंगिक कपल को बच्चा गोद लेने के लिए CARA के मौजूदा प्रावधान में बदलाव किया जाए या नहीं है। इस पर भी संविधान पीठ के जज एकमत नहीं दिखे। चीफ जस्टिस और जस्टिस संजय किशन कौल जहां समलैंगिक कपल को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार के पक्षधर थे, वहीं बाकी 3 जजों की राय इससे अलग थी। यानि संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत से माना कि समलैंगिक कपल को मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक बच्चा गोद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता।

इसके इतर सरकार ने समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध किया था। सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता का कहना था कि भारतीय समाज व्यापक रूप में समलैंगिक शादियों को मान्यता नहीं देता है। कोर्ट में दायर याचिकाएं शहरी वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं और कोर्ट को समाज के बड़े तबके की राय को नजरअंदाज कर ऐसा कोई फैसला नहीं लेना चाहिए. सरकार का मानना था कि इस मसले पर कोई फैसला लेना विधायिका का काम है और कोर्ट को इसमे दखल नहीं देना चाहिए।

11 मई को कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई के बाद इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था। मामले को सुनते समय सामाजिक संगठनों और LGBTQ मामले पर अपनी विशेषज्ञता रखने वालों की याचिका पर केंद्र सरकार समेत देश की सभी राज्य सरकारों को एक पक्ष बनाया गया था। पूरी विडियो देखें-


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