मध्य प्रदेश में चुनावी हलचल और सरगर्मी दिन पर दिन बढ़ती ही जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी आज ग्वालियर जिले के दौरे पर आए जहां साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। पीएम मोदी पहली बार ग्वालियर-चंबल क्षेत्र के दौरे पर आए थे।यहीं से पीएम मोदी ने मध्य प्रदेश के चुनावी अभियान का शंखनाद किया था। यह इलाका केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का गढ़ माना जाता है। इसके साथ ही यह इस समय राजनीति का केंद्र बिंदु बना हुआ है। राज्य में साल के अंत में चुनाव है। ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के ग्वालियर क्षेत्र के दौरे के राजनैतिक मायने निकाले जा रहे हैं। भाजपा का फोकस इस क्षेत्र पर इतना क्यों कर रही है? इसको जानने की कोशिश करते हैं।
ग्वालियर का राजनैतिक समीकरण
ग्वालियर संभाग में कुल पांच जिले आते हैं जिनमें ग्वालियर, गुना, शिवपुरी, अशोकनगर और दतिया जिले आते हैं। इन पांच जिलों में कुल 21 विधानसभा सीटें पड़ती हैं। दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में ग्वालियर भी उन क्षेत्रों में थे, जिसने कांग्रेस को अधिक सीटें दिलाकर राज्य में वर्षों बाद पार्टी की सरकार बनाने में मदद की थी। पिछले चुनाव में 114 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को यहां से 16 सीटें मिली थीं। वहीं भाजपा को इस इलाके में महज पांच सीटें ही मिल सकी थीं। 109 सीटें जीतने वाली भाजपा को ग्वालियर क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा था।
सिंधिया की बगावत
दिसंबर 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के करीब 15 महीने बाद मार्च 2020 को मध्य प्रदेश के सियासी खेल हो गया। 22 सिंधिया समर्थक विधायकों ने पार्टी से बगावत कर ली। इस बीच 10 मार्च 2020 को कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आए। इस मुलाकात के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। अगले दिन यानी 11 मार्च को सिंधिया ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया। विधायकों के लगातार इस्तीफे के बाद कांग्रेस ने यहीं से अपनी हार मान ली । 20 मार्च को दोपहर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले दिन 21 मार्च को दिल्ली में जे पी नड्डा की उपस्थिति में विधायकी से इस्तीफा दे चुके सभी 22 बागी भाजपा में शामिल हो गए थे। वहीं ग्वालियर संभाग क्षेत्र से भी नौ विधायक भाजपा में शामिल हुए। इनमें रक्षा संतराम सरोनिया (भांडेर सीट, दतिया) जयपाल सिंह ‘जज्जी’ (अशोक नगर सीट), महेंद्र सिंह सिसोदिया (बमोरी सीट गुना), इमरती देवी (डबरा सीट, ग्वालियर) प्रद्युम्न सिंह तोमर (ग्वालियर सीट), जसमंत जाटव (करेरा सीट, शिवपुरी), मुन्नालाल गोयल (ग्वालियर पूर्व सीट), ब्रजेंद्र सिंह यादव (मुंगावली सीट, अशोकनगर) और सुरेश धाकड़ (पोहारी सीट, शिवपुरी)। जिससे कांग्रेस को काफी बड़ा झटका लगा था।
बागियों की सीट पर उपचुनाव का नतीजा
सरकार गिरने के बाद भी कांग्रेस में इस्तीफे का सिलसिला नहीं रुका। 23 जुलाई 2020 को पार्टी के अन्य तीन विधायकों ने कांग्रेस को अलविदा कह भाजपा का दामन थाम लिया। इसके अलावा, तीन सीटें (जौरा, आगर और ब्यावरा) अपने संबंधित मौजूदा विधायकों के निधन के कारण खाली हो गईं। तीन नवंबर 2020 को सभी 28 खाली सीटों को भरने के लिए उपचुनाव कराया गया। इस उपचुनाव में 28 में से भाजपा को 19 और कांग्रेस को 9 सीटें मिलीं थीं। ग्वालियर संभाग क्षेत्र में इन नतीजों की बात करें तो कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। उसके विधायकों की संख्या 16 से घटकर 10 रह गई। दूसरी ओर सिंधिया गुट के साथ आने से भाजपा को फायदा हुआ और उसके विधायक 6 से बढ़कर 11 हो गए। मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा के लिए अब तक भाजपा ने कुल 79 नामों की घोषणा कर दी है। क्षेत्रवार आंकड़े देखें तो अलावा ग्वालियर-चंबल की 34 में से 15 सीटों पर अब तक उम्मीदवार घोषित किए गए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी का ग्वालियर दौरा
भाजपा को साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में ग्वालियर और चंबल अंचल की 34 सीटों से काफी उम्मीद है। 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को इस इलाके में इच्छित सफलता नहीं मिली थी। सिंधिया भाजपा के साथ आ गए हैं ऐसे में पार्टी की कोशिश है कि वह अपना प्रदर्शन बेहतर करे। इससे पहले निकाय चुनाव में भाजपा कांग्रेस से झटका खा चुकी है। ग्वालियर-मुरैना में कांग्रेस ने महापौर का चुनाव जीता था। लिहाजा भाजपा पीएम की रैली के जरिए अब उस इलाके के वोटरों को साधने की कोशिश कर रही है। पीएम मोदी के आने से भाजपा कार्यकर्ताओं में नया जोश देखते ही बना।