कल वाराणसी कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर ‘व्यास का तेखाना’ क्षेत्र में प्रार्थना करने की अनुमति दी गई। मुस्लिम पक्ष के वकील अखलाक अहमद ने कहा कि वे वाराणसी कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
अखलाक अहमद ने कहा कि हम फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट जाएंगे। आदेश में 2022 की एडवोकेट कमिश्नर रिपोर्ट, ASI की रिपोर्ट और 1937 के फैसले को नजरअंदाज किया गया है, जो हमारे पक्ष में था। हिंदू पक्ष ने कोई सबूत नहीं रखा है कि 1993 से पहले प्रार्थनाएँ होती थीं। उस स्थान पर ऐसी कोई मूर्ति नहीं है।
अधिवक्ता मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि वह इस आदेश को लेकर ऊपरी अदालतों में जायेंगे। मैं ऐसे किसी भी आदेश को स्वीकार नहीं करूंगा। जिलाधिकारी और जिला अध्यक्ष दोनों मिलकर काम कर रहे हैं। हम कानूनी तौर पर इससे लड़ेंगे। यह राजनीतिक लाभ लेने के लिए हो रहा है। वही रवैया अपनाया जा रहा है, जो बाबरी मामले में किया गया था। कमिश्नर की रिपोर्ट और ASI की रिपोर्ट में पहले कहा गया था कि अंदर कुछ भी नहीं था। मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा कि हम फैसले से बहुत नाखुश हैं। मेराजुद्दीन सिद्दीकी ने आगे कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि 1993 से पहले प्रार्थनाएं होती थीं।
यह तब हुआ जब वाराणसी अदालत ने बुधवार को हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर ‘व्यास का तेखाना’ क्षेत्र में प्रार्थना करने की अनुमति दी। कोर्ट ने जिला प्रशासन को अगले सात दिनों में जरूरी इंतजाम करने को कहा है।
हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया कि सात दिनों के भीतर पूजा शुरू हो जाएगी। सभी को पूजा करने का अधिकार होगा। हिंदू पक्ष को ‘व्यास का तेखाना’ में प्रार्थना करने की अनुमति है। जिला प्रशासन को 7 दिनों के भीतर व्यवस्था करनी होगी।
मस्जिद के तहखाने में चार तहखाने हैं, जिनमें से एक अभी भी व्यास परिवार के कब्जे में है, जो वहां रहते थे। व्यास ने याचिका दायर की थी कि, वंशानुगत पुजारी के रूप में, उन्हें तहखाना में प्रवेश करने और पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति दी जाए।