हरियाणा में मंगलवार को बीजेपी और जेजेपी का साथ छूट गया, दोनों के बीच गठबंधन टूट गया। मनोहर लाल खट्टर की जगह सरकार की कमान नायब सिंह सैनी के हाथों में चली गई। भाजपा और जेजेपी का 4 साल पुराना गठबंधन टूटना कांग्रेस के लिए अच्छी खबर नहीं है। आप भी सोच रहे होंगे बीजेपी और जीजेपी के गठबंधन टूटने से कांग्रेस को क्या नुकसान होगा? आइए आपको बताते हैं।
हरियाणा में करीब 25 फ़ीसदी आबादी जाट हैं। हरियाणा की सत्ता पर लंबे समय से जाट चेहरे काबिज रहे हैं। चाहे वह चौटाला परिवार की इंडियन नेशनल लोकदल हों या भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सहारे कांग्रेस पार्टी हो। दोनों पार्टियों का जनाधार जाट वाटर ही है। साल 2014 में कई सालों के बाद ऐसा हुआ जब गैर जाट मुख्यमंत्री को हरियाणा की कमान सौंप गई। साल 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद मनोहर लाल खट्टर मुख्यमंत्री बनें। तब भी इसको लेकर खूब हो हल्ला हुआ था। लेकिन साल 2019 में हुए चुनाव में भाजपा बहुमत के आंकड़े से 6 सीटें पीछे रह गई तो इसके पीछे भी जाट और जाट आरक्षण को लेकर जाट वोटर्स की नाराजगी एक वजह बताई गई। साल 2024 के चुनाव से पहले जाटों का नाराज होना सत्ताधारी भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। किसान आंदोलन में पंजाब के बाद हरियाणा दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा है। कुछ समय पहले एमएसपी से संबंधित कानून की मांग को लेकर किसान सड़कों पर उतर आए थे। कांग्रेस को माहौल अपने मुफीद लगा लेकिन अब तस्वीर बदल रही है और इस तस्वीर के बदलने की मुख्य वजह हैं दुष्यंत चौटाला। अब वो हरियाणा में गैर जाट की लाइन की रणनीति पर आगे बढ़ेंगे।
पिछले कुछ समय में कांग्रेस ने हरियाणा में जाट पॉलिटिक्स को पिच पर खुद को मजबूत करने की कोशिश की है। चौधरी वीरेंद्र सिंह के बेटे और हिसार से बीजेपी सांसद विजेंद्र चौधरी के कांग्रेस में जाने को भी इससे जोड़कर ही देखा जा रहा है। वहीं INLD की जाट वोट बैंक पर पकड़ भी कुछ समय से कमजोर पड़ी है। क्योंकि दुष्यंत चौटाला ने अपनी अलग पार्टी बना ली थी। लेकिन अब अगर दुष्यंत चौटाला लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं तो वह जाट वोट बैंक में सेंध लगाएंगे जिसका सीधा फायदा बीजेपी को होगा और नुकसान होगा कांग्रेस को।