यूपी में निकाय चुनाव होने वाले हैं और इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है. अभी हाल में ही चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया था. कुछ पार्टियों का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन भी गया था साथ में कुछ पार्टियों का राज्य स्तर का दर्जा भी छिन गया था और इसमें समाजवादी पार्टी की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल भी थी. रालोद समाजवादी पार्टी की सहयोगी रही है और पश्चिम उत्तर प्रदेश में इसका विशेष प्रभाव रहा है. सपा, रालोद के सहयोग से पश्चिम में भाजपा को चुनौती देना चाह रही थी लेकिन रालोद के राज्य स्तर की पार्टी की मान्यता खत्म होने से रालोद और सपा को बहुत नुकसान हो सकता है. रालोद को 2022 में 8 सीटों पर जीत मिली थी और खतौली विधानसभा के उपचुनाव में चर्चित जीत भी रालोद की ही थी. राज्य पार्टी का दर्जा छिनने से रालोद का चुनाव चिंह्न भी छिना जा सकता है और अगर ऐसा हुआ तो रालोद के साथ साथ सपा के लिए भी बड़ी परेशानी की बात होगी.
अभी तो निकाय चुनाव है और निकाय चुनावों में भाजपा वैसे भी भारी ही रहती है. भाजपा के चेयरमैन, मेयर, महापौरों की संख्या अधिक होती है. निकाय के चुनावों में शहरी मतदाता ही होते है और शहरी मतदाताओं में भाजपा की अच्छी पकड़ मानी जाती रही है. रालोद को 2002 में राज्य पार्टी का दर्जा मिला था लेकिन 21 साल बाद रालोद का ये दर्जा छिन गया है. इसके बाद रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने राज्य निर्वाचन आयुक्त को पत्र लिखकर अपनी पार्टी के सिंबल हैंडपंप को बरकरार रखने की अपील की है. निकाय चुनाव के बाद 2024 के लोकसभा के चुनाव भी अब ज्यादा दूर नहीं हैं जिससे रालोद और सपा की परेशानी और भी ज्यादा बढ़ सकती है.