Lok Sabha Election 2024 Result: लोकसभा चुनाव के नतीजों ने नेताओं को आइना दिखा दिया है। NDA गठबंधन को 292 तो इंडिया गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं। जनता ने न मोदी जी को 400 पार कराया है औऱ न ही इंडिया गठबंधन को सरकार बनाने का मौका दिया है। जनादेश ने BJP को भी अकेले दम पर सरकार बनाने का मौका नहीं दिया है। बीजेपी अकेले दम पर 240 सीटें ही जीत सकी है। जनादेश साफ कह रहा है कि देश में जिसको भी सरकार चलानी है उसको अपने साथियों का ध्यान रखना होगा। फिलहाल मोदी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को इस्तीफा सौंप दिया है और नई सरकार के लिए एनडीए ने दावा भी पेश कर दिया है।
मोदी और बीजेपी तीसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं, लेकिन ये चुनाव बीजेपी को बहुत टीस दे गया है। कहां 400 पार का नारा औऱ कहां गाड़ी 240 पर अटक गई। शायद ही बीजेपी और उसके रणनीतिकार चुनाव शुरू होने के वक्त इसकी कल्पना कर रहे होंगे। मोदी जी लगातार कह रहे थे कि तीसरे कार्यकाल में बड़े और कड़े फैसले लेने हैं, लेकिन ये 240 सीटों के दम पर कैसे हो पाएगा। इसकी एक बड़ी वजह ये है कि अब मोदी जी प्रधानमंत्री बनेंगे तो उन्हें हरवक्त NDA के दो साथियों को साधे रहना होगा। पहले टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू औऱ दूसरे नीतीश कुमार। टीडीपी ने आंध्र प्रदेश में 16 सीटें जीती हैं तो नीतीश कुमार की पार्टी ने 12 सीटें। चुनाव नतीजों के बाद बुधवार को सबसे ज्यादा चर्चा इन्हीं दो नेताओं की हो रही है।
चंद्रबाबू नायडू का जैसे ही बयान कि वो एनडीए के साथ ही रहेंगे तो उससे शेयर बाजार उछल गया। हालांकि, इंडिया गठबंधन के नेता भी उनसे संपर्क साध रहे हैं। चंद्रबाबू नायडू लंबे समय बाद एनडीए में आए हैं, वो भी इसी चुनाव के कुछ दिन पहले। इसके पहले वे प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को जमकर भला बुरा कहते थे। चंद्रबाबू नायडू की पार्टी का चुनाव चिह्न साइकिल है और समाजवादी पार्टी का भी साइकिल। समाजवादी पार्टी के तमाम नेता कह रहे हैं कि चंद्रबाबू नायडू साइकिल वाले हैं आखिर में साइकिल के साथ ही रहेंगे।
नई सरकार के दावों के बीच एक तस्वीर और खूब सुर्खियों में है। वो तस्वीर है नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की। बुधवार को दिल्ली में NDA औऱ इंडिया गठबंधन की अलग-अलग बैठक है, जिसमें शामिल होने के लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को दिल्ली आना था। सभी जानते हैं नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव ने चुनाव के लिए चार्टर्ड प्लेन हायर किए थे। ये प्लेन अभी इन दोनों के पास हैं। मुख्यमंत्री के पास तो सरकारी विमान की भी सुविधा रहती है। दोनों को दिल्ली आना था। इसके लिए नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव दोनों ने पटना से दिल्ली के लिए कमर्शियल फ्लाइट चुनी। चाचा और भतीजा दोनों एक ही फ्लाइट में दिल्ली आए। पहले तेजस्वी यादव नीतीश कुमार के पीछे वाली सीट पर दिखे और उसके बाद नीतीश के बगल में बैठ गए। दोनों में जमकर हंसी ठिठोली भी होती रही। ये तस्वीरें मीडिया के जरिए जनता तक पहुंचीं तो इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं।
पूरे चुनाव में तेजस्वी यादव यही कहते रहे हैं कि उनके चाचा कब किसके साथ हैं। इसकी गारंटी मोदी जी भी नहीं ले सकते हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि इसी साल जनवरी में नीतीश कुमार ने जब से आरजेडी का साथ छोड़ा है, तब से तेजस्वी ने अपने चाचा के खिलाफ कोई आक्रामक बयान नहीं दिया है उन्होंने नीतीश के लिए बेहद संयम से बयान दिए हैं। चुनाव नतीजों के लोग अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में बीजेपी के खराब प्रदर्शन की खूब चर्चा हो रही है। 4 दिन पहले तक बंगाल को मोदी जी बेस्ट परफॉर्मर बता रहे थे, वहां बीजेपी और मोदी का जादू नहीं चला है, बंगाल में टीएमसी ने 29 सीटें जीत ली है।
दरअसल, भारतीय राजनीति में यह कहावत हमेशा कही जाती है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। यूपी में बीजेपी ने अपने दम पर 33 और अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ 36 सीटें जीती हैं। यह पिछले चुनावों से काफी कम है। 2014 में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश से 71 सांसद लोकसभा में भेजे थे और 2019 में उसने अपने दम पर 62 और अपने सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) के साथ दो सीटें जीतीं। अब इस चुनाव में बीजेपी यूपी में कैसे चूक गई। इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं। कई विश्लेषकों ने पाया है कि अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला इसके बेहतर प्रदर्शन कर गया तो कई बीजेपी नेता दबे छुपे कह रहे हैं कि बीजेपी के टिकट बंटवारे में सीएम योगी को तरजीह नहीं दी गई।
बीजेपी का टिकट बंटवारा कुछ सर्वेक्षण एजेंसियों और कुछ खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर किया गया। हकीकत क्या है ये तो बीजेपी आरएसएस ही जाने, लेकिन अगर ऐसा हुआ है तो इसके ये मायने भी निकाले जा सकते हैं कि यूपी में गृह मंत्री अमित शाह की चली और जिन शाह ने 2014 में बीजेपी को यूपी में 71 सीटों तक पहुंचाया था। अब वो करिश्मा नहीं चल पाया और यूपी में बीजेपी 33 सीटों पर समिट गई। इसके अलावा ऐसा लगता है कि राम मंदिर का मुद्दा सियासी तौर पर मतदाताओं के बीच काम नहीं कर पाया। बीजेपी फैजाबाद सीट भी हार गई, जिसमे राम मंदिर का शहर अयोध्या भी शामिल है।
फिलहाल NDA के पास सरकार बनाने और चलाने लायक बहुमत है। बीजेपी ने अतीत में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार चलाई है, लेकिन मोदी के नेतृत्व में पार्टी के लिए अस्थिर सहयोगियों से निपटना एक नई चुनौती है। जैसा कि हमने आपको बताया चंद्रबाबू नायडू औऱ नीतीश कुमार की पार्टी ने अभी से बीजेपी पर दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। टीडीपी आंध्र प्रदेश के लिए स्पेशल स्टेटस मांग रही है तो बिहार भी इसमें पीछे नहीं है। नीतीश कुमार लंबे समय से ये मांग करते रहे हैं। खबरे तो ये भी हैं कि तीसरी बार मोदी सरकार बनने पर टीडीपी 4 से 5 कैबिनेट मंत्री अपने कोटे से बनाने की मांग कर रहे हैं। नीतीश कुमार ने खुले तौर पर अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं।
कुल मिलाकर मामला ये है कि 240 सीटों वाली बीजेपी को बड़े और कड़े फैसले लेने के लिए सहयोगियों पर निर्भर रहना होगा। कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर चलना होगा। मोदी ने गुजरात में और 10 साल देश में अकेले अपनी पार्टी के दम पर सरकार चलाई है। मोदी और शाह की टीम को वाजपेयी और आडवाणी जी की टीम की तरह गंठबंधन सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। ऐसे में तीसरे कार्यकाल में सरकार को हर कदम फूंक-फूक कर रखना होगा।
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