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श्रीलंका के रास्ते मालदीव पर शिकंजा, बांग्लादेश की दगाबाजी का फिलीपींस में जवाब… चीन की नाक में कैसे नकेल डाल रहा भारत?


हिंद महासागर क्षेत्र में ये पहली बार हो रहा है, जब भारत ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना शुरू किया है और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के एंटी-इंडिया स्टैंड के बाद, चीन को संदेश देने के लिए भारत सरकार ने पहली बार श्रीलंका में अपनी पनडुब्बी को भेजा है। इस बीच मालदीव को भारत से दुश्मनी अब महंगी पड़ने लगी है। इस द्वीपीय देश के इनकम का एक बड़ा हिस्सा पर्यटन से आता है, मगर भारत-मालदीव के बीच राजनयिक विवाद के बाद, ज्यादातर भारतीय पर्यटक श्रीलंका का रुख करने लगे हैं।

हालांकि, चीनी पर्यटक मालदीव पहुंचकर भारतीय पर्यटकों की कम होती संख्या की भरपाई जरूर करने में लगे हैं, लेकिन मालदीव के राष्ट्रपति को आज अपनी संसद की खाली सीटों को देखकर अहसास जरूर हो रहा होगा, कि भारत से पंगा लेकर हिंद महासागर क्षेत्र में रहना, पानी में रहकर मगर से बैर लेने के बराबर है।

भारत से पंगा लेना मुइज्जू के लिए आसान नहीं

आज मालदीव की संसद में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू को पहली बार संबोधित करना था, लेकिन उससे पहले ही उनके एंटी-इंडिया स्टैंड की वजह से दोनों प्रमुख विपक्षी पार्टी मालदीविय डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) और डेमोक्रेटिक पार्टी ने उनका बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया।

इसका नतीजा ये हुआ, कि मालदीव की संसद में राष्ट्रपति के संबोधन के समय चुनिंदा सांसद ही मौजूद थे और संसद करीब करीब खाली था। अपने संबोधन के दौरान राष्ट्रपति मोइज्जू ने कहा, कि “भारतीय सैनिकों की वापसी को लेकर भारत सरकार के साथ सहमति बन गई है और 10 मई तक सभी भारतीय सैनिक मालदीव छोड़कर चले जाएंगे। इसके अलावा राष्ट्रपति मोइज्जू ने कहा, कि “किसी भी देश को मालदीव की संप्रभुता में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं देंगे।”

मालदीव में घटे भारतीय पर्यटक

4 सालों के बाद ये पहली बार है, जब व‍िदेशी पर्यटकों के मामले में श्रीलंका, अब मालदीव से आगे निकल गया हैं। ताजा आंकड़ों के मुताबिक श्रीलंका में सबसे ज्‍यादा संख्‍या भारतीय पर्यटकों की रही, भारतीय पर्यटक अब मालदीव से दूरी बनाने लगे हैं।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, जनवरी 2024 में श्रीलंका में मालदीव की तुलना में ज्यादा पर्यटक पहुंचे हैं। लॉकडाउन के बाद श्रीलंका, मालदीव की तुलना में पर्यटन में काफी पिछड़ गया था, लेकिन हालिया विवाद का उसे खूब फायदा पहुंचता दिख रहा है। श्रीलंका के पास भारत-मालदीव विवाद को भुनाने और अपने देश के पर्यटन को फिर से अपने पैरों पर खड़ा कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने का मौका है।

और श्रीलंका ने इंडियन नेवी की पनडुब्बी की अपनी स्वतंत्रता दिवस पर मेजबानी कर भारत को संदेश देने की कोशिश की है, कि हिंद महासागर सागर क्षेत्र में वो भारत के खिलाफ चीन को खड़ा नहीं होने देगा। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पिछले हफ्ते ही एक कार्यक्रम के दौरान कहा था, कि भारत पर्यटकों को श्रीलंका की यात्रा करनी चाहिए, क्योंकि श्रीलंका काफी खूबसूरत देश है। भारतीय विदेश मंत्री का श्रीलंका की टूरिज्म को लेकर दिया बयान भी मालदीव के ही संदर्भ में देखा जाना चाहिए।

हिंद महासागर में वर्चस्व की जंग

दूसरी तरफ, श्रीलंका ने अपने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भारतीय नौसेना की पनडुब्बी आईएनएस करंज का स्वागत कर हिंद महासागर की ‘लड़ाई’ को दिलचस्प बना दिया है। श्रीलंका में भारतीय पनडुब्बी का स्वागत किया जाना, भारत के लिए एक कूटनीतिक जीत का प्रतीक है। लेकिन, भारतीय बैकयार्ड में चीनी पनडुब्बी डॉकिंग का खतरा अभी खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि बीजिंग, बांग्लादेश में एक विशाल नौसैनिक अड्डे का निर्माण कर रहा है।

चीन ने बांग्लादेश नौसेना को दो पनडुब्बियां सस्ते दाम पर बेची हैं, जो कॉक्स बाजार बंदरगाह में रहेंगी,  जिसका उद्घाटन 2023 में किया गया था।

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के नाम पर बनाए गये बंदरगाह में चीन की दो पनडुब्बियां रहेंगी, जिसका निर्माण चीन ने किया है। ये पनडुब्बियां खतने की बात नहीं हैं, बल्कि इन पनडुब्बियों के रख रखाव, मरम्मत, पनडुब्बी चलाने की ट्रेनिंग देने के लिए चीनी अधिकारियों का बांग्लादेश में तैनात रहना, भारत के लिए चिंता की बात है।

बांग्लादेश में चीन की मदद से बंदरगाह का निर्माण, चीनी पनडुब्बियों के साथ चीनी अधिकारियों के रहने का मतलब है, कि बंगाल की खाड़ी में पैर जमाने से पीएलए की, चीन के तटों से दूर तक काम करने की क्षमता काफी बढ़ जाएगी और भारत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए नई चुनौतियां पैदा होंगी।

हालांकि, पहले चीन के जासूसी जहाज श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुंचते रहे हैं, जिसे चीन 99 सालों के लिए लीज पर ले रखा है, लेकिन पिछले महीने श्रीलंका ने चीनी जासूसी जहाज को फिर से अपने बंदरगाह पर आने से साफ मना कर दिया, जो भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत है।

हिंद महासागर में जासूसी के जरिए चीन जो जानकारियां जुटाता था, उसका इस्तेमाल वो मलक्का स्ट्रेट के उथले पानी और पूर्वी हिंद महासागर के माध्यम से नेविगेट करने के लिए करता था और चीनी पनडुब्बियों के लिए ये जानकारियां अमूल्य होती थीं, जिससे भारत को बहुत परेशानी होती है।

चीन लंबे समय से बंगाल की खाड़ी, हिंद महासागर और अरब सागर तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है। और चीन को बंगाल की खाड़ी में प्रवेश के लिए पहले म्यांमार और अब बांग्लादेश से काफी मदद मिल रही है, लिहाजा भारत को काफी सतर्क है और भारत ने चीन को घेरने के लिए दक्षिण चीन सागर में अपना कदम रखना शुरू कर दिया है।

दक्षिण चीन सागर में भारतीय ब्रह्मोस इसी महीने चीन के दुश्मन फिलीपींस के पास पहुंचने वाला है, जिसको लेकर फिलीपींस ने कहा है, कि वो भारतीय ब्रह्मोस को अपने समुद्री तटों पर तैनात करेगा। जाहिर तौर पर, भारत का ये कदम चीन को उसी की भाषा में जवाब है। चीन की नाक के नीचे ब्रह्मोस की तैनाती, बांग्लादेश में चीनी पनडुब्बी तैनात करने का जवाब माना जा रहा है।

कुल मिलाकर, मोदी सरकार अब चीन के साथ बातचीत से ज्यादा दो-दो हाथ करने के मूड में है, जैसी भाषा चीन समझता है। लिहाजा, आने वाले वक्त में हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी में हलचल और तेज होने वाली है।


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