Election 2024: चुनाव के मद्देनजर यह साल केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेकों देशों के लिए बहुत अहम होने जा रहा है। भारत में 19 अप्रैल से सात चरणों में चुनाव होगा। दुनिया की एक बड़ी आबादी भारत में रहती है जिसमें इस बार करीब 96.8 करोड़ मतदाता वोट डालेंगे। वहीं, दुनिया में अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, मेक्सिको, साउथ अफ्रीका, ब्रिटेन आदि जैसे अनेकों देशों में या तो इलेक्शन हो चुके हैं या फिर आने वाले कुछ महीनो में सम्पन्न हो जाएंगे।
चुनावों के लिहाज से 2024 ऐतिहासिक
इस मामले में ये अपने आप में ऐतिहासिक साल है। इस दौरान होने वाले चुनावों में कौन जीतेगा, कौन पार्टी लीड करेगी, कौन देश को रिप्रेजेंट करेगा, इसका असर इंटरनेशनल रिलेशन में पड़ने जा रहा है। जैसे इस बार अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की हवा अभी से चलने लगी है जबकि वहां चुनाव नवंबर में होंगे। ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी से ताल्लुक रखते हैं जो मुख्य विपक्षी पार्टी डेमोक्रेटिक से कहीं अधिक आक्रामक मानी जाती है। इस बार ट्रंप को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स का जो सर्वे है उसमें 59% वोटरों का मानना है कि ट्रंप मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन की तुलना में कहीं बेहतर तरीके से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर हो सकते हैं।
अमेरिका में ट्रंप की लहर
अमेरिका में कौन नेता होता है इसका असर पूरी दुनिया में देखने के लिए मिलता है जैसे कि ट्रंप रूस की वर्तमान सत्ता के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर दिखाते रहे हैं, तो वहीं चीन के साथ उनकी बहुत ज्यादा बनती नहीं दिखती है। दुनिया के साथ भारत की भी नजरें इस बात पर रहेंगी की ट्रंप आते हैं या नहीं। अमेरिका की लीडरशिप में बदलाव पारंपरिक तौर पर बाकी देशों की अर्थव्यवस्था और कूटनीति पर प्रभाव डालता रहा है। ट्रंप के आने से इजरायल-हमास के बीच अमेरिका कहीं बेहतर मध्यस्थ की भूमिका में नजर आए तो अचरज नहीं होगा। ट्रंप के कार्यकाल में पहले ही इजराइल और खाड़ी देशों के बीच रिश्तों में सुधार आया था। इस यहूदी राष्ट्र का यूएई और बहरीन के साथ भी शांति समझौता हुआ था। जाहिर है मिडिल ईस्ट भी इस चुनाव पर नजर रख रहा है।
यूरोपियन यूनियन में दक्षिणपंथी विचारधारा की हवा
एक और बेहद अहम चुनाव यूरोपियन यूनियन में होने जा रहे हैं। इस साल जून में यहां 27 देश 720 सीटों पर इलेक्शन कराने जा रहे हैं। ईयू में भले ही अब ब्रिटेन शामिल नहीं है लेकिन जर्मनी, फ्रांस, डेनमार्क, पोलैंड जैसे मजबूत देश मौजूद हैं। खास बात ये है कि यूरोपियन यूनियन में भी दक्षिणपंथ की लहर बह रही है। दक्षिणपंथी यानी की पारंपरिक विचारधारा से ज्यादा जुड़ाव रखने वाले लोग।
अगर ऐसी पार्टियों को लीडरशिप मिलती है तो यूरोपीय देशों में शरण पाए लोगों की किस्मत अधर में लटक सकती है। हो सकता है कि यूरोपियन यूनियन की रिफ्यूजी पॉलिसी में प्रभावशाली बदलाव हों। अगर ऐसा हुआ हो तो बाकी दुनिया पर भी इसका असर देखने के लिए मिलेगा। ईयू जलवायु परिवर्तन नीति में भी अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। लगातार बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के बीच चुनाव में जीतने वाली पार्टियों की सोच पृथ्वी की वातावरण में भी अपनी अहम भूमिका निभाएगी।
श्रीलंका के चुनाव पर भारत-चीन दोनों की नजर
भारत में तो चुनाव इसी महीने से शुरू हो जाएंगे। इसके नतीजे भी 4 जून तक आएंगे। दूसरी ओर भारत का एक मुख्य पड़ोसी और द्वीपीय राष्ट्र श्रीलंका भी चुनाव करा रहा है। इस देश की 2022 में खस्ता हालत रही है। लंका को गंभीर वित्तीय संकट में भारत ने भी मोटा कर्ज दिया है और चीन ने भी। भारत-चीन आपसी प्रतिद्वंदी हैं और दोनों की नजरें श्रीलंका में होने वाले चुनाव पर होंगी।
इस तरह से एक देश का दूसरे देश में होने वाले चुनाव पर काफी असर पड़ता है। हर कोई चाहता है कि दूसरे देश में नई सरकार के साथ उसकी सोच का मिलाप हो। इसलिए कई बार चुनावों में विदेशी हस्तक्षेप के आरोप भी लगते रहते हैं। हालांकि कोई देश दूसरे के इलेक्शन में प्रत्यक्ष तौर पर टांग नहीं अड़ाता है। लेकिन फिर भी विदेश नीति को साधने के लिए सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ करने जैसी चीजों को अपना सकता है। इसको इंफॉर्मेशन मैनिपुलेशन भी कहते हैं।
चुनावी सरगर्मी दिखनी शुरू
यानी सूचनाओं को ऐसे तोड़ा-मरोड़ा जाता है कि समान विचारधारा रखने वाली पार्टी को फायदा हो सके। विपरीत विचारधारा वाली पार्टी की इमेज खराब की जा सके। आप इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि भारत में चुनावी महीना आते ही अमेरिका, जर्मनी जैसे मजबूत और प्रभावशाली देश भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश करते हुए दिखाई दिए।
अमेरिका ने तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर चिंता जताई। कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज होने पर चिंता जताई। कुछ ऐसी ही बातें जर्मनी ने भी की। हालांकि भारत के सख्त रुख के बाद जर्मनी ने यू-टर्न लिया है लेकिन अमेरिका अपनी चिंताओं पर कायम है। अंकल सैम को लगता है कि केजरीवाल के साथ मानों मोदी सरकार ने अनुचित किया है। तो वहीं कांग्रेस के भी खाते फ्रीज नहीं करने चाहिए थे।
बदलेगी दुनिया की तस्वीर
तो इस तरह से एक देश चुनाव के वक्त किसी दूसरे देश की खास पार्टी को प्रोत्साहित भी कर सकता है और उनको ट्रोल भी। इससे पहले ऐसा नहीं हुआ है कि एक ही साल में दुनिया के इतने सारे देशों में चुनाव होने जा रहे हों। केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के नीति-नियंताओं की नियति तय होनी है। अततः इससे दुनिया की नियति भी काफी हद तक तय होगी।