सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एसबीआई मामले में सुनवाई हुई। इस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने SBI से सवाल किया कि उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड के नंबर्स चुनाव आयोग को क्यों नहीं दिए? तीन दिनों में एसबीआई को इस सवाल का जवाब देना होगा। इस मामले पर बोलते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नंबर्स की जानकारी अनिवार्य है। इससे दानदाता और राजनीतिक पार्टियों के बीच का लिंक पता चलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 मार्च तक SBI से इस मामले पर जवाब मांगा है। बता दें, चुनावी बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 11 मार्च को SBI को निर्देश दिया था कि 12 मार्च तक इलेक्टोरल बॉन्ड से संबधित जानकारी का विवरण चुनाव आयोग को सौंप दें। अदालत में ECI द्वारा याचिकाएं दायर की गई थीं। इस पर कोर्ट ने इन याचिकाओं की कॉपियों को ECI के कार्यालय में रखने को कहा।
चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर जो डाटा शेयर किया है वह डाटा 12 अप्रैल 2019 के बाद से एक हजार से लेकर 1 करोड़ रूपये की कीमत तक चुनावी बॉन्ड की खरीद की जानकारी दी गई है। इसमें उन कंपनियों और व्यक्तियों का ब्यौरा दिया है जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदें हैं और उन पार्टियों की भी जानकारी दी गई है। जिनको ये चुनावी चंदा दिया गया है। इलेक्शन कमीशन के द्वारा दिए गए आंकड़ो से पता चला है कि चुनावी बॉन्ड से के माध्यम से भाजपा, कांग्रेस, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी और अन्य राजनैतिक पार्टिया चुनावी चंदा हासिल किया है। राजनैतिक पार्टियों को चंदा देने वाली कंपनियों कंपनियों की लिस्ट में ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनीयरिंग, पीरामल एंटरप्राइजेज, टोरेंट पावर व कई अन्य बड़ी कंपनिया शामिल है।
साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड की घोषणा केंद्र सरकार ने की थी। इसके बाद कानूनी रूप से 29 जनवरी 2018 लागू किया था। केंद्र सरकार का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत साफ सुथरा धन लाने के लिए इस स्कीम को लाया गया था। इस बॉन्ड के तहत कोई भी अपनी पसंदीदा पार्टी को चंदा दे सकती थी।