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SC ने भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ नियम हटाने संबंधी अधिसूचना पर लगाई रोक

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगा दी है। आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक से संबंधित औषधि और प्रसाधन सामग्री 1945 के नियम 170 को हटा दिया गया था।
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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगा दी है। आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक से संबंधित औषधि और प्रसाधन सामग्री 1945 के नियम 170 को हटा दिया गया था। इस मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस हिमा कोहली और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि 1945 का नियम 170 अगले आदेश तक क़ानून की किताब में बना रहेगा।

औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम 170 का उद्देश्य आयुर्वेदिक सिद्ध और यूनानी दवाओं के भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना था। आयुष मंत्रालय ने 1 जुलाई को एक अधिसूचना द्वारा 1945 के नियम 170 को हटा दिया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह अधिसूचना इस अदालत के पहले के आदेश के विपरीत है और 29 अगस्त 2023 के पत्र को वापस लेने के बजाय 1 जुलाई 2024 की अधिसूचना जारी की गई है। इसमें 1945 के नियम 170 को हटा दिया गया है।

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मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने चूक को स्पष्ट करने के लिए समय मांगा है। अदालत ने मंत्रालय को स्पष्टीकरण के लिए समय दिया, लेकिन साथ ही कहा कि तब तक नियम 170 को छोड़ने वाली 1 जुलाई 2024 की अधिसूचना पर रोक है या दूसरे शब्दों में कहें तो यह क़ानून की किताबों में बनी हुई है।

शीर्ष अदालत ने पहले भारत संघ से 29 अगस्त 2023 को अवर सचिव, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लाइसेंसिंग प्राधिकरणों और आयुष के औषधि नियंत्रकों को संबोधित पत्र जारी करने के लिए कहा था। इसमें उन्हें सूचित किया गया था कि आयुर्वेदिक सिद्ध और यूनानी औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड ने 25 मई 2023 को आयोजित अपनी बैठक में औषधि और प्रसाधन सामग्री नियम, 1945 के नियम 170 और इसके संबंधित प्रावधानों को छोड़ने वाली अंतिम अधिसूचना के साथ आगे बढ़ने की सिफारिश की है।

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शीर्ष अदालत कुछ कंपनियों द्वारा विज्ञापनों में किए गए भ्रामक स्वास्थ्य दावों और ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स, 1945 से नियम 170 को हटाने के केंद्र के फैसले के मुद्दे पर विचार कर रही थी। यह मुद्दा अदालत के संज्ञान में तब आया जब वह भ्रामक विज्ञापनों के लिए पतंजलि के खिलाफ भारतीय चिकित्सा संघों द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी।


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