Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के नतीजों ने पहले से बीजेपी और पीएम मोदी को गठबंधन जहाज़ खींचने को मजबूर कर दिया है। ऐसे में इसी साल के अंत में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव ने भी मोदी की टेंशन बढ़ा दी है। यानि अगर महाराष्ट्र का किला फतह करना है तो कुछ ही महीने में बीजेपी को कमर कस लेनी होगी, लेकिन मराहाष्ट्र और मोदी के बीच में एक शख्स चट्टान की तरह खड़ा है जो किसी कीमत पर वहां कमल खिलते नहीं देख सकता। वो अकेले ही मोदी की पूरी मशीनरी को हराने का माद्दा रखता है।
शरद पवार ये नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। खासतौर पर महाराष्ट्र की राजनीति में तो आज की तारीख में ये सबसे बड़ा और ताकतवर नाम है, जो अकेले ही मोदी को चुनौती दे रहा है। 83 साल के शरद पवार अकेले ऐसे नेता हैं, जिन्होने इस चुनाव में बीजेपी, अजित पवार गुट वाली एनसीपी और शिंदे गुट वाली शिवसेना को धराशायी कर दिया है। इस चुनाव में उन्होने ऐसी सियासी बिसात बिछाई, जिसमें मोदी-शाह जैसे राजनीति के माहिर लोग भी गश खाकर गिर गए। ना तो मोदी की गारंटी काम आई और ना ही परिवारों को तोड़ने का कोई फायदा मिला। 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन को कुल 13 सीटें मिली हैं, जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया ब्लॉक और निर्दलीय उम्मीदवारों को 31 सीटें मिली हैं। इसमें कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार गुट और शिवसेना उद्धव गुट शामिल हैं।
2019 का आम चुनाव याद करें तो उस वक्त एनडीए का शानदार प्रदर्शन रहा था। उस चुनाव में अकेले बीजेपी ने 23 सीटें जीतीं थीं। बीजेपी की ओर से दो क्षेत्रीय दल एनसीपी और शिवसेना के टुकड़े करने के बाद अजित पवार गुट के पास तीन सांसद और शिव सेना के शिंदे गुट के पास छह सांसद थे। कांग्रेस को तब सिर्फ एक सीट मिली थी। इस हिसाब से देखा जाए तो अबकी बार 400 पार का नारा देने वाली बेजीपी का प्रदर्शन काफी खराब रहा। इससे भी बुरी बात ये है कि मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए ने महाराष्ट्र विधानसभा अभियान की शुरुआत ही बाधा के साथ की है क्योंकि महाराष्ट्र के 288 विधानसभा क्षेत्रों में इंडिया ब्लॉक 158 क्षेत्रों पर आगे है, जबकि एनडीए 127 क्षेत्रों के साथ दूसरे नंबर पर है।
बात करें महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार और पीएम मोदी के बीच संबंधों की तो दोनों ही नेताओं के 2014 से दोस्ताना संबंध थे। मोदी ने बारामती में पवार के वर्चस्व का सम्मान किया, जबकि 1998 से अब तक हुए सात लोकसभा चुनावों में से पांच बार शरद पवार बीजेपी को हरा चुके हैं। बारामती से हमेशा जीतने वाले पवार से मोदी ने कभी कोई शिकायत नहीं की, लेकिन 2024 में सब कुछ बदल गया है। आज अगर मोदी महाराष्ट्र में किसी शख्स को हराना चाहते थे, तो वो सिर्फ पवार ही थे। दोनों की दोस्ती में दरार तब पड़ी जब पवार ने उद्धव ठाकरे को एनडीए से बाहर आने और 2019 में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के लिए मना लिया था।
एनडीए से बाहर निकलने के लिए उद्धव के पास ये बहाना था कि बीजेपी, शिवसेना के साथ सीएम पद साझा करने को तैयार नहीं है। काफी ड्रामे के बाद वह मुख्यमंत्री बने, लेकिन फिर बीजेपी ने शिवसेना और एनसीपी के टुकड़े करके महाराष्ट्र में भाजपा और दो क्षेत्रीय गुटों की सरकार बनाकर पवार पर पलटवार किया। इसके बाद से पवार लगातार मोदी के निशाने पर बने रहे। सहकारी समितियों पर उनके कंट्रोल पर सवाल उठाए गए। यहां तक की महाराष्ट्र के पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने भी उन्हें किसी मोर्चे पर नुकसान पहुंचाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इसके जवाब में पवार ने भी इस तरह का माहौल तैयार कर दिया कि फडणवीस दोबारा कभी सीएम ही ना बन पाएं।
पवार को मात देने के लिए बीजेपी ने महाराष्ट्र की बारामती सीट पर भी फुल तैयारी कर ली थी, लेकिन चाणक्य पवार ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि एनडीए के घटक दल उसमें फंस कर रह गए। बीजेपी ने बारामती का किला फतह करने के लिए पवार की बेटी सुप्रिया सुले के सामने अजित पवार की पत्नी को उतारा और अपना पूरा जोर लगा दिया, लेकिन शरद पवार के आगे किसी की ना चली और सुप्रिया सुले ने अपने भाई अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को 1.58 लाख से ज्यादा वोटों से हराकर जीत हासिल की। पूरे अभियान के दौरान शरद पवार खामोश ही रहे और एनडीए से निपटने की तैयारी करते रहे। चुनावी नतीजों की गिनती हुई तो सच सामने आया।
राजनीतिक चालों के चक्रव्यूह में पवार ने अकेले ही महाराष्ट्र की पांच सीटों पर भाजपा की हार सुनिश्चित कर दी थी। अहमदनगर में अजित के पक्के समर्थक नीलेश ज्ञानदेव लंके अचानक उनका साथ छोड़कर शरद पवार के साथ आ गए। उन्होने मजबूत भाजपा उम्मीदवार- सुजय विखे पाटिल को हराया. वे सात बार के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री बालासाहेब विखे पाटिल के पोते हैं। वर्धा में पवार ने जमीनी स्तर पर संपर्क रखने वाले तीन बार के कांग्रेस विधायक अमर शरदराव काले को टिकट दिया। उन्होंने दो बार के भाजपा सांसद रामदास तड़स को हराकर शरद पवार को रणनीतिक जीत दिलाई थी, जहां एनसीपी की मौदूजगी ना के बराबर थी।
भिवंडी में शरद पवार ने बाल्या मामा सुरेश गोपीनाथ म्हात्रे को अपना उम्मीदवार बनाया और केंद्रीय राज्य मंत्री और बीजेपी नेता कपिल पाटिल पर निशाना साधते रहे। शरद पवार की एनसीपी में आने से पहले सुरेश गोपीनाथ म्हात्रे कई पार्टियों से जुड़े रहे थे। उन्होने भी बीजेपी उम्मीदवार को बुरी तरह हराया। माढ़ा में शरद पवार ने बीजेपी को सबसे बड़ी धूल चटाई। उन्होंने सोलापुर के मोहिते-पाटिल परिवार की अपनी पार्टी में वापसी कराई जो भाजपा में शामिल हो चुके थे। एनसीपी ने धैर्यशील राजसिंह को माढ़ा से अपना उम्मीदवार किया जिसने भाजपा उम्मीदवार को 1.2 लाख से ज्यादा वोटों से हराया।
जैसे-जैसे चुनावी अभियान आगे बढ़ता गया अजित अपने चाचा के जवाबी हमलों को संभालने में असमर्थ होते गए, लेकिन मोदी ने मोर्चा संभाले रखा और पवार को भटकती आत्मा तक कह दिया। पवार तब भी चुप रहे और नतीजों के बाद खुद की तारीफ करते हुए बोले कि वो कोई भटकती आत्मा नहीं बल्कि एक स्वस्थ आत्मा हैं यानि healthy soul हैं।