श्रेष्ठ भारत (Shresth Bharat) | Hindi News

Our sites:

|

Follow us on

|

नेहरू की वो गलती जिसे भुगत रहा भारत, जानिए पूरी कहानी

Jawaharlal Nehru | INDIA | PAKISTAN | CHINA | Gwadar PORT | SHRESHTH BHARAT

क्या जवाहर लाल नेहरू ने ऐसी कई गलतियां की हैं जिसका परिणाम भारत आज तक भुगत रहा है, तो इसका जवाब है हां! अब आप सोच रहे होंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं। दरअसल आपने कई बार सुना होगा कि ग्वादर पोर्ट को पाकिस्तान ने चीन को बेच दिया है। अगर भारत चाहता तो ये पोर्ट उसके पास होता। पर क्या वाकई में ऐसा है? कि अगर भारत चाहता तो आज ग्वादर पोर्ट उसके पास होता पाकिस्तान के पास नहीं? तो इसका जवाब भी हां है क्योंकि ऐसा सिर्फ जवाहर लाल नेहरू की वजह से नहीं हो सका।

कहा जाता है कि ग्वादर पोर्ट इस वक्त भारत का होता। लेकिन, जवाहर लाल नेहरू ने इसे लेने से मना कर दिया था। लेकिन, ऐसा क्यों हुआ और इसके पीछे क्या वजह थी। आज हम आपको बताने वाले हैं। दरअसल, 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तब ग्वादर पोर्ट का इलाका ओमान का हिस्सा हुआ करता था। पाकिस्तान बनने के बाद इस इलाके को ओमान के सुल्तान बेचना चाहते थे। दूसरी बात यह भी थी कि यहां के स्थानीय लोगों ने पाकिस्तान में शामिल होने के लिए प्रदर्शन तेज कर दिया था। ओमान के सुल्तान को इन प्रदर्शनों की चिंता थी।

भारत और ओमान के संबंध अच्छे हुआ करते थे। कहा जाता है कि ओमान के सुल्तान चाहते थे। कि इस इलाके को भारत खरीद ले। लेकिन, भारत के लिए मुश्किल ये थी कि वो देश की सीमा से करीब 700 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता था और बीच में पाकिस्तान था। लेकिन, फिर भी भारत इसे हासिल कर सकता था। लेकिन 1950 के दशक में ओमान से मिले ऑफर को तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू सरकार ने अस्वीकार कर दिया। यानी इसे लेने से मना कर दिया।  इसके बाद पाकिस्तान ने 1958 में इसे तीन मिलियन पाउंड में खरीद लिया।

नेहरू की वजह से पाक का हुआ

कहा जाता है कि 1857 में भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम को दबा देने के बाद अंग्रेजों ने ओमान की राजशाही से ग्वादर इलाके के इस्तेमाल की इजाजत मांगी थी। ये इजाजत राजशाही से उन्हें आराम से मिल गई। इस इलाके की रणनीतिक पोजीशन का ध्यान रखते हुए अंग्रेजों ने यहां पर छोटा पोर्ट विकसित किया था। जहां छोटे जहाज और स्टीमर चला करते थे और इस वजह से इस जगह की काफी अहमीयत हो गई। 

माना जाता है कि भारत ने इस इलाके में दिलचस्पी न दिखाकर गलती की थी। अगर भारत ने तब इस इलाके की खरीद में दिलचस्पी दिखाई होती तो न सिर्फ पश्चिमी एशिया की गतिविधियों पर बेहतर निगाह रखी जा सकती थी बल्कि रणनीतिक तौर पर भी भारत बेहतर जगह खड़ा होता। पाकिस्तान पर भी निगाह रखने के लिए ये इलाका बेहतरीन साबित होता। खैर ये हो तो नहीं सका लेकिन अब आपको ग्वादर का इतिहास भी बताते हैं 

ग्वादर जिस इलाके में स्थित है उसे मकरान कहा जाता है इतिहास में इस इलाके का जिक्र है। ग्वादर की आबादी कम रही है। लेकिन, वहां हजारों सालों से लोग रहते आ रहे थे। 325 ईसा पूर्व में जब सिकंदर भारत से वापस यूनान जा रहा था। तब रास्ते में वह ग्वादर पहुंचा। सिकंदर ने सेल्युकस को यहां का राजा बना दिया। 303 ईसा पूर्व तक यह इलाका सेल्युकस के कब्जे में रहा है। 303 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त मौर्य ने हमला कर इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया। 100 साल तक मौर्य वंश के पास रहने के बाद 202 ईसा पूर्व में ग्वादर पर ईरानी शासकों का कब्जा हो गया। 711 में मोहम्मद बिन कासिम ने हमला कर इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया। इसके बाद यहां बलोच कबीले के लोगों का शासन चलने लगा। 

16वीं सदी में अकबर ने जीता था ग्वादर ने

फिर 15वीं सदी में पुर्तगालियों ने वास्कोडिगामा के नेतृत्व में यहां हमला किया। मीर इस्माइल बलोच की सेना से पुर्तगाली पार नहीं पा सके। लेकिन पुर्तगालियों ने ग्वादर में आग लगा दी। 16वीं सदी में अकबर ने ग्वादर को जीत लिया। 18वीं सदी तक यहां मुगल राजाओं का राज चलता रहा। यहां कलात वंश के लोग मुगलों के नीचे शासन करने लगे।

1783 में ओमान की गद्दी को लेकर अल सैद राजवंश के उत्तराधिकारियों में विवाद हो गया। इस विवाद के चलते सुल्तान बिन अहमद को मस्कट छोड़कर भागना पड़ा। कलात वंश के मीर नूरी नसीर खान बलोच ने उन्हें ग्वादर का इलाका दे दिया। अहमद इस इलाके के राजा बन गए। ग्वादर की जनसंख्या तब बेहद कम थी। अहमद ने ग्वादर में एक किला भी बनाया। कलात राजा ने शर्त रखी थी कि जब अहमद को ओमान की गद्दी वापस मिल जाएगी ग्वादर फिर से कलात वंश के पास आ जाएगा। 1797 में अहमद को ओमान की गद्दी मिल गई. लेकिन अहमद ने ग्वादर को वापस नहीं किया। इससे दोनों के बीच विवाद हो गया।

अंग्रेजों ने ग्वादर में एक छोटा बंदरगाह बनाया

भारत पर तब ब्रिटेन का कब्जा हो गया था। इस विवाद ने ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों को हस्तक्षेप करने का मौका दे दिया। उन्होंने ओमान के सुल्तान से इस इलाके का इस्तेमाल करने की इजाजत मांगी। सुल्तान ने इजाजत दे दी। अंग्रेजी हुकूमत ने ग्वादर में 1863 में ब्रिटिश सहायक राजनीतिक एजेंट का मुख्यालय बनाया। अंग्रेजों ने ग्वादर में एक छोटा बंदरगाह बनाना शुरू किया। जहां स्टीमर और छोटे जहाज चलने लगे। अंग्रेजों ने यहां पोस्ट और टेलीग्राफ का दफ्तर भी बनाया। हालांकि ग्वादर का अधिकार ओमान के पास ही रहा।

जिसके बाद वक्त आया 1947 का जब 1947 में अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया। भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश हो गए। मकरान पाकिस्तान में शामिल हो गया और उसे जिला बना दिया गया। ग्वादर का स्वामित्व अभी भी ओमान के ही पास था। हालांकि ग्वादर के लोगों ने पाकिस्तान में मिलने के लिए आंदोलन करना शुरू कर दिया। 1954 में पाकिस्तान ने ग्वादर में बंदरगाह बनाने के लिए अमेरिका के साथ बात शुरू की। अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे ने ग्वादर का भी सर्वे किया। इस सर्वे से पता चला कि ग्वादर को डीप सी पोर्ट यानी पानी के बड़े जहाजों के अनुकूल बंदरगाह बनाने की सही परिस्थितियां हैं।

लेकिन भारत और ओमान के संबंध अच्छे थे। इसलिए पाकिस्तान को लगता था कि ओमान ग्वादर को भारत को सौंप सकता है। ओमान के सुल्तान ने ग्वादर के इलाके को भारत को सौंपने या बेचने की इच्छा जताई थी। लेकिन, भारत सरकार का मानना था कि भारत से लगभग 700 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक जगह को पाकिस्तान से बचाए रखना मुश्किल काम होगा। इसलिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री फिरोज शाह नून ओमान के दौरे पर गए और ओमान के सुल्तान के साथ करीब तीन मिलियन डॉलर की रकम में ग्वादर का सौदा कर लिया। 8 दिसंबर 1958 को ग्वादर पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। उसे मकरान जिले में तहसील का दर्जा मिला।

पाकिस्तान ने 40 साल के लिए ग्वादर पोर्ट को चीन को किराए पर दे दिया

खैर ग्वादर बंदरगाह चीन और पाकिस्तान के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का सबसे अहम हिस्सा है। लेकिन बलूचिस्तान के लोग इसे अपने संसाधनों पर कब्जे के रूप में देखते हैं. यही वजह है कि लंबे समय इस इलाके में निर्माण कार्यों के शोर के बजाय खौफ और दहशत का सन्नाटा पसरा हुआ है। फिलहाल चीन ने CPEC की शुरुआत में कहा था कि वो इस प्रोजेक्ट में 46 अरब डॉलर निवेश करेगा लेकिन 2017 के आते-आते परियोजना की कीमत 62 अरब डॉलर हो गई  भारत शुरुआत से ही CPEC का विरोध करता आया है क्योंकि ये प्रोजेक्ट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है. भारत इस क्षेत्र में किसी भी तरह के विदेशी निवेश को अस्वीकार्य बताता है।

ग्वादर पोर्ट चीन के लिए क्यों जरूरी ?

खैर सवाल ये है कि जवाहरलाल नेहरू ने ओमान का गिफ्ट स्वीकार कर लिया था, तो क्या ग्वादर ने भारत के रणनीतिक लिहाज से काफी अहम होता तो इसका जवाब है हां क्योकि? ‘ग्वादर का भगौलिक और जमीन स्थित रणनीतिक रूप से अहम है यह एक हथौड़े के समान एक प्रांत पर टिका हुआ है। जहां से भारत की तरफ से व्यापारिक पैठ बनाई जा सकती थी जिसके लिए ग्वादर ज्यादा उपयोगी होता। लेकिन कहते हैं ना अगर गलती करों तो उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है और आज यही हो रहा है यानी नेहरू की गलती का खामियाजा भारत इस वक्त भुगत रहा है जो एक बड़ी सच्चाई है।


संबंधित खबरें

वीडियो

Latest Hindi NEWS

PM Narendra Modi
'वंशवाद की राजनीति…', PM मोदी ने श्रीनगर में तीनों परिवारों पर बोला तीखा हमला
ind vs ban
अश्विन के शतक से शुरूआती झटकों से उबरा भारत, जडेजा ने लगाया अर्धशतक
Mathura Train Accident
मथुरा में पटरी से उतरे मालगाड़ी के 25 डिब्बे; कई ट्रेनें निरस्त
Adani Foundation
आंध्र प्रदेश में बाढ़ से बुरे हालात, अडानी फाउंडेशन ने 25 करोड़ रुपये का दिया योगदान
Gorakpur-Lucknow News
रेलवे बोर्ड ने गोरखपुर और लखनऊ के बीच चौथी लाइन को दी मंजूरी
Shoes Vastu Tips
घर की इस दिशा में भूलकर भी न उतारें जूते-चप्पल, वरना हो जाएंगे कंगाल !