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दिल्ली पुलिस ने यौन उत्पीड़न मामले में बृजभूषण सिंह के खिलाफ लिखित दलीलें दायर कीं


दिल्ली पुलिस ने बुधवार को भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में आरोपों पर अपनी लिखित दलीलें दाखिल कीं।

यह मामला आरोप तय करने के चरण में है। यह मामला छह महिला पहलवानों द्वारा बृजभूषण सिंह के खिलाफ लगाये गये यौन उत्पीड़न के आरोप से जुड़ा है।
अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) ने आरोप तय करने पर स्पष्टीकरण के लिए मामले को 20 दिसंबर 2023 को सूचीबद्ध किया।

अदालत पूर्व डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न मामले में आरोपों पर दलीलें सुन रही है। अतिरिक्त लोक अभियोजक अतुल श्रीवास्तव ने आरोपी के बचाव पक्ष के वकील की दलीलों के जवाब में लिखित दलीलें दाखिल कीं।

दिल्ली पुलिस ने प्रस्तुत किया है कि गवाहों/पीड़ितों के बयानों के अनुसार उनके साथ विदेश सहित भारत के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न स्थानों पर छेड़छाड़ की गई जिसमें पीएस कनॉट प्लेस के अधिकार क्षेत्र में आने वाला स्थान भी शामिल है।

28 नवंबर को शिकायतकर्ता महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न मामले में सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आरोप तय करने के लिए लिखित दलीलें दायर कीं। इससे पहले आरोपी- सिंह ने पिछली तारीख पर अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर दी थीं। 30 अक्टूबर को अदालत ने आरोपों पर दलीलें दोहराने के लिए उपस्थित वकील की खिंचाई की थी।

एसीएमएम ने सभी पक्षों के वकीलों से लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा था। हल्के-फुल्के पहलू पर न्यायाधीश ने एक पुरानी अंग्रेज़ी कहावत का उल्लेख किया था । एसीएमएम जसपाल ने आदेश में कहा था कि कुछ देर तक दलीलें सुनने के बाद यह अदालत पक्षकारों के तीन वकीलों को दलीलों का लिखित संकलन दाखिल करने के लिए प्रोत्साहित करती है। ताकि बहस को व्यवस्थित ढंग से समाप्त किया जा सके।

अदालत ने कहा कि बचाव पक्ष के वकील राजीव मोहन ने तर्क दिया कि इस अदालत के पास भारत के बाहर कथित तौर पर किए गए किसी भी अपराध की सुनवाई करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है क्योंकि सीआरपीसी की धारा 188 के तहत मंजूरी प्राप्त नहीं की गई है। अदालत ने कहा कि यह भी तर्क दिया गया है कि जब अपराध आंशिक रूप से भारत में और आंशिक रूप से भारत के बाहर किया जाता है तो किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है।

अदालत ने बचाव पक्ष के वकील की दलीलों पर भी गौर किया कि अभियोजन पक्ष के अनुसार कथित अपराध जो टोक्यो, मंगोलिया, बुल्गारिया, जकार्ता, कजाकिस्तान, तुर्की आदि में हुए हैं उनकी सुनवाई इस अदालत में नहीं की जा सकती। अदालत ने अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) की दलीलों पर भी गौर किया कि यौन उत्पीड़न का कृत्य एक निरंतर अपराध है क्योंकि यह किसी विशेष समय पर नहीं रुकता है।

अदालत ने कहा कि एपीपी के अनुसार आरोपी को जब भी मौका मिला उसने पीड़िता के साथ छेड़छाड़ की और इस तरह के उत्पीड़न को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता। सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि शिकायतकर्ताओं में से एक ने आरोप लगाया कि आरोपी ने 2022 में यौन संबंध बनाए। उन्होंने आगे कहा कि 2022 की घटना बुल्गारिया और डब्ल्यूएफआई कार्यालय की है। डब्ल्यूएफआई कार्यालय में हुई घटना का निरीक्षण समिति के समक्ष उल्लेख नहीं किया गया। उन्होंने 1993 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि यहां किए गए अपराधों का मुकदमा भारत में चलाया जा सकता है। 


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