बृजेश सिंह जिस पर यूपी का सबसे बड़ा नरसंहार करने का आरोप लगा था, आज बरी हो गया। वो बृजेश सिंह जिसपर 36 मर्डर और अटेंप्ट टू मर्डर के केस, 12 दंगा भड़काने के केस, 51 लूट डकैती मारपीट फ्रॉड के केस और 11 खतरनाक हथियारों से दंगा भड़काने जैसे बड़े केस हैं, वो आज बरी हो गया है।
इंसाफ की आस में 37 साल तक कोर्ट के चक्कर लगाने वाली हीरावती का आज कानून और देश की न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ गया है। 37 साल तक अपने पिता के हत्यारे को फांसी तक पहुंचाने का दिनेश यादव का टूट चुका है। कारण वो मुजरिम आज जेल से बाइज्जत बरी हो गया है।
साल 1986 में यूपी में हुए सिकरौरा हत्याकांड हुआ जिसमें आज तक का सबसे बड़े और सबसे खतरनाक डॉन बृजेश सिंह शामिल था। इंसाफ की आस में 37 साल तक कोर्ट के चक्कर लगाने वाली हीरावती का आज कानून और देश की न्याय व्यवस्था से भरोसा उठ गया है। 37 साल तक अपने पिता के हत्यारे को फांसी तक पहुंचाने का दिनेश यादव का ख्वाब भी अब टूट चुका है। क्योंकि वो मुजरिम जो इन दोनों मां बेटे का असली गुनहगार है वो आज जेल से बाइज्जत बरी हो गया है।
क्या हुआ था उस रात
यूपी के चंदौली ज़िंले का सिकरौरा गांव में 10 अप्रैल 1986 की रात आखिर क्या हुआ था। 37 साल पहले सिकरौरा गांव में रात के अंधेरे में 5-7 बदमाश गांव के प्रधान रामचंद्र यादव के घर में घुसे और घुसते ही चिल्लाते हैं – जो मिले उसे काट डालो, जो मिले उसे मार डालो। करते भी वही हैं। जो हाथ लगता है उसे काट दिया हैं या गोली मार दी. उस रात सिकरौरा गांव के उस घर में 7 लोगों का नरसंहार हुआ था। जिनमें तीन बड़े औऱ 4 बच्चे थे। आगे चलकर माफिया और फिर MLC बने बृजेश सिंह इस केस में आरोपी थे। हत्याकांड को अंजाम देने के बाद फरार होते समय बृजेश सिंह को गोली लगी थी। मामले में चश्मदीद गवाह भी था। मगर उसे रातोंरात गायब करवा दिया गया।
सिकरौरा हत्याकांड से लेकर 20 नवंबर 2023, रिहाई वाले दिन तक, बृजेश सिंह के दामन पर कई दाग लगे तो कई उपलब्धियां भी जुड़ती गईं। करीब 39 साल लंबी क्रिमिनल हिस्ट्री में बृजेश सिंह पर 30 से ज्यादा संगीन केस दर्ज हुए। मकोका, टाडा और गैंगस्टर एक्ट के तहत हत्या, हत्या की कोशिश, हत्या की साजिश रचने से लेकर, किडनैपिंग, दंगा भड़काने, वसूली करने और धोखाधड़ी से जमीन हड़पने तक में उनका नाम आया। फिर भी साल 2016 में वाराणसी सीट से वो MLC चुने गए. सबसे पहले आपको बताते हैं कि कैसे एक किसान का बेटा इतना बड़ा क्रिमिनल और इतना बड़ा नेता बन गया।
बृजेश का इतिहास
बृजेश सिंह के पिता रविंद्र सिंह बनारस के धौरहरा गांव के बड़े किसान थे। यूपी की राजनीति में उनका भी दखल था।
बृजेश सिंह ने 12वीं पास करके ग्रैजुएशन में एडमिशन लिया ही था कि 27 अगस्त 1984 को गांव के हरिहर सिंह ने बृजेश के पिता की हत्या कर दी।
27 मई 1985 को बृजेश ने हरिहर की हत्या करके पिता की मौत का बदला ले लिया। पुलिस ने केस दर्ज किया लेकिन बृजेश पुलिस के हाथ नहीं लगा।
1986 में सिकरौरा हत्याकांड के बाद फरार होते समय बृजेश को गोली लगी औऱ वो गिरफ्तार हो गया. मगर कुछ ही महीने में ज़मानत मिल गई।
जेल में रहने के दौरान बृजेश की मुलाकात माफिया त्रिभुवन से हुई। उस वक्त मुख्तार अंसारी का नाम भी माफिया के तौर पर लिया जाने लगा था।
साल 1988 में सरकारी ठेकों, कोयले के कारोबार औऱ माइनिंग पर कब्जा जमाने की होड़ में बृजेश औऱ अंसारी की दुश्मनी बढ़ती चली गई।
यूपी पुलिस की सख्ती की वजह से बृजेश ने पूर्वांचल छोड़ कर मुंबई, गुजरात, बिहार और ओडिशा तक अपना नेटवर्क फैला लिया।
1990 में बृजेश का नाम झारखंड के सबसे बड़े कोयला व्यापारी सूर्यदेव सिंह के 6 विरोधियों की हत्या में आया.
90 के दशक में ही बृजेश सिंह का नाम अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम की गैंग से जुड़ा… 1992 में जेजे अस्पताल में अरुण गवली के शूटर शैलेश के मर्डर में उसका नाम आया।
साल 2001 के जुलाई महीने में मुख्तार अंसारी पर गाज़ीपुर में जानलेवा हमला हुआ था… उस हमले में भी बृजेश सिंह का नाम आया था।
इसी तरह से बृजेश सिंह के गुनाहों की लिस्ट लंबी होती चली गई और एक वक्त पर देश के कई राज्यों में उसके नाम के आगे डॉन शब्द लग गया औऱ ये खौफ का दूसरा नाम बन गया. मगर साल 2008 में पुलिस ने उसे भुवनेशवर से गिरफ्तार कर लिया जिसके बाद उसे सीधा 14 साल बाद यानि 2022 में रिहाई मिली।
बृजेश सिंह का राजनीतिक सफर
साल 2012 में बृजेश ने चंदौली के सैयदराजा विधानसभी सीट से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा, मगर चुनाव हार गए.
साल 2016 में वाराणसी से निर्दलीय MLC का नॉमिनेशन किया औऱ इलेक्शन जीत गए।
साल 2022 में बृजेश की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह ने वाराणसी से MLC का इलेक्शन जीता।
पीड़ित परिवार पिछले 37 साल से खौफ के साय में जी रहा है। गांव में घुसते ही लगभग 100 मीटर अंदर बड़ा सा घर है। उस घर के बाहर पिछले 37 सालों से पुलिसवाले तैनात हैं। पिछले 37 सालों से ये परिवार पुलिस की सिक्योरिटी जी रहा है। रामचंद्र यादव की पत्नी हीरावती यादव अब बूढ़ी हो चुकी हैं। हत्याकांड में एक बेटा बच गया था जिसने जैसे तैसे अपनी जान बचाई थी। हीरावती बताती हैं कि जब मैं कोर्ट जाती थी, तो लोग कहते थे कि न्याय की देवी को प्रणाम कर लिया करो। उन्होने बताया कि एक दिन बृजेश सिंह कोर्ट में खड़ा था। मैंने जज से कहा था, इससे पूछ लीजिए कि इसने मेरे परिवार को मारा है कि नहीं। अगर ये बोल दे तो मैं दोबारा कोर्ट नहीं आऊंगी। मगर बृजेश के मुंह से बोल नहीं फूटा। वो नजरें नहीं मिला पा रहा था। हीरावती बताती हैं, कि पहले मैं अकेले ही कोर्ट जाती थीं। लेकिन जब दिनेश थोड़ा बड़ा हुआ, तो उसके साथ कचहरी जाने लगीं। मेरे बच्चों को मारने वालों को सजा दिलाने के लिए गुहार लगाती रही, लेकिन कोर्ट में बैठे लोगों को मेरी मजबूरी नहीं दिखी. मेरा भरोसा अब भी खत्म नहीं हुआ है। कभी न कभी समय आएगा, जब बृजेश को सजा मिलेगी। 10 अप्रैल की उस काली रात को याद करते हुए दिनेश यादव ने बताया कि मुझे याद है, उस दिन 10 तारीख थी। तब अप्रैल में भी हल्की सर्दी रहती थी। रात के 11 बज रहे थे। परिवार के सभी लोग सो रहे थे। तभी दो लोग छत से आए और बाकी सामने का गेट खोलकर अंदर आए। कुल 5-7 लोग थे। वो चिल्ला रहे थे कि कोई बचना नहीं चाहिए। पूरे खानदान को काट डालो। सभी के हाथों में कट्टा, बंदूक और गंडासे थे। उन लोगों ने मेरे पिता रामचंद्र यादव और दोनों चाचाओं का गला काटा। फिर उन्हें गोली मारी। फिर मेरे चार भाइयों को काट दिया। इसके बाद सभी भाग गए। मेरी बहन और बुआ की एक बेटी को भी गोली मारी थी, लेकिन वो दोनों बच गए थे।
हत्याकांड का कारण
1960 में जमींदारों ने हमारे पुरखों को करीब 10 डिसमिल जमीन दी थी। उस वक्त लिखा-पढ़ी नहीं होती थी, लेकिन 20 साल तक जिसका कब्जा होता था, जमीन उसी के नाम मान ली जाती थी। हमारे पड़ोस में रहने वाले कन्हैया सिंह को ये बात अखरती थी। उसने जमींदारों के लोगों से मिलकर चुपचाप जमीन की रजिस्ट्री करवा ली। हमारे परिवार को कुछ नहीं बताया था। चकबंदी लागू हुई तो मामला सामने आया, लेकिन हमारे परिवार ने जमीन पर कब्जा नहीं छोड़ा। उसी दौरान गांव में एक दलित दलसिंगार से कन्हैया का झगड़ा हो गया। मेरे पिता रामचंद्र यादव गांव के प्रधान थे, इसलिए उन्होंने दलसिंगार की मदद की। मामला थाने तक गया। कन्हैया और उसके कुछ लोगों को जेल जाना पड़ा। तब से कन्हैया और उसके परिवार को लगा कि ये सब मेरे पिता की वजह से हुआ और उन्होंने बृजेश सिंह को मेरे परिवार को मारने की सुपारी दे दी। बृजेश सिंह के भाई की ससुराल हमारे गांव में है। उसने गांव के पंचम सिंह, वकील सिंह, राकेश सिंह और देवेंद्र सिंह को साथ लिया और मेरे परिवार की हत्या कर दी।
हत्याकांड के बारे में बात करते हुए दिनेश यादव ने बताया कि हत्या के बाद बृजेश सिंह और उसके साथी नहर की तरफ भागे, सभी साइकिल पर थे। गांव से करीब 3 किमी दूर मथेला डाक बंगला है। उसके पास रास्ते में लकड़ी का बैरियर लगा था। जिससे टकराकर सभी गिर पड़े। तब डाक बंगले में एक चौकीदार था, उसने इन लोगों पर गोली चलाई। बाकी लोग तो भाग गए, लेकिन बृजेश को गोली लग गई, इसलिए वो भाग नहीं पाया। सबसे पहले डाक बंगले का चौकीदार तूफानी ही बृजेश के पास गया था। पीछे-पीछे गांव के लोग पहुंचे. बृजेश ने तब कबूल किया था कि वो सिकरौरा में मर्डर करके भागा है। वहां उसका इलाज कराया गया। मौके पर लेकर आए। तब तक बहुत भीड़ इकट्ठा हो गई थी। कई गवाह थे और इस तरह बृजेश की सिकरौरा हत्याकांड में गिरफ्तारी हुई।