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कब मिलेगी सिल्कयारा सुरंग से 41 मजदूरों को रिहाई ?


आज उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में मजदूरों को फंसे 12 दिन बीत चुके हैं। 41 मजदूरों को निकालने के लिए 41 एमब्यूलेंस तैनात खड़ी हैं। पर तकनीकी बाधाओं के चलते अब तक 41 मजदूर अंदर ही फंसे हुए हैं। रोज ऐसा लगता है कि रेस्क्यू ऑपरेशन आज पूरा हो जाएगा और मजदूर बाहर आ जाएंगे पर आशा निराशा में हर बार तब्दील हो जाती है। मजदूरों को बाहर निकालने के लिए तैयार की जा रही वैकल्पिक सुरंग के पूरा होने में सिर्फ 10 से 12 मीटर की दूरी बची है। फिर भी रेस्क्यू ऑपरेशन में 12 से 15 घंटे और लग सकते हैं।

मजदूरों के रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान बुधवार को दोपहर 2 बजे अमेरिकी ऑगर मशीनों को पहली बाधा मिली थी। तब 45 मीटर की ड्रिलिंग हो चुकी थी। इसके बाद ऑगर मशीन को बाहर निकाल लिया गया था ताकि नई चुनौतियों के लिए उसे और व्यवस्थित किया जा सके। बाधाओं की वजह से उसके प्लैटफॉर्म को नुकसान पहुंचा था। बुधवार को 4 बजे के आसपास एनडीआरएफ ने पाइप की स्थिति देखी और पाया कि वहां आयरन रॉड्स के टुकड़े हैं, जो रास्ते में आ रहे हैं। बुधवार को ही 6 से 7 बजे के आसपास एनडीआरएफ कर्मियों की टीम ने बारी-बारी से पाइप के अंदर प्रवेश किया और आयरन रॉड्स को गैस कटर से काटा।

मजदूरों को निकालने के सुरंग बनाने वाली अमेरिकी ऑगर मशीन का प्‍लेटफॉर्म 25 टन वजनी है। ड्रिलिंग के दौरान बार-बार सरिया की वजह से प्‍लेटफॉर्म को नुकसान पहुंच रहा है। इस वजह से भी काम रुक जाता है। 6 मीटर के पाइप को एक-दूसरे से जोड़ने में भी काफी समय लग रहा है। जोड़ने, चालू करने और उन्हें पुश करने की पूरी प्रक्रिया में 4-5 घंटे चाहिए होते हैं।

तीन कोशिशों के बाद भी एनडीआरएफ कर्मी लोहे की छड़ों को नहीं काट पाए। उनके सामने अंदर कई सारी चुनौतियां थीं। जगह कम थी। गैस कटर की वजह से वहां तापमान काफी ज्यादा हो जाता था, जिससे गर्मी लगती थी। इसके अलावा पाइप के भीतर ऑक्सिजन की कमी से भी कर्मी काफी परेशान रहे। गुरुवार की रात डेढ़ बजे दो एक्सपर्ट दिल्ली से बुलाए गए। दो घंटे के लंबे ऑपरेशन के बाद उन्होंने आयरन रॉड्स की बाधा पार कर ली। साथ ही 800 MM की पाइप के नुकसान को भी रिपेयर कर लिया।

गुरुवार सुबह 11 बजे अमेरिकन ऑगर मशीनों ने फिर से ड्रिलिंग शुरू हुई थी। पर उनके सामने एक बाधा आ खड़ी हुई। हालांकि, इनसे निपटते हुए टीम ने पाइप्स को मलबे में 46.8 मीटर तक फिट कर दिया। मजदूरों से सिर्फ 12 से 15 मीटर की दूरी बची है। इसके लिए कितना समय लगेगा, यह कोई भी कह पाने में समर्थ नहीं दिखता।


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