महाराष्ट्र विधानसभा में मंगलवार को मराठा आरक्षण बिल पास किया गया। इस बिल के अनुसार महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को सरकारी नौकरी और शिक्षा में 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। लेकिन अब सवाल उठ रहा है कि क्या ये बिल कोर्ट में टिकेगा या नहीं। क्योंकि पिछले दस साल में ऐसे दो बिल कानूनी समीक्षा में कोर्ट के सामने नहीं टिक पाए। लेकिन इस बिल के बारे में बोलते हुए महाराष्ट्र के सीएम का कहना था कि ये बिल कोर्ट के सामने टिकेगा। सीएम का कहना था कि मराठा समाज सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग है। महाराष्ट्र स्टेट बैकवर्ड कमीशन ने इस बात को सिद्ध भी किया है। हमने ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों से डेटा कलेक्ट किया है।
इस मुद्दे पर बोलते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने कहा कि कोटा निश्चित रूप से कोर्ट में टिकेगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने जो खामियां निकाली थीं, उसे ध्यान में रखकर यह डीटेल सर्वे किया गया है। सीएम ने इस मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि अदालत भी इस मामले पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगा क्योंकि मराठा समुदाय के कई लोग आत्महत्या कर रहे हैं। इस मामले पर ये सरकार की एक अपवाद वाली स्थिति है, इन हालात में सरकार ये उचित फैसला लिया है।
इस बिल का समर्थन विपक्ष भी कर रहा है पर साथ ही इसे एक चुनावी चाल भी बता रहा है। मराठा समुदाय को आरक्षण देने का यह सरकार का पिछले छह साल के भीतर दूसरा प्रयास है तो वहीं इस बिल पर प्रतिक्रिया देते हुए विपक्ष के नेताओं ने कहा कि इस बिल के सफल होने पर उन्हें आशंका है। विपक्ष के नेताओं का कहना है कि यह बिल शिंदे सरकार का चुनाव से पहले चला गया एक दाव है। मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे भी इस बिल से खुश नहीं है, इसलिए इस बिल का विरोध करने के लिए वह भूख हड़ताल पर बैठे है।
ऐसे में यह बात समझ में नहीं आ रही है कि ऐसा कौन सा तर्क है, जिसके कारण शिंदे सरकार इस बिल को लेकर इतनी कॉन्फिडेंट है।
भूख हड़ताल पर बैठे मनोज जरांगे मराठा समुदाय के लिए ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं। बता दें कि महाराष्ट्र के कुल आबादी में 28 प्रतिशत मराठे है। शिंदे सरकार द्वारा पारित इस बिल में कहा गया है कि जिन भी जातियों या समूहों की जनसंख्या ज्यादा है, उनके लिए पहले से ही आरक्षण है। इस तरह उन्हें कुल 52 प्रतिशत का आरक्षण मिल रहा है। ऐसे में मराठा समुदाय को OBC श्रेणी में रखना पूरी तरह से अनुचित होगा। हालांकि, बिल में कहा गया है कि मराठा वर्ग का पिछड़ापन ओबीसी से मायनों में अलग है। यह अपने प्रसार के मामले में ज्यादा व्यापक है।
बिल में प्रस्ताव पेश किया गया है कि आरक्षण लागू हो जाने के बाद दस साल बाद तक इस बिल की समीक्षा की जा सकती है।
प्राप्त आरक्षण
महाराष्ट्र में दिए गए कुल 52 प्रतिशत आरक्षण में अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7 प्रतिशत, ओबीसी को 19 प्रतिशत, विशेष पिछड़ा वर्ग को 2 प्रतिशत बाकी अन्य के लिए हैं।
सीएम शिंदे द्वारा दिए गए तर्क
महाराष्ट्र विधानसभा में विधेयक पेश करने के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि भारत के 22 राज्य 50 प्रतिशत आरक्षण का आंकड़ा पार कर चुके हैं। उदाहरण के तौर पर कई राज्यो द्वारा दी गई आरक्षण जैसे- तमिलनाडु में 69 प्रतिशत, हरियाणा में 67 प्रतिशत, राजस्थान में 64 प्रतिशत, बिहार में 69 प्रतिशत, गुजरात में 59 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 55 प्रतिशत की बात कही।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनका मकसद केवल मराठा समुदाय की सहायता करना है। 40 साल से संघर्ष कर रहे मराठा समुदाय को हम आरक्षण देना चाहते है। OBC के मौजूदा कोटे में फेर बदल किए बिना ही हम मराठा समुदाय को आरक्षण देना चाहते हैं।