शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है। हिंदु धर्म में नवरात्रि पर शक्ति की साधना का बहुत महत्व होता है। शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन मां दुर्गा के स्वरूप मां कुष्माण्डा की पूजा-अर्चना की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत उपवास रखा जाता है। माँ कुष्मांडा की मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हे कुष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था,चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार था, तब इन्हीं देवी ने अपने ‘ईषत’ हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। ब्रह्मांड की रचनाकार मां कुष्मांडा सूर्यमंडल में निवास करती हैं। मां के मुखमंडल से तेज प्रकट होती है। इस तेज से समस्त ब्रह्मांड प्रकाशवान होता है। मां कुष्मांडा को लाल रंग प्रिय है, इसलिए पूजा में उनको लाल रंग के फूल जैसे गुड़हल, लाल गुलाब आदि अर्पित कर सकते हैं, इससे देवी प्रसन्न होती हैं। ममतामयी मां कुष्माण्डा अष्टभुजा धारी हैं। उनके हाथों में क्रमशः गदा, कलश, कमल, धनुष-बाण और कमंडल हैं। एक हाथ में माला है। इससे तीनों लोकों का कल्याण होता है। मां की सवारी सिंह है। मां कुष्माण्डा अपने भक्तों के सभी दुख हर लेती हैं और उन्हें सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं।
माँ कुष्मांडा की पूजा का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्माण्डा की पूजा करने से मृत्यु लोक में सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। साथ ही शारीरिक और मानसिक विकारों से मुक्ति मिलती है।
मां कुष्माण्डा की पूजाविधि
देवी कुष्मांडा की पूजा में कुमकुम, मौली, अक्षत, पान के पत्ते, केसर और शृंगार आदि श्रद्धा पूर्वक चढ़ाएं। सफेद कुम्हड़ा या कुम्हड़ा है तो उसे मातारानी को अर्पित कर दें, फिर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और अंत में घी के दीप या कपूर से मां कुष्मांडा की आरती करें। आरती के बाद उस दीपक को पूरे घर में दिखाएं ऐसा करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है। मां कुष्मांडा से अपने परिवार के सुख-समृद्धि और संकटों से रक्षा का आशीर्वाद लें। देवी कुष्मांडा की पूजा अविवाहित लड़कियां करती हैं, तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ती होती है। सुहागिन स्त्रियां को अखंड सौभाग्य मिलता है।
मां कुष्मांडा का प्रिय भोग
मां कुष्मांडा को पूजा के समय हलवा, मीठा दही या मालपुए का प्रसाद चढ़ाना चाहिए और इस भोग को खुद तो ग्रहण करें ही साथ ही ब्राह्मणों को भी दान देना चाहिए।