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गैस चैम्बर में बदल रहे हैं कई महानगर


देश की राजधानी दिल्ली गैस चैंबर में बदल चुकी है। सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि दिल्ली से सटे तमाम महानगरों का यही हाल है। सूर्य देवता के तो दर्शन ही दुर्लभ हो गए हैं। दिवाली से पहले धुंध की चादर ने दिल्ली औऱ एनसीआर को अपनी चपेट में ले लिया है। गंभीर हालातों को देखते हुए दिल्ली में ऑड-ईवन लागू कर दिया गया है। जनवरी से पहले स्कूलों में विंटर वेकेशन का भी ऐलान हो चुका है। हमेशा की तरह पराली जलाने को लेकर राज्यों में सियासत जारी है। पराली के लिए एक दूसरे को ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है। प्रदूषण संकट के बीच दिल्ली सरकार की ओर से हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं जिससे दिल्लीवाले दिल्ली छोड़ कर भागने को मजबूर ना हों। लेकिन दिल्ली सरकार की कोई तिगड़म काम नहीं आ रही है। पिछले दस सालों की तरह इस साल भी दिल्ली सरकार दिल्लीवासियों को स्मॉग के कहर से बचा पाने में पूरी तरह फेल हो गई है।
आज हम इसी गंभीर और जानलेवा मुद्दे पर एक विश्लेषण करके आपको बताने वाले हैं कि आखिर ये ज़हरीला प्रदूषण हो किस चीज से रहा है? क्यों ये पूरी तरह बेकाबू होता जा रहा है? आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में आज लगभग 33 से 35 परसेंट प्रदूषण पराली जलने से हो रहा है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी यानि IITM का ‘सफर प्रोग्राम’ मॉडल बताता है कि आज दिल्ली में 35% प्रदूषण का जिम्मेदार दूसरे राज्यों में जलाई जा रही पराली है. और यह सिर्फ दिल्ली-NCR में नहीं है। नासा की तरफ से जारी सैटलाइट पिक्चर में साफ दिख रहा है कि पाकिस्तान के पंजाब से लेकर पूरे इंडो-गैंजेटिक प्लेन में एक तरह से धुएं की चादर फैली हुई है.। आज जिन ज़हरीली गैसों के बीच यानि जिस पॉल्यूशन के बीच हम रहने को मजबूर हैं उसमें काफी हिस्सा बायोमास का भी है। लोगों के घरों में गैस सिलेंडर है, LPG है, मगर खाना बनाने या हीटिंग के लिए आज भी बड़ी संख्या में बायोमास का इस्तेमाल किया जाता हैं। पूरे इंडो-गैंजेटिक प्लेन में बायोमास का इस्तेमाल होता है। इंडस्ट्री जो कोयले का इस्तेमाल करती हैं साथ ही दिल्ली में 80 पर्सेंट पॉल्यूशन पराली, बायोमास और कोयले की वजह से है। बाकि बचा 20 पर्सेंट पॉल्यूशन गाड़ियों, कंस्ट्रक्शन डस्ट और डीजल जेनरेटर सेट्स की वजह से हो जाता है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ज़हरीले पॉल्यूशन को रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन हालात अभी भी वैसे ही हैं। एक्शन के नाम पर डीज़ल जनरेटर और कंस्ट्रक्शन बंद कर दिए गए हैं। पुरानी गाड़ियों पर भी रोक लगा दी है। कचरा जलाना बंद कर दिया गया है पर इससे मात्र 20 पर्सेंट ही पॉल्यूशन कम हो पा रहा है। जो शेष 80 पर्सेंट ज़हरीला धुंआ को रोकने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है।
हालांकि तमाम राज्यों की सरकारों की सख्त कोशिशों के बाद पराली और बाहर कचरा जलाने में कमी तो आई है… प्रदूषण संकट से लोगों की जान बचाने के लिए भारी मात्रा में सड़कों पर पानी का छिड़काव किया जा रहा है। इससे भी काफी बड़ी मात्रा में राहत तो मिली है। पर, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में अब भी पराली जल ही रही है। अभी मौसम में भी नमी है औऱ लगातार सर्द हवाएं चल रही हैं, जिस वजह से पराली का प्रदूषण तेज़ी से फैल रहा है। पराली का प्रदूषण ठीक से आया भी नहीं है। अगले कुछ दिनों में और बढ़ेगा, फिर दिवाली के साथ इसमें और तेजी आएगी। अभी जो AQI लेवल 450-500 पहुंचा है, वह दिवाली वाले दिन 600-700 तक ना पहुंच सकता है। अगर किसान अभी सारी पराली जलाना बंद कर दें, तो दिल्ली में 40 पर्सेंट पॉल्यूशन कम हो सकता है। जानकारों की मानें तो कोई भी किसान आज बासमती की पराली नहीं जलाता। वह नॉन-बासमती पराली ही जलाता है। इसके पीछे का कारण बासमती की पराली कीमती होती है जो गाय और दूसरे पशुओं को खिलाई जाती है। बाकी धान कटाई के लिए किसान कंबाइन हार्वेस्टर इस्तेमाल करते हैं। कंबाइन हार्वेस्टर का जो डिजाइन हमारे देश में इस्तेमाल होता है, वो कुछ इंच स्टबल छोड़ देता है। अब उस स्टबल को जलाया जाता है। यह टेक्नॉलजी से जुड़ी प्रॉब्लम है। जानकार मानते हैं कि कंबाइन हार्वेस्टर संकट भी है और उपाय भी। आज के दिन में हमारे पास ऐसे कंबाइन हार्वेस्टर हैं जो एकदम जमीन से फसल काट सकते हैं लेकिन हम उसका इस्तेमाल ही नहीं कर रहे। ऐसे में किसान के लिए दो ही उपाय हैं या तो फिर दोबारा उस पराली को काटे जिसमें पैसे खर्च होंगे, या फिर उसे जला दें। इसीलिए किसान अपना खर्च बचाने के लिए पराली जलाना ज्यादा बेहतर समझते हैं। पराली से खाद बनाना भी उसके लिए डबल एफर्ट वाला काम होता है। बहुत कम किसान ऐसा करते हैं, क्योंकि खाद बनने में वक्त लगता है, तब तक अगली फसल का सीजन आ जाता है।
मुंबई का भी कुछ ऐसा ही हाल है। मुंबई में आज की तारीख में कई मुद्दे है। पहला ये कि मुंबई इतनी तेजी से फैला है कि इंडस्ट्रीज, हाउसहोल्ड एनर्जी, डस्ट, कंस्ट्रक्शन सब कुछ एक तरह से एक आइलैंड में सीमित हो गया है। मुंबई के कोस्टल फ्रंट पर ऊंची इमारतें बन गई हैं। मुंबई में दूसरी बहुत बड़ी समस्या है गार्बेज बर्निंग की। यहां की लैंडफिल साइट्स में हमेशा आग लगी रहती है। पहले मुंबई में हवा आती थी और प्रदूषण चला जाता था। मगर अभी के मौसमी हालात के कारण मुंबई में एक तरह से पल्यूशन रुक गया है। दिल्ली में प्रदूषण को लेकर बहुत कुछ कार्य हो रहा है लेकिन मुंबई में तो प्रदूषण को लेकर कोई बात भी नहीं कर रहा।


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