आज संसद के विशेष सत्र का दूसरा दिन है । देश की पुरानी संसद के कामकाजों को देश की नई संसद में शिफ्ट कर दिया जाएगा। आज का दिन भारत के लिए ऐतिहासिक और बेहद गौरवशाली है । भारत के नई दिल्ली में स्थित नए संसद भवन का उद्घाटन 28 मई 2023 को देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था । नया संसद भारत के करोड़ो लोगों की अकांक्षाओं और देश को समर्पित है । देश की जनता को समर्पित देश का नया पार्लियामेंट गुलामी की मानसिकता से मुक्ति के राष्ट्रीय संकल्प का प्रतीक है।
नए संसद भवन की विशेषताएं
65 हजार वर्ग मीटर में फैला नया संसद भवन त्रिकोणीय आकार का है । इसका निर्माण सेंट्रल विस्टा परियोजना के तहत कराया गया है। यह एक चार मंजिला इमारत है। इस नए भवन को बनाने में लगभग 862 करोड़ रुपये की लागत आई थी। बाद में इसका निर्माण 1200 करोड़ रुपये की लागत से पूरा हुआ । नए संसद भवन की संरचना में तीन राष्ट्रीय प्रतीकों को प्रमुखता दी गई है: पहला, राष्ट्रीय पुष्प कमल, दूसरा, राष्ट्रीय पक्षी मोर और तीसरा राष्ट्रीय वृक्ष बरगद । नए संसद भवन में प्रवेश के लिए छह (6) द्वार हैं, जो भारत की 6 ऋतुओं (षडऋतु) का प्रतिनिधित्व करते हैं। नए संसद भवन के द्वार पर बड़े-बड़े अक्षरों में ‘सत्यमेव जयते’ लिखा हुआ है।
भवन के तीन मुख्य द्वार
नई संसद भवन के तीनों मुख्य द्वार जल, थल और नभ को समर्पित हैं। नए संसद भवन के तीनों मुख्य द्वार—जल, नभ और थल द्वार—को ज्ञान द्वार, शक्ति द्वार और कर्म द्वार नाम दिया गया है।
नए संसद भवन में महत्वपूर्ण कामकाज के लिए अलग-अलग कार्यालय बनाए गए हैं। ये हाईटेक इक्विपमेंट और आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं।
राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ
नए संसद भवन के ऊपर भवन के बीच में शीर्ष पर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ के चार सिंह स्थापित हैं। यह राष्ट्रीय प्रतीक कांस्य से बना है, जिसका कुल वजन 9500 किलोग्राम है। इस राष्ट्रीय प्रतीक की ऊंचाई 6.5 मीटर है ।
लोकसभा और राज्यसभा
नए संसद भवन में लोकसभा कक्ष में 888 और राज्यसभा कक्ष में 384 प्रतिनिधियों के बैठने की व्यवस्था है। लोकसभा कक्ष की संरचना की डिज़ाइन भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर से प्रेरित है। इस कक्ष की हर डिज़ाइन में मोर की आकृति और मोरपंख की झलक दिखती है। लोकसभा कक्ष की दीवार, कालीन और कुर्सियों के कुशन ,हरे रंग से रंगे धरती और भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करते है। नया राज्यसभा कक्ष राष्ट्रीय पुष्प कमल से प्रेरित है, जिसके हर डिज़ाइन में कमल फूल की प्रतिकृति दिखती है। राज्यसभा कक्ष की दीवार, कालीन और कुर्सियों के कुशन के रंग को परम्परानुसार लाल रखा गया है। लाल रंग राजसी गौरव का प्रतिनिधित्व करता है।
आधुनिक टेक्नोलॉजी और डिजिटल व्यवस्था
अत्याधुनिक डिजिटल सुविधाएं दोनों सदनों (लोकसभा और राजसभा) को नया आयाम देती हैं। यहां सदन की कार्यवाही को विभिन्न भाषाओँ में पढ़ा और सुना जा सकता है। दोनों में सदस्यों के लिए बायोमेट्रिक की सुविधा है। नए संसद भवन में वोटिंग के परिणाम और सदन की कार्यवाही के प्रसारण के लिए विशाल मल्टी-मीडिया डिस्प्ले, ऑटोमेटिक कैमरा कंट्रोल और कमांड सेंटर का निर्माण किया गया है। नया संसद भवन एक स्मार्ट संसद, एक स्मार्ट भवन है। यह पूरी तरह से पेपरलेस है। यहां सुरक्षा और सुविधा के लिए स्मार्ट फीचर्स और स्मार्ट एक्सेस की व्यवस्था है।
नई संसद भवन का सेंट्रल फोयर
नई संसद भवन के केंद्र में बने सेंट्रल फोयर की छत त्रिकोणीय शीशे से ढकी है। जहां से सूर्य की किरणें छनकर फर्श पर बने पेंडुलम क्लॉक को रोशन करती है। न्यू पार्लियामेंट बिल्डिंग में खुली में बरगद का पेड़ लगाया गया है। नए संसद भवन के केंद्र में बने सेंट्रल फोयर में संविधान कक्ष बनाया गया है। जहां हर कोई भारत में लोकतंत्र के अतीत से वर्तमान की यात्रा का अनुभव कर सकते हैं। इसी सेंट्रल फोयर के संविधान कक्ष में भारत के संविधान की डिजिटल प्रति प्रदर्शित की गई है।
नया संसद भवन ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना से प्रेरित है। यह आत्मनिर्भर भारत का प्रतीक हैं। इस भवन के निर्माण में भारत के हर भाग को भागीदारी दी गई है। नया संसद भवन भारत के मशहूर आर्किटेक्ट बिमल पटेल के निर्देशन में बना है। वे गुजरात के अहमदाबाद शहर से आते हैं। नए संसद भवन का निर्माण टाटा प्रोजेक्ट्स ने किया है, लेकिन इसकी डिजाइन अहमदाबाद की कंपनी एचसीपी डिजाइन एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने बनाई है।
सेंगोल
आज से 75 वर्ष पहले के भारत की स्वतंत्रता की भावना को पुनर्जीवित करते हुए पीएम मोदी ने सेंगोल को तमिलनाडु से आए आदीनम् संतों के हाथों से स्वीकार किया। सेंगोल को लोकसभा कक्ष में अध्यक्ष की कुर्सी के पास स्थापित किया गया है। जो कि सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है। सेंगोल राष्ट्र के लिए न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन का स्मरण कराता है। सेंगोल के शीर्ष पर न्याय के प्रतीक पवित्र नंदी अपनी अचल दृष्टि से विराजित हैं। यह वही सेंगोल है, जिसे जवाहरलाल नेहरु ने 14 अगस्त, 1947 की रात को तिरुवावडुतुरै आदीनम् से एक अनुष्ठान के माध्यम से प्राप्त किया था। सेंगोल की परंपरा दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य से जुड़ी है। सेंगोल के प्राप्तकर्ता के पास न्यायपूर्ण और निष्पक्ष रूप से शासन करने का आदेश होता है, जिसे तमिल में ‘आनेय’ कहा जाता है।