उत्तराखंड विधानसभा में आज समान नागरिक संहिता (यूसीसी) उत्तराखंड विधेयक 2022 पास हो सकता है। बिल पास होने के बाद कानून बन जाएगा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को विधानसभा के पटल पर विधेयक को रखा। विधेयक में कई खास प्रावधान दिए गए हैं। प्रावधान है कि बेटा और बेटी को संपत्ति में समान अधिकार मिलेगा लिव इन रिलेशनशिप में पैदा होने वाली संतान को भी संपत्ति का हकदार माना जाएगा। अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों पर यूसीसी लागू नहीं होगा। सदन में विधेयक पेश करने के बाद सीएम ने कहा कि यूसीसी में विवाह की धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाज, खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर कोई असर नहीं होगा।
अब राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाएगा। इसके साथ ही आजादी के 77 वर्षों बाद देव भूमि उत्तराखंड देश का पहला UCC बिल लागू करने वाला पहला राज्य बन जाएगा। उत्तराखंड सरकार द्वारा पेश किये गये बिल में विवाह को लेकर महत्वपूर्ण प्रावधान किये गये हैं। इस बिल के ड्राफ्ट में विवाह का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य, न्यायिक प्रक्रिया से तलाक समेत मुद्दों को शामिल किया है।
विवाह को लेकर बिल में निम्नलिखित प्रावधान किये गये-
-UCC बिल में विवाह के लिए पुरूष की आयु 21 वर्ष और स्त्री की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है। विवाह का पंजीकरण धारा 6 के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा। यदि कोई इस प्रावधान का उल्घंन करता है तो उसे 20 हजार का जुर्माना देना होगा।
-वैवाहिक जोड़े में से कोई भी तलाक के लिए तब तक कोर्ट नहीं जा सकता, जब तक विवाह की अवधि एक साल न हो गई हो।
-विवाह चाहे किसी भी धार्मिक प्रथा के जरिए किया गया हो, लेकिन तलाक केवल न्यायिक प्रक्रिया के तहत हो सकेगा।
-किसी भी व्यक्ति को पुनर्विवाह करने का अधिकार तभी मिलेगा, जब कोर्ट ने तलाक पर निर्णय दे दिया हो और उस आदेश के खिलाफ अपील का कोई अधिकार नहीं रह गया हो।
-कानून के खिलाफ विवाह करने पर छह महीने की जेल और 50 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके अलावा नियमों के खिलाफ तलाक लेने में तीन साल तक का कारावास का प्रावधान है।
-पुरुष और महिला के बीच दूसरा विवाह तभी किया जा सकता है, जब दोनों के पार्टनर में से कोई भी जीवित न हो।
महिला या पुरुष में से अगर किसी ने शादी में रहते हुए किसी अन्य से शारीरिक संबंध बनाए हों तो इसको तलाक के लिए आधार बनाया जा सकता है।
-अगर किसी ने नपुंसकता या जानबूझकर बदला लेने के लिए विवाह किया है तो ऐसे में तलाक के लिए कोई भी कोर्ट जा सकता है।
-अगर पुरुष ने किसी महिला के साथ रेप किया हो, या विवाह में रहते हुए महिला किसी अन्य से गर्भवती हुई हो तो ऐसे में तलाक के लिए कोर्ट में याचिका लगाई जा सकती है। अगर महिला या पुरुष में से कोई भी धर्मपरिवर्तन करता है तो इसे तलाक की अर्जी का आधार बनाया जा सकता है।
-संपत्ति को लेकर महिला और पुरुषों के बीच बराबर अधिकार होगा। इसमें किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसके अलावा इच्छा पत्र और धर्मज को लेकर भी कई तरह के नियम भी शामिल हैं।
लिव इन रिलेनशिप में पंजीकरण कराना होगा अनिवार्य
उत्तराखंड सरकार द्वारा प्रस्तुत किये गये बिल में लिव इन रिलेशनशिप के लिए विशेष प्रावधान किये गये हैं। केवल एक व्यस्क पुरुष व व्यस्क महिला ही लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे। वह भी तब, जब वे पहले से अविवाहित हों अथवा किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप में न रह रहे हों। साथ ही निषेध संबंधों की डिग्री में न आते हों। इस डिग्री में नजदीकी रिश्तेदारों के साथ संबंध निषेध हैं। इसके अलावा लिव इन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को साथ में रहने के लिए अनिवार्य रूप से पंजीकरण एक रजिस्टर्ड वेब पोर्टल पर कराना होगा। पंजीकरण करने के पश्चात उसे रजिस्ट्रार द्वारा एक रसीद दी जाएगी। इसी रसीद के आधार पर वह युगल किराये पर घर, हास्टल अथवा पीजी में रह सकेगा। पंजीकरण करने वाले युगल की सूचना रजिस्ट्रार को उनके माता-पिता या अभिभावक को देनी होगी।
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के लिए दी गई गलत जानकारी कपल को मुसीबत में भी डाल सकती है। गलत जानकारी प्रदान करने पर व्यक्ति को तीन महीने की जेल, 25,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। लिव-इन रिलेशनशिप को पंजीकृत नहीं कराने पर अधिकतम छह महीने की जेल, ₹ 25,000 का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ेगा। यहां तक कि पंजीकरण में एक महीने से भी कम की देरी पर तीन महीने तक की जेल, ₹ 10,000 का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
लिव इन रिलेशनशिप में पैदा हुए बच्चों को मिलेगी कानूनी मान्यता
उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए समान नागरिक संहिता (UCC) में एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह भी किया गया है कि लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी मान्यता दी जाएगी। यानी वे “दंपति की वैध संतान होंगे”। इसका मतलब है कि लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान पैदा हुए सभी बच्चों को ‘नाजायज’ के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा बच्चा बेटा हो या बेटी दोनों को समान अधिकार मिलेंगे।