देश का एक राज्य जहां गांधी से लेकर जे पी आंदोलन तक का इतिहास आज भी जीवंत है। पर आपको जानकर हैरानी होगी कि बिहार में गुजर-बसर करने वाले एक तिहाई परिवार आज भी गरीबी रेखा से नीचे जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। प्रति व्यक्ति की मासिक आय 6 हजार या उससे कम की आंकी गई है। यही कारण है कि बिहार के लोगों को रोजगार के लिए अन्य प्रदेशों का रुख करना पड़ता है। चंद्रयान -3 की सफलतापूर्ण लैंडिंग में बिहार के तीन युवा वैज्ञानिक भी शामिल थे।
दरअसल बिहार में एक तिहाई परिवार गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं और वे प्रतिमाह 6 हजार रुपये या उससे कम कमा रहे हैं। जातीय सर्वेक्षण पर मंगलवार को विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट से यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया है कि ऊंची जातियों में बहुत गरीबी है लेकिन पिछड़े वर्ग, दलितों और आदिवासियों का प्रतिशत उनसे अधिक है। संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लगभग 2.97 करोड़ परिवार रहते हैं, जिनमें से 94 लाख से अधिक (34.13 प्रतिशत) गरीब हैं।
75 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव
बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि जातीय गणना सर्वे से पिछड़ा और अति पिछड़ा सहित एससी और एसटी आबादी का जो आंकड़ा आया है, उसके मुताबिक आरक्षण बढ़ाने की जरूरत है। फिलहाल जो 50 प्रतिशत आरक्षण है, उसे हम 65 प्रतिशत कर दें। पहले से अगड़ी जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण है तो इस 65 प्रतिशत के बाद कुल आरक्षण 75 प्रतिशत हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य में 63,850 परिवारों के रहने का आवास नहीं है, ऐसे परिवारों के लिए राज्य सरकर जमीन खरीदने के लिए 1 लाख और मकान बनाने के लिए 1.20 लाख रुपये देने का भी सुझाव रखती है। उन्होंने कहा कि इस लक्ष्य को पूरा करने में पांच साल का समय लगेगा। राज्य में 94 लाख गरीब परिवार हैं। इन गरीब परिवार को 2 लाख रुपये राज्य सरकार की तरफ से मदद किया जाएगा। इसमें सभी जाति के गरीबों को मदद पहुंचाई जाएगी। मुख्यमंत्री ने विशेष राज्य का दर्जा की मांग को भी दोहराते हुए कहा कि अगर विशेष राज्य का दर्जा मिल जाए तो लक्ष्य जल्दी पूरा होगा।