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भारत की शान “हिन्दी”


 

जिस देश को अपनी भाषा और साहित्य का गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता- डा. राजेंद्र प्रसाद

 

भारत भूमि को संस्कृत भाषा, संस्कृति और आध्यात्म, मूलत: इन सभी चीजों के लिए जाना  जाता है।

हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में एक है। दुनियाभर में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली चौथी भाषा है। देश के कई राज्यों में लोग इसका इस्तेमाल करते हैं। आम बोलचाल के लिए भी हिंदी सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। वहीं, बात करें दुनिया की, तो मंडेरिन, स्पेनिश और अंग्रेजी भाषा के बाद हिंदी दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। ऐसे में हिंदी के महत्व को लोगों तक पहुंचाने और इसे बढ़ावा देने के मकसद से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

इस खास मौके पर आज जानेंगे कि आखिर हिंदी दिवस मनाने के लिए 14 सितंबर की तारीख ही क्यों तय की गई। साथ ही यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि हिंदी का नाम “हिंदी” क्यों पड़ा?

14 सितंबर- हिंदी दिवस की कहानी

14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने की अपनी एक वजह है। इसी दिन जब साल 1949 में लंबी चर्चा के बाद देवनागरी लिपि में हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। इसके लिए 14 तारीख का चुनाव खुद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने किया था।

 

कब मनाया गया पहली बार हिंदी दिवस

पहली बार साल 1953 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सुझाव पर शुरुआत की गई थी। इस दिन को मनाने के पीछे का कारण हिंदी के महत्व को बढ़ाना तो था ही, लेकिन इसी दिन महान हिंदी कवि राजेंद्र सिंह की जयंती भी होती है। भारतीय विद्वान, हिंदी-प्रतिष्ठित, संस्कृतिविद, और एक इतिहासकार होने के साथ ही उन्होंने हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।

 

भारत के अलावा कहां बोली जाती है हिंदी

भारत के अलावा कई अन्य देश ऐसे हैं, जहां लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। इन देशों में नेपाल, मॉरीशस, फिजी, पाकिस्तान, सिंगापुर, त्रिनिदाद और बांग्लादेश शामिल हैं।

 

 

हिंदी उन सभी गुमों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषा की अगली श्रेणी में समासीन हो सकती है- मैथिली शरण गुप्त

 


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Pradhan Mantri Awas Yojana: उत्तर प्रदेश में हर एक पात्र व्यक्ति को प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ मिलेगा, ऐसा राज्य के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने कहा है। उन्होंने यह भी कहा है कि इस योजना के तहत होने वाले सर्वे में पूरी पारदर्शिता बरती जाएगी और किसी भी पात्र व्यक्ति को लाभ से वंचित नहीं रखा जाएगा। हर गांव में एक सरकारी कर्मचारी को सर्वे का काम सौंपा गया है और सर्वे के दौरान लाभार्थी और सर्वे करने वाले अधिकारी दोनों का फेस पहचान तकनीक से मिलान किया जाएगा। मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार (Pradhan Mantri Awas Yojana) ने उत्तर प्रदेश को इस वित्तीय वर्ष में 70 हजार आवासों का लक्ष्य दिया है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पात्रता मानकों में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। यह भी पढ़ें- लखनऊ: विधानसभा के बाहर युवक ने खुद को लगाई आग, गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती पहले, जिन लोगों के पास मोटरसाइकिल, लैंडलाइन फोन या रेफ्रिजरेटर जैसे सामान थे, उन्हें भले ही उनका घर कच्चा हो, आवास योजना का लाभ नहीं मिल पाता था, लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस नियम में ढील दे दी है। मुख्य सचिव ने कहा कि उत्तर प्रदेश को इस योजना में देश में पहले स्थान पर रहना चाहिए। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएं। उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण के तहत पिछले छह वर्षों में एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है। इस योजना के तहत अब तक कुल 2.52 लाख घरों का निर्माण पूरा हो चुका है। यह योजना विशेष रूप से गरीब और वंचित समुदायों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई है। यह भी पढ़ें- औली में भारत-कजाकिस्तान के बीच संयुक्त युद्धाभ्यास जारी, फायरिंग का हुआ आयोजन Nayab Saini
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