श्रेष्ठ भारत (Shresth Bharat) | Hindi News

Our sites:

|

Follow us on

|

कर्पूरी ठाकुर -अद्भुत व्यक्तित्व, स्वयं में एक पूरी कहानी


कर्पूरी ठाकुर का जन्म भारत में ब्रिटिश शासन काल में समस्तीपुर पितौंझिया गाँव, जिसे अब ‘कर्पूरीग्राम’ कहा जाता है, में नाई जाति में हुआ था। उनके पिताजी का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता जी का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमान्त किसान थे तथा अपने पारंपरिक पेशा बाल काटने का काम करते थे। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे। बहुगुणा जी कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे। स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार विधायक रहे, पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया।

कर्पूरी ठाकुर सदैव दलित, शोषित और वंचित वर्ग के उत्थान के लिए प्रयत्‍नशील रहे और संघर्ष करते रहे। उनका सादा जीवन, सरल स्वभाव, स्पष्‍ट विचार और अदम्य इच्छाशक्ति से बरबस ही लोगों को प्रभावित कर लेती थी। लोग उनके विराट व्यक्तित्व के प्रति आकर्षित हो जाते थे। बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में उसे प्रगति-पथ पर लाने और विकास को गति देने में उनके अपूर्व योगदान को सदैव स्मरण किया जाएगा।

कर्पूरी ठाकुर को राजनीति का असल ‘जन नायक’ माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर के कारण इंदिरा गांधी की सत्ता हिलने लगी थी। बात आपातकाल के समय की है। उस समय हालत ऐसे हो गए थे कि इस जननायक को हर हफ्ते अपना वेश बदलना पड़ता था। 1975 ,22 जून की शाम जयप्रकाश नारायण जिस प्लेन से दिल्ली आने वाले थे, उसे रद्द कर दिया गया। 26 जून को आपातकाल लागू हो गया। जेपी समेत कई विरोधी नेता गिरफ्तार कर लिए गए। 

कर्पूरी ठाकुर ने गिरफ्तार होने के बजाय भूमिगत आंदोलन चलाने के लिए व्यापक कार्यक्रम तैयार किया। नेपाल के वीरपुर के पास जंगल में उन्होंने क्रांति की योजना तैयार की। जिन लोगों ने अपने-अपने इलाकों में संघर्ष के लगातार गुप्त कार्यक्रम किए, कर्पूरी ठाकुर उनके बीच एकता के सूत्र जैसे थे। प्रोत्साहन, मदद और दिशा देकर उन्होंने देशभर में शांतिपूर्ण भूमिगत आंदोलन का कुशल नेतृत्व दिया। पुलिस पीछे पड़ी रही, पर इस अजेय वीर को आंदोलन के दौरान गिरफ्तार नहीं कर सकी। इनकी संगठन-शक्ति, रणकौशल, प्रतिरोध शैली और भूमिगत आंदोलन के अनुभव हिंदुस्तानी समाजवादी और लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए प्रेरणा और शिक्षा के काम में फलदायक सिद्ध हो सकते हैं।

कर्पूरी ठाकुर 17 जून, 1975 को नेपाल चले गए, वहां दो महीने रहे। नेपाल में राजविराज, हनुमान नगर, विराट नगर, चतरा घूमते रहे. बिहार में भूमिगत नेताओं और कार्यकर्ताओं से बराबर संपर्क रखा। नेपाल आने के 3 दिन बाद ही सीआईडी पुलिस का एक दस्ता कर्पूरी ठाकुर के यहां पहुंच गया। बिहार के सीमावर्ती जिलों के कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों की एक बैठक सीतामढ़ी में हुई. इन लोगों ने नेपाल पुलिस अधिकारियों से अनुरोध किया कि कर्पूरी ठाकुर को भारत सरकार को सौंप दिया जाए. नेपाल सरकार ने यह बात नहीं मानी। जुलाई के दूसरे सप्ताह में नेपाल सरकार अपने विमान से उन्हें काठमांडू ले गई। वह एक प्रकार से नजरबंद थे।

नेपाल से रफू चक्कर होने के लिए कर्पूरी ठाकुर को वेश बदलना पड़ा। उन्होंने दाढ़ी, मूंछ और सिर के बाल बढ़ा लिए थे। 5 सितंबर 1975 की रात 10 बजे उन्होंने नाई को बुलाया। दाढ़ी-मूंछ सफा कराया और सिर के बालों को भी छोटे करा लिए। लुंगी पहनी और रात 11-12 बजे फरार हो गए।

अपने मित्रों के प्रयास से एक नेपाली लिबास ‘दाउरा सुरूवाल’ का बंदोबस्त कर लिया था। इसे पहनकर उन्होंने मोहन सिंह नाम से ‘थाई एयरवेज’ का टिकट कलकत्ता होते हुए मद्रास के लिए लिया। इसी नाम और वेशभूषा में वह काठमांडू से कलकत्ता चले गए। दमदम हवाई अड्डे पर कुछ लोगों से गुप्त बातचीत की। मद्रास में भूमिगत नेताओं की एक बैठक होनी थी। जार्ज फर्नांडिस से वहां भेंट हुई, पर नानाजी देशमुख पहले ही गिरफ्तार हो गए थे। 

मद्रास में 10 दिन रहने के बाद वह बेंगलुरु आ गए। तब तक नेपाली वेशभूषा छोड़कर वह मौलवी बन गए ,नाम रखा खान साहब। मुम्बई से कर्पूरी ठाकुर दिल्ली आए। वहां 5 दिन रहने के बाद लखनऊ आ गए। मौलवी वेश छोड़कर कुली के वेश में आ गए। कुछ नेताओं से मिलना था। वह केवल लुंगी और गंजी पहनकर पहुंच गए। किसी को शक हो गया तो फौरन लखनऊ से गोरखपुर निकल गए। नेपाल जाकर मुस्लिम वेश धारण कर लिया। जल्दी ही समझ में आ गया कि खतरा है तो वह ट्रक से जनकपुर चले गए और कोलकाता पहुंच गए। 

कर्पूरी ठाकुर का चिर परिचित नारा था..

सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥

कर्पूरी ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब वो मरे तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था। ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।

जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी जैसे नेता भी हुए, विश्वास ही नहीं होता। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं। उनसे जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो उनके रिश्ते में उनके बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए और कहीं सिफारिश से नौकरी लगवाने के लिए कहा। उनकी बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उसके बाद अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा, “जाइए, उस्तरा आदि ख़रीद लीजिए और अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए। ऐसे थे कर्पूरी ठाकुर। जिसका आज की तारीख में कोई सानी नहीं है। पर अफसोस आज उसी व्यक्तित्व को भारत रत्न देने और मिलने पर सियासी बहस का दौर शुरु हो गया है।


संबंधित खबरें

वीडियो

Latest Hindi NEWS

Health News
Health News: टॉयलेट सीट पर चलाते हैं फोन, बड़ी बीमारी से हो सकते हैं ग्रसित!
CM DHAMI
Uttarakhand: जनजातीय गौरव दिवस आज, मुख्यमंत्री धामी करेंगे कार्यक्रम का शुभारंभ
UPPSC Exam News Date
UPPSC Exam News Date: UPPSC परीक्षा की नई तारीख का एलान, जानें कब होगा एग्जाम
UPPSC RO-ARO Protest
UPPSC Protest: छात्रों का आंदोलन 5वें दिन भी जारी, जानें कहां फंसा है पेंच
Anshul Kamboj
Ranji Trophy: अंशुल कंबोज ने रचा इतिहास, ऐसा करने वाले बने 6ठें भारतीय गेंदबाज
India Vs South Africa 4th T20
IND vs SA: सीरीज जीतने के इरादे से उतरेगी सूर्या ब्रिगेड, जानें संभावित प्लेइंग11