विश्व में भारत समेत कई देशों में ओजोन प्रदूषण का खतरा मंडरा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि क्लाइमेट चेंज और वायु प्रदूषण की ओर ध्यान आकर्षित नहीं किया गया तो यह आने वाले वर्षों में भंयकर त्रसादी लेकर आएगा। विशेषज्ञों के अनुसार ओजोन प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों का आंकड़ा बढ़ जाएगा।
ओजोन प्रदूषण का सबसे बड़ा खतरा भारत को है। स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर के आंकड़ो के मुताबिक भारत में हर साल 168,000 लोगों की मौंते हो रही हैं। दुनिया में ओजोन से मौतों का 46 फीसदी हिस्सा है। वहीं भारत के बाद यदि किसी देश में ओजोन प्रदूषण के कारण अधिक मौतें हो रही है तो वह चीन है। चीन में हर साल इसके कारण 93,300 लोगों की जानें जा रही हैं। यह समस्या भारत-चीन जैसे देशों में विकराल रूप ले रही है क्योंकि दोनों देश विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाले देश हैं। जिसके कारण इन देशों में ओजोन प्रदूषण के कारण मरने वालों का आंकड़ा सबसे अधिक है।
दुनियाभर में साल 2019 में ओजोन के संपर्क में आने से करीब 365,000 लोगों की मौतें हो चुकी है। यह आंकड़ा दुनियाभर में COPD (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) से होने वाली सभी मौतों का लगभग 11 फीसदी है। यानी कि सीओपीडी से होने वाली हर 9 मौतों में से 1 के लिए ओजोन जिम्मेदार है।
क्या होता है COPD ?
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज को सीओपीडी (COPD) के नाम से भी जाना जाता है। इस समस्या के दौरान फेफड़ों के वायुमार्ग सिकुड़ जाते हैं, जिस वजह से सांस लेने में परेशानी आती है। ऐसा होने पर शरीर के अंदर से कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर नहीं निकल पाती। सीओपीडी का मुख्य कारण स्मोकिंग और अस्थमा होता है। इसके अलावा बढ़ता प्रदूषण भी इस बीमारी मुख्य कारण बनता जा रहा है। ओजोन के संपर्क में आने से सीओपीडी का खतरा और बढ़ जाता है।
ओजोन एक वायु प्रदूषक है जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। सीओपीडी वाले लोगों में, ओजोन के संपर्क में आने से सांस लेने में तकलीफ, खांसी और सीने में जकड़न जैसे लक्षण बढ़ सकते हैं। यह अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु के जोखिम को भी बढ़ा सकता है।
क्या होता है ओजोन प्रदूषण?
ओजोन एक गैस की परत होती है जो सूरज से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी (UV) किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। यह गैस हल्के नीले रंग की होती है। पृथ्वी पर इंसानों और समुद्री जानवरों के जीवन के लिए ओजोन परत का होना बेहद जरूरी है। ये पृथ्वी के वायुमंडल में धरातल से 10 किमी से 50 किमी की ऊंचाई के बीच में पाई जाती है।
अब अगर यह ओजोन जमीन पर आ जाए तो खतरनाक हो जाती है और प्रदूषण का कारण बनती है। ओजोन प्रदूषण तब होता है जब वायुमंडल में ओजोन की मात्रा सामान्य से अधिक हो जाती है। तब ये ओजोन प्रदूषण मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है।
ओजोन के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव
श्वास लेते वक्त ओज़ोन के अंदर जाने से छाती में दर्द, खांसी, गले में जलन और श्वास की नली में सूजन आदि हो सकता है।
फेफड़ों के काम करने में कमी आ सकती है।
ओजोन ब्रोंकाइटिस, emphysema, अस्थमा इत्यादि को और खराब कर सकता है।
श्वसन संक्रमण और फेफड़ों में सूजन (COPD) के लिए संवेदनशीलता के जोखिम को बढ़ाता है।
श्वास के जरिये ओज़ोन शरीर में जाने से जीवन की आयु कम हो सकती है ओर समय से पहले मौत भी हो सकती है।
ओजोन के कारण कार्डियोवैस्कुलर बिमारी हो सकती है जो कि दिल को प्रभावित कर सकती है।
हवा में मौजूद वायु प्रदूषक फेफड़ों को ओज़ोन के प्रति अधिक प्रतिक्रियाशील बनाते हैं और जब आप सांस लेते हैं तो ओज़ोन आपके शरीर को अन्य प्रदूषकों के प्रति जवाब देने के लिए बढ़ा देती है. उदाहरण के लिए: 2009 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि ओज़ोन और PM2.5 के स्तर उच्च होने पर बच्चों को बुखार और श्वसन एलर्जी से पीड़ित होने की संभावना अधिक हो जाती है।
लक्षण गायब होने पर भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाना जारी रखती है ये ओज़ोन गैस।
ओजोन वनों, पार्कों, वन्यजीवन इत्यादि सहित वनस्पति और पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाती है।
कैसे बनते हैं ओज़ोन प्रदूषक कण?
नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब तेज धूप के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है। गाड़ियों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है। आज हमारी लपारवाहियों और बढ़ते औद्योगिकरण के साथ ही गाड़ियों और कारखानों से निकलने वाली खतरनाक गैसों के कारण ओज़ोन परत को भारी नुकसान हो रहा है और इसकी वज़ह से ओज़ोन प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। साथ ही इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, 8 घंटे के औसत में ओज़ोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) वायु प्रदूषण को लेकर दुनिया को कई बार आगाह कर चुका है। अनुमान है कि दुनिया की 99% आबादी खराब हवा में सांस लेने के लिए मजबूर है। इस कारण हर साल करीब 70 लाख लोगों की जान जा रही है। इनमें से 90% मौतें कम और मध्यम आमदमी वाले देशों में होती हैं।