ऑटिज्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर कहा जाता हैं। ये बीमारी जन्म से ही होती है। ये एक ह्यूमन बिहेवियर के डेवलपमेंट से संबंधित बीमारी है। इसमें पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने लिखने में, रोजमर्रा के काम करने में और समाज में मिलने जुलने में परेशानियां आती हैं। इस बीमारी में पीड़ित व्यक्ति का दिमाग साधारण व्यक्ति के मुकाबले अलग तरीके से काम करता है। साथ ही ऑटिज्म के लक्षण सभी मरीजों में अलग-अलग देखने को मिलते है। इतना ही नहीं, इसका कोई कम्प्लीट इलाज भी नही हैं। कुछ स्टडीज में ऐसा देखा गया है कि diagnosis और इंटरवेंशन ट्रीटमेंट सर्विसेज की जल्द मदद से ऑटिस्टिक लोगों को सामाजिक व्यवहार और नयी स्किल्स सीखने में मदद मिलती है, जिससे वो अपना जीवन बेहतर तरीके से जी पाते हैं।
आपको बता दें कि ऑटिज्म के 3 प्रकार होते हैं…
1-ऑटिस्टिक डिसॉर्डर- ये सबसे आम प्रकार है। इसमें पीड़ित लोगों को बातचीत करने में और रोजमर्रा के काम करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
2-अस्पेर्गेर सिंड्रोम- इसमें पीड़ित का व्यवहार कभी-कभी अजीब होता है, लेकिन कुछ खास विषयों में इनकी रुचि बहुत होती है। ये सबसे हल्का ऑटिज्म का प्रकार होता है।
3-पर्वेसिव डेवलपमेंट डिसॉर्डर- इसमें कुछ खास स्थितियों में ही लोगों को इस डिसॉर्डर से पीड़ित माना जाता हैं।
ऑटिज्म के लक्षणों की बात करें तो आमतौर पर इसके लक्षण 12 से 18 महीने के बच्चे या इससे पहले देखने को मिलते है।
नवजात शिशु जब ऑटिज्म का शिकार
नवजात शिशु जब ऑटिज्म का शिकार होते है तो इनमें कुछ ऐसे लक्षण दिखाई देते है। जैसे-दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने में दिक्कत आना, ज्यादातर अकेले रहना, किसी एक जगह पर घंटों तक चुपचाप बैठे रहना, दूसरों से बात ना करना, खुद को नुकसान पहुंचाना, किसी काम को बार बार करते रहेना। ये कुछ आम लक्षण है जो ऑटिज्म पीड़ित बच्चों में आपको देखने को मिलेंगे। वहीं, ऑटिज्म के कारण की बात करें तो अभी तक इसका पता नहीं लग पाया है, लेकिन अलग-अलग स्टडीज की मानें तो ये बीमारी दिमाग के विकास को नियंत्रित करने वाले जीन की गड़बड़ी या फिर गर्भवस्था में वायरल इंफेक्शन या हवा में फैले प्रदूषण कणों के सम्पर्क में आने से हो जाती है। आपको बता दें कि कुछ स्पेशल केसेस जैसे प्रिमेच्यर बेबी ऑटिज्म का शिकार हो सकते हैं। वहीं, उम्रदराज माता-पिता के भी बच्चे कई बार ऑटिज्म का शिकार होते हैं। साथ ही, प्रेग्नेंसी के दौरान खाई गई कुछ दवाईयों के साइड इफेक्ट के कारण भी बच्चे इस बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं। माना जाता है कि ऐसे केसेस में बच्चों के ऑटोस्टिक होने के ज्यादा chances होते हैं।
नहीं है कोई इलाज
वहीं, इस बीमारी के इलाज की बात करें तो फिलहाल इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन बचपन से इंटरवेशनल ट्रीटमेंट के जरिए बच्चों को जरूरी स्किल्स सिखाई जाती है। इसमें थेरेपी औऱ कई तरह के प्रोग्राम किए जाते हैं। इसमें दवाइयां काम नहीं करती हैं, लेकिन एंटी एग्जायटी दवाइयां चिड़चिड़ापन और गुस्से जैसी चीजें कंट्रौल करती हैं।
ऑटिज्म जीवन भर रहने वाली एक बीमारी है। ऐसे में बच्चों को खास मदद की जरूरत पड़ती है। हालांकि, उम्र के साथ इसके लक्षण कम हो जाते हैं, जिससे वो आगे चलकर आम लोगों जैसा जीवन जी सकते हैं।