Delhi Election Result 2025: दिल्ली में बीजेपी का 26 साल का बनवास खत्म और अब आम आदमी पार्टी का बनवास शुरू हो गया है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का बनवास क्या कभी खत्म होगा? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब खुद आम आदमी पार्टी के पास भी नहीं है। मुफ्त की इतनी सारी रेवड़ियां बांटने वाली अरविंद केजरीवाल की पार्टी आखिर दिल्ली क्यों हार गई। क्या केजरीवाल की पार्टी और उनकी मुफ्त पानी बिजली जैसी योजनाओं को दिल्ली के लोगों ने नकार दिया या फिर इस बार नरेंद्र मोदी का जादू दिल्ली में चल गया। राजनैतिक पंडित इन सवालों का अपने अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं।
क्या कांग्रेस ने हराया AAP को चुनाव?
चुनाव नतीजों और हार जीत के अंतर का विश्लेषण करें तो इस बात में इंकार नहीं किया जा सकता कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी को अगर किसी ने बनवास भेजा है तो वह सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के पूरे नतीजे अभी तक सामने नहीं आए है, लेकिन शुरूआती नतीजों को आधार पर ये कहा जा सकता है कि दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने का दंभ केजरीवाल पर भारी पड़ गया। दिल्ली में केजरीवाल की खिचड़ी बनती उससे पहले ही कांग्रेस ने उनकी हांडी में लात मार दी। आतिशी और गोपाल राय को छोड़ दें तो केजरीवाल सहित आम आदमी के तमाम स्टार नेता औंधे मुंह गिरे हैं।
AAP के बड़े-बड़े नेता हुए क्लीन बोल्ड
आंकड़ों को देखें तो ये साफ हो जाता है कि कांग्रेस ने दिल्ली में अपनी खोई हुई जमीन वापस तो नहीं ली, लेकिन उतना वोट जरूर ले लिया, जिससे आम आदमी पार्टी को हरवाया जा सके। उदाहरण के तौर पर नई दिल्ली विधानसभा सीट से अरविंद केजरीवाल करीब 4000 वोट से हारे। जबकि इसी सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे और कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित को 4500 से अधिक वोट मिले। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ तो और भी बुरा हुआ। पटपड़गंज सीट छोड़कर जंगपुरा विधानसभा से चुनाव लड़ने गए सिसोदिया यहां से करीब 650 वोटों से चुनाव हार गए जबकि इस सीट पर कांग्रेस के फरहाद सूरी को करीब 7500 वोट मिले। ग्रेटर कैलाश से सौरभ भारद्वाज करीब 3200 वोटों से चुनाव हारे। इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार को करीब 6500 वोट मिले। मालवीय नगर से सोमनाथ भारती करीब 2000 वोट से चुनाव हारे तो यहां कांग्रेस के जीतेंद्र जीतू को करीब 6500 वोट मिले।
केजरीवाल को लगा अंडर करंट
ऐसे तमाम आंकड़े सामने आ रहे हैं जिससे ये साफ हो जाता है कि कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी की जीत के मंसूबों पर पानी फेर दिया। ठीक उसी तरह जिस तरह हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवार खड़े कर कांग्रेस को निपटा दिया था। बीजेपी को हराने के लिए जिस तामझाम के साथ इंडिया गठबंधन का गठन किया गया था। उसी गठबंधन के घटक दल एक दूसरे को निपटाने में जुटे हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में तीसरी बार सरकार बनाने का दंभ भरने वाले केजरीवाल इस बार शायद अंडर करंट समझ नहीं पाएं। शायद उन्हें अब महसूस हो रहा होगा कि कांग्रेस को कमतर आंक कर उन्होंने बड़ी चूक की है।
लोकसभा चुनाव की तरह अगर दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ती तो शायद चुनाव नतीजे कुछ और होते।
क्या जाएंगे राज्यसभा केजरीवाल?
दिल्ली विधानसभा चुनाव और खुद की सीट भी गंवाने वाले केजरीवाल का अब क्या होगा। सभी के जहन में अब यही सवाल है। मुख्यमंत्री तो दूर केजरीवाल अब विधायक तक नहीं हैं। वे अब सिर्फ आम आदमी पार्टी के संयोजक रह गए हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि केजरीवाल के पास अब भी एक मौका है। वह मौका राज्यसभा में जाने का है। लेकिन सवाल ये उठता है कि दिल्ली की जिस जमीन से केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ, क्या उस दिल्ली को छोड़कर केजरीवाल राज्यसभा का रुख करेंगे। हालात तो देखकर यही कहा जा सकता है कि केजरीवाल अब एक और बड़ी गलती नहीं करेंगें।
दिल्ली की हार से क्या जाएगी पंजाब की कुर्सी
कड़ी मशक्कत के बाद राष्ट्रीय पार्टी का तमगा लेने वाली आम आदमी पार्टी अब पंजाब में सिमटकर रह गई है। दिल्ली चुनाव नतीजे आने के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी की भगवंत मान की सरकार कितनी सहज तरीके से आगे सरकार चला पाएंगें। उस पर अब सभी की नजर है। वजह रवनीत बिट्टू हैं। पंजाब से आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार रवनीत बिट्टू लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे। रवनीत बिट्टू को पंजाब सीएम भगवंत मान का अच्छा दोस्त भी कहा जाता है। रवनीत बिट्टू का बीजेपी ज्वाइन करना कोई छोटी बात नहीं है। अटकलें तो ये भी लगाई जा रही हैं कि बीजेपी में जाकर रवनीत बिट्टू वहां अपने दोस्त के लिए एक नई जमीन तैयार कर रहे हैं। पंजाब की राजनीति को बेहद करीब से जानने वाले कुछ नेताओं का तो ये भी कहना है कि आने वाले दिनों में पंजाब में कोई बड़ा बदलाव भी देखने को मिल सकता है।