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राहुल गांधी की गलती उन पर ही पड़ी भारी


कल राहुल गांधी को दो साल की सजा हुई थी और आज राहुल गांधी की संसद सदस्यता भी चली गई. राहुल गांधी की संसद सदस्यता बच सकती थी.  2013 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार सुप्रीम कोर्ट एक फैसले के बाद एक अध्यादेश लाई थी. जिसमें किसी सजा के बाद दोषी सांसदों, विधायकों आदि को तत्काल सदन की सदस्यता से अयोग्य साबित करने से रोका जा सकता था लेकिन उस वक्त यूपी के अमेठी से सांसद राहुल गांधी ने इस अध्यादेश का विरोध कर दिया था और इस अध्यादेश को फाड़ भी दिया था. तब राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार के खिलाफ जाकर ये अध्यादेश फाड़ा था. अगर वो अपनी ही सरकार के खिलाफ ना जाते तो शायद आज उनकी संसद की सदस्यता भी नहीं जाती. तब ये अध्यादेश अगर कानून बन गया होता तो आज राहुल गांधी की सांसदी बरकरार रहती.

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि सांसद, विधायक, एमएलसी जो भी किसी अपराध के लिए दोषी पाया जाता है और उसे कम से कम 2 साल की सजा सुनाई जाती है तो उसकी सदस्यता तुरंत रद्द कर दी जायेगी. इस फैसले को पलटने के लिए केंद्र सरकार एक अध्यादेश लाई थी तब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपनी ही सरकार का विरोध करते हुए अध्यादेश ही फाड़ दिया था. राहुल के विरोध के कारण ये अध्यादेश लागू नहीं हो पाया था अगर ये तब लागू हो जाता तो आज राहुल गांधी की संसद सदस्यता नहीं जाती. आप सब जानते ही गुजरात के सूरत की एक अदालत ने मानहानि के मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी. जिसके बादल आज राहुल की संसद की सदस्यता चली भी गई.

ऐसा नहीं है कि ऐसी घटना पहली बार हुई है पहले भी ऐसा कई बार हो चुका है. आपको 2005 का दौर याद दिला दे तब 10 लोकसभा और एक राज्यसभा सांसदों की सदस्यता चली गई थी. तब इन सांसदो पर पैसे लेकर संसद में सवाल पूछने का आरोप लगा था. वहीं 2013 में चारा घोटाले में दोषी पाए जाने पर लालू प्रसाद यादव की सदस्यता चली गई थी. 1976 में इमरजेंसी के दौरान सुब्रमण्यम स्वामी की भी राज्यसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी उन पर देश विरोधी प्रोपेगेंडा में शामिल होने और संसद और देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को बदनाम करने का आरोप लगा था. तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को चार साल की सजा मिलने के बाद उनकी भी विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. वहीं आइरन लेडी और देश की पीएम रही इंदिरा गांधी की संसद सदस्यता 1977 में जनता पार्टी द्वारा लोकसभा में एक प्रस्ताव पारित करके वापिस ले ली गई थी लेकिन मात्र एक महीने बाद इंदिरा गांधी को सदस्यता वापस मिल गई थी.


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